स्मृति के उद्यान: बलिदानों का सम्मान, राष्ट्रीय एकता का प्रतिबिंब

Gardens of Memory: Honoring sacrifices, reflecting national unity

पूजा तिवारी

जम्मू-कश्मीर, अपनी अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य एवं समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के साथ, शताब्दियों से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, कश्मीर का नामकरण महर्षि कश्यप के नाम पर हुआ, जिन्होंने इस पावन धरा पर तपस्या की और इसे एक पुण्यस्थली बनाया। दुर्भाग्यवश, विगत दशकों में, यह क्षेत्र आतंकवाद के कुटिल चंगुल में रहा है, जिंहोने सहस्त्रों निर्दोष लोगों के प्राण लिए है।

इन विषम परिस्थितियों में, हमारे वीर शहीद सैनिकों ने राष्ट्र की अखंडता एवं एकता के संरक्षण हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। आतंकवाद की क्रूर हिंसा के शिकार निर्दोष नागरिकों ने अकल्पनीय वेदना सही, जिनमें कश्मीरी पंडित समुदाय भी सम्मिलित है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि से विस्थापन का दारुण दुःख अनुभव किया। साथ ही, कश्मीरी मुस्लिम समुदाय ने भी आतंकवाद का प्रहार सहा है और अनेक देशभक्त मुस्लिम सैनिकों एवं पुलिसकर्मियों ने भी राष्ट्र रक्षा में स्वयं का बलिदान दिया है। इन सभी शहीदों एवं पीड़ितों की स्मृति को चिरस्थायी बनाना न केवल उनके त्याग का सम्मान है, अपितु यह आगामी पीढ़ियों को शांति, सौहार्द और राष्ट्रीय एकता के महत्व को समझने में भी सहायक होगा।

इस उदात्त संकल्प की पूर्ति हेतु, एक महत्वपूर्ण पहल यह हो सकती है कि प्रत्येक शहीद सैनिक, आतंकवाद की हिंसा के शिकार दिवंगत व्यक्ति और विकास कार्यों में अपने प्राण न्योछावर करने वाले परिश्रमी श्रमिकों की स्मृति में पृथक-पृथक स्मारक का निर्माण किया जाए। इन स्मारकों का स्वामित्व प्रत्यक्ष रूप से उनके परिजनों के नियंत्रण में दिया जाय, जिससे वे अपने प्रियजनों की स्मरणीय विरासत को अपनी इच्छानुसार संरक्षित कर सकें और भावी संतति को उनके बलिदान की गाथा सुना सकें।

इन स्मारकों के निर्माण के लिए , प्रत्येक शहीद एवं दिवंगत के परिवार को 21 से 51 (21 से 51) एकड़ तक की फलोद्यान अथवा बागान भूमि आवंटित की जाय । यह विस्तृत भूखंड न केवल स्मारक हेतु पर्याप्त स्थल प्रदान करेगा, अपितु परिवारों के लिए आजीविका का एक सुदृढ़ एवं स्थायी स्रोत भी बनेगा। इन फलोद्यानों से प्राप्त होने वाली समृद्ध आय उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में सक्षम होगी तथा उन्हें अपने प्रियजनों की स्मृति के संरक्षण हेतु आवश्यक संसाधन प्रयाप्त मात्रा में उपलब्ध कराएगी। अतिरिक्त रूप से, प्रत्येक परिवार को प्रारंभिक व्यय की पूर्ति हेतु प्रति एकड़ एक लाख रुपये की दर से अनुदान भी प्रदान किया जाय। यह अनुदान उन्हें स्मारक के सुनियोजित निर्माण, विस्तृत उद्यान की स्थापना और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के सुचारु संचालन में पर्याप्त सहायक होगा ।

हमारे वीर सैनिकों ने सदैव राष्ट्र रक्षार्थ अद्वितीय शौर्य एवं आत्मोत्सर्ग का प्रदर्शन किया है। कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र विजेता, कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस के लिए अद्यापि स्मरणीय हैं। उनकी वीरता और “ये दिल मांगे मोर!” का उद्घोष प्रत्येक भारतीय के हृदय में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित करता है। इसी प्रकार, लांस नायक अल्बर्ट एक्का, परमवीर चक्र विजेता, ने 1971 के भारत-पाक संग्राम में अद्भुत पराक्रम प्रदर्शित किया और स्वयं के प्राणों का अर्पण कर अपने साथ सैनिको के जीवन की रक्षा किया। जम्मू-कश्मीर के भी अनेक वीर सपूतों ने राष्ट्र हेतु अपना सर्वोच्च बलिदान समर्पित किया है। परम वीर राइफलमैन संजय कुमार, कारगिल युद्ध के अप्रतिम योद्धा थे । अनुच्छेद 370 के समाप्त के पश्चात्, जम्मू-कश्मीर पुलिस के इम्तियाज अहमद मीर ने पुलवामा जनपद में आतंकवादियों का सामना करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता एवं कर्तव्यनिष्ठा, एक कश्मीरी मुस्लिम के रूप में, सर्वजन हेतु प्रेरणास्रोत है और यह प्रदर्शित करता है कि व्यक्तिगत धर्म से राष्ट्र धर्म बड़ा होता है।

यदि इस अभियान को देश के सभी शहीदो , आतंकवाद की हिंसा के शिकार व्यक्तियों और विकास कार्यों में प्राणोत्सर्ग करने वाले श्रमिकों तक विस्तारित किया जाए, तो यह वस्तुतः ‘लघु भारत’ का स्वरूप धारण करेगा। यह पहल विविध राज्यों, धर्मों और समुदायों के परिवारों को एक साथ लाएगी, जो सामूहिक शोक और बलिदान की भावना से आबद्ध होंगे। यह राष्ट्रीय एकता और विविधता में अद्वितिए के संदेश को सुदृढ़ करेगा।

इस पहल के अनेक लाभ हैं। प्रथम यह उन परिवारों के प्रति हमारी कृतज्ञता एवं सम्मान को अभिव्यक्त करेगा जिन्होंने राष्ट्र और समाज हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। द्विती, यह पहल आगामी पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी, जिससे उनमें देशभक्ति, साहस, त्याग और श्रम के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों का विकास होगा। तृतीय , फलोद्यानों का आवंटन परिवारों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेगा।

कश्मीरी पंडित समुदाय हेतु, जिन्होंने आतंकवाद की निर्मम हिंसा का सर्वाधिक सामना किया है, यह पहल विशिष्ट रूप से महत्वपूर्ण होगी। वे अपनी मूल भूमि से उन्मूलित किए गए और अपने गृहों एवं संपत्तियों से वंचित कर दिए गए। स्मारकों का निर्माण और भूखंड का आवंटन उन्हें यह अनुभूति कराएगा कि समाज उनके व्यथा को समझता है और उनके साथ खड़ा है।

इस महत्वाकांक्षी अभियान को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने हेतु, शासन, समाज और स्थानीय समुदायों को संयुक्त रूप से कार्य करना होगा। भूमि का आवंटन, स्मारकों का डिज़ाइन और निर्माण, एवं वित्तीय सहायता का वितरण एक पारदर्शी और न्यायसंगत रीति से किया जाना अपेक्षित है।

यह पहल एक शक्तिशाली संदेश प्रेषित करेगी कि हिंसा, आतंकवाद और शोषण का कोई भविष्य नहीं है और समाज सदैव शांति, सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और श्रमिकों के सम्मान के मूल्यों को सर्वोपरि रखेगा। ‘लघु भारत’ के रूप में, यह अभियान राष्ट्र की विविधता और एकता की भावना को सुदृढ़ करेगा और सर्वजन को एकत्रित होकर शांति, समृद्धि और सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा।