राजेन्द्र कुमार सिंह
कभी-कभीआदमी भी पद और प्रतिष्ठा का रोब दिखाकर धाक जमा लेता है।ऐसी खूबियां तकरीबन सभी में पाई जाती है। सब्जियों में भी यही हाल प्याज और टमाटर का है।ससुरा रह- रहकर अपना भाव बढा,देर-सबेर अपना रोब जमा ही देता है। टमाटर ही एक ऐसा सब्जी है जो रब जी ने इसको ऐसा वरदान दिया है कि इंसान इसके स्वाद को नजरअंदाज नहीं कर सकता।यह सभी सीजन में सब के दिलों पर राज करता है।चाहे वह वेजेटेरियन हो या ननवेजेटेरियन।इसकी उपस्थिति सबके साथ रहती है।जहां भी रहता है बनाकर रखता है।अपनी महिमा का बखान करा देता हैं।मटन हो या मुर्गा,मछली हो या सब्जी इसके बिना मजा नहीं आता।सलाद भी इसके बिना मजा नहीं देता।कच्चा खाए या पकाकर,लोग खाते हैं दबाकर।आज टमाटर का भाव इतना हाई हो गया है जोआमआदमी इनके तक पहुंचने के लिए क्वालीफाई नहीं कर पा रहे हैं।हाल- फिलहालअपने कंट्री में इनके पास पहुंचने के लिए इंट्री फी बहुत हाई है।कभी थोक भाव में हर घर में इनका स्वागत करते थे।आज मीडिया में इनका खुब स्वागत हो रहा है।मीडिया के दृष्टि में सारा दिन ब्रेकिंग न्यूज की तरह यूज हो रहे हैं।चोखा, चटनी,सलाद तक में इनकी उपस्थिति दर्ज रहती थी।आज इनकी उपस्थिति दुर्लभ हो गया है।
आज के दौर में यह वि.आई.पी.ओ.के यहां काफी देखे जा रहे हैं।उनके यहां इनका हमेशाआना-जाना लगा हुआ है।आज आम आदमी इनका नाम सुन नाक-भौ सिकोड़ रहा है।अपना ठीकरा सरकार के उपर फोड़ रहा है।इनके वगैर नमक के साथ रोटी तोड़ रहा है।कभी झोला भर-भरकर लाता था,आज छटाक में आ रहा है।आज टमाटर का यूज करना प्रतिष्ठा का विषय बन गया है।
हमारे एक मित्र हैं।टमाटर का स्वाद भूल सा गए हैं।नेता टाइप आदमी हैं।हमेशा उलुल-जुलूल हरकतें करते रहते हैं इसलिए हमेशा लोगों ने टमाटर फेंक-फेंककर इनका भरपूर स्वागत किया है।आज वह बेहद दुखी हैं।कहते हैं पहले हल्की-फुल्की हरकत करने पर भी कई किलो टमाटर फेंककर स्वागत कर देते थे।आज उन हरकतों में कई गुणा वृद्धि हो गई है या यूं कहें जबरदस्त इजाफा हुआ है।लेकिन जनता ने उनके स्वागत में आज एक भी टमाटर नहीं फेका।सोच-सोचकर परेशान हूं मित्र,स्थिति पैदा हो गई है विचित्र।उस समय मंच पर फेंका हुआ टमाटर झोला में भरकर घर लाते थे।आजू-बाजू में अपने बच्चे के द्बारा सभी घरों में तीन-चार किलो भेजवा देते थे। हमलोग भी ये आश लगाए रहते थे चलो जाने दो अपना नेता जहमतलाल भैया है न।टमाटर की कमी नहीं खलेगी।अपना जैसे पहले चला है वैसा चलती रहेगी।अपने पड़ोसी भैया जहमतलाल जब तक रहेंगे टमाटर मिलती रहेगी।लेकिन उनके लंगोटिया यार रहमतलाल जो मंच पर दर्शक टमाटर फेंकते थे रहमतलाल झोले में समेटते थे,रखते थे।पहले से अधिक हरकत करने के बाद भी दर्शकों द्बारा टमाटर फेंक-फेंककर मारने में बेतहाशा बरकत या वृद्धि नहीं देख अवाक हैं।तब हम सब पड़ोसियों को लगने लगा है टमाटर का भाव वाकई आसमान छू रहा है।कभी भाव बढ़ने पर यही पड़ोसियों ने जब टमाटर पर किसी दूसरे से भाव को लेकर तनाव उत्पन्न होता तो ये लोग उतने ही ताव में यह कहते नहीं चुकते थे-‘भाड़ में जाए टमाटर। जैसा पहले खाते थे आज भी खाते हैं।’
कभी सत्ता पक्ष के नेताओं का भाव बढ़ा था लेकिन वक्त के तकाजा को देखते हुए अपने दांव को सही दिशा प्रदान नहीं किए। नतीजा यह हुआ कि सत्ता पक्ष का भाव धड़ाम से गिर गया।
आज जनता को लगने लगा है उनके हाथों में कमान थमाकर अपने इमान को गिरवी रखने जैसा प्रतीत होने लगा है।उनके प्रति चाव घटने लगा है।टमाटर साहब का रवैया भी वैसा ही हो गया है।अभी इनका भाव चढ़ा है।कब तक चढ़ा रहेगा।इनके भी भाव का ग्राफ हाफ से भी कम हो जाएगी।आम जनता उस दिन जमकर टमाटर खाएगी।