सद्बुद्धि देना भगवान: भारत-पाक संबंधों पर संभावित युद्ध के बादल और आतंकी हमले की पृष्ठभूमि

God give wisdom: The clouds of possible war on India-Pak relations and the background of terrorist attack

विनोद कुमार सिंह

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले ने न सिर्फ देश की आत्मा को झकझोर दिया है, बल्कि भारत-पाक संबंधों में युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। इस अमानवीय हमले में निर्दोष 26 लोगों की नृशंस हत्या ने 2019 के पुलवामा हमले की भयावह यादें फिर से ताज़ा कर दी हैं।

इस हमले की क्रूरता ने पूरे देश को हिला दिया। कुछ सिरफिरे आतंकियों ने मासूम नागरिकों पर जिस बेरहमी से हमला किया, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद अब भी सीमापार से पोषित हो रहा है। इस घटना ने पुलवामा के उस मनहूस दिन की पुनरावृत्ति कर दी, जब 44 सीआरपीएफ जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे।

हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सख्त लहजे में आतंकियों और उनके सरपरस्तों को चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “हमारे सुरक्षा बलों को पूरी स्वतंत्रता दी गई है और हम दुश्मनों को उनकी कल्पना से भी अधिक सजा देंगे।” यह वक्तव्य केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि भारत की आतंक के खिलाफ नई रणनीति का संकेत भी है।

सरकार की प्रतिक्रिया बहुआयामी रही। पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग से सैन्य सलाहकारों को तत्काल वापस बुला लिया गया। दिल्ली स्थित पाक उच्चायोग के समकक्ष अधिकारियों को पर्सोना नॉन ग्राटा घोषित कर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया। दोनों देशों के राजनयिक स्टाफ की संख्या 55 से घटाकर 30 की गई। पाक नागरिकों के लिए सभी प्रकार की वीज़ा सेवाएं तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दी गईं। सार्क वीज़ा छूट योजना (SVES) को रद्द कर दिया गया और पहले से जारी वीज़ा भी अमान्य घोषित कर दिए गए। अटारी एकीकृत चेक पोस्ट को बंद कर सीमापार आवाजाही रोक दी गई।

भारत ने 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को मिलने वाली जल आपूर्ति को रोकने की चेतावनी दी। यद्यपि पूर्ण रूप से रोक लगाने की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन भारत का यह रुख भविष्य की कड़ी कूटनीतिक चुनौती की ओर संकेत करता है।

नियंत्रण रेखा (LoC) पर फाइटर जेट्स की गर्जना ने पाकिस्तान में भय का वातावरण बना दिया है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने श्रीनगर का दौरा कर हालात की समीक्षा की। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने घेराबंदी और तलाशी अभियान तेज कर दिए हैं।

देश की जनता आतंक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रही है, वहीं मीडिया के कुछ वर्ग युद्धोन्माद फैलाते नज़र आ रहे हैं। समाचार चैनलों के कुछ उद्घोषक युद्ध और सैन्य शक्ति की भाषा में बोलते हैं, जिससे जनमत युद्धोन्मुख हो सकता है — जबकि यह समय विवेक, संयम और रणनीतिक समझ का है।

बिहार के मधुबनी में जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भावुक होकर कहा, “हमला सिर्फ निहत्थे पर्यटकों पर नहीं, देश की आत्मा पर हुआ है। हम यह लड़ाई जीतने के लिए लड़ रहे हैं।” यह वक्तव्य न केवल एक राजनीतिक घोषणा था, बल्कि राष्ट्रीय एकजुटता का आह्वान भी।

इस समय सबसे बड़ी आवश्यकता है — विवेकपूर्ण निर्णय, सशक्त कूटनीति और आतंकी तंत्र के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की। साथ ही, मीडिया, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज को भी संयम बरतने की आवश्यकता है। युद्ध कोई समाधान नहीं, बल्कि एक त्रासदी है। देश को अपने सैनिकों, कूटनीतिज्ञों और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसा रखना होगा।

ईश्वर से यही प्रार्थना है — सद्बुद्धि देना भगवान, ताकि संभावित युद्ध पर विराम लगे और विकास का मार्ग प्रशस्त हो।