दीपक कुमार त्यागी
- आगामी फसलों की बुवाई के चक्र की निरंतरता को बनाए रखने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में हुई बारिश, ओलावृष्टि व तेज हवाओं से हुए खेती-बाड़ी के नुक़सान की जल्द समय रहते अन्नदाताओं को भरपाई बेहद जरूरी।
- खेत-खलिहानों में तैयार खड़ी हुई व कटी पड़ी हुई रबी सीजन की विभिन्न फसलों के मौसम की मार से चौपट हो जाने से किसानों को इस बार हो गया है जबरदस्त ढंग से आर्थिक नुक़सान।
- किसानों की फसलें खराब मौसम की भेंट चढ़ने का जल्द ही समग्र सर्वेक्षण धरातल पर जाकर के समय से होना बेहद जरूरी है सरकार।
- खेती-बाड़ी के हित में समय रहते धरातल पर सही ढंग से नुक़सान का सर्वेक्षण करवाकर के मौसम की मार से पीड़ित अन्नदाता किसानों को हुए जबरदस्त नुक़सान का उचित मुआवजा धनराशि देकर के जल्द भरपाई करो सरकार।
भारत के कृषि प्रधान देश होने के चलते आज भी देश की लगभग 70 फीसदी के करीब आबादी पेट भरने के लिए किसी ना किसी रूप में खेती-बाड़ी पर ही निर्भर है। हालांकि खेती-बाड़ी करके अपना, अपने परिजनों का और अन्य लोगों का पेट भरना आज के आधुनिक काल में भी बेहद दुष्कर कार्य है। क्योंकि हमारे प्यारे देश भारत में संसाधनों के अभाव में खेती-किसानी आज भी पूरी तरह से ही मौसम के मिजाज पर ही निर्भर करती है, जिसके चलते आज भी खेती-बाड़ी बेहद ही जोखिम भरा कार्य है। अगर हम लोगों को खेती-बाड़ी के इस जोखिम की बानगी देखनी हो तो उदाहरणार्थ इस वर्ष के मौसम के मिजाज को ही देख लें, जिस वक्त खेती के लिए भरपूर ठंड व बारिश की आवश्यकता थी, तो उस वक्त दिसंबर, जनवरी व फरवरी माह में सही ढंग से ठंड व बारिश तक नहीं पड़ी, उसके बाद जब रबी सीजन की फसलों के पकने का समय आया तो मार्च व अप्रैल के माह में देश के लगभग 15 राज्यों में अप्रत्याशित रूप से हुए मौसमी परिवर्तन ने खेती-बाड़ी के लिए बड़ी गंभीर समस्या खड़ी कर दी। अचानक से मौसम के करवट लेने के चलते ने तेज हवाओं के साथ हुई भारी बारिश व ओलावृष्टि ने खेतों में पकने के कगार पर खड़ी फसलों व पक कर के खेतों में कटी हुई पड़ी फसलों को खराब करने का कार्य देश के बहुत बड़े भूभाग में बड़े पैमाने पर करने का कार्य करके, किसानों की आर्थिक रूप से कमर तोड़ने का कार्य कर दिया है। क्योंकि देश व दुनिया में आज के आधुनिक समय में भी मौसम की मार से फसलों को सुरक्षित रखने के ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं हैं, जिसके चलते ही मौसम ने इस वर्ष हमारे प्यारे भारत में अन्नदाता की लगभग 25 से 30 प्रतिशत फसलों को खेतों में ही बर्बाद करने का कार्य करके उन्हें भारी नुक़सान पहुंचा दिया है।
हालांकि दुनिया के किसी भी देश में मौसम पर किसी का कोई भी बहुत ज्यादा नियंत्रण नहीं चलता है, लेकिन मौसम की मार से त्राहि-त्राहि कर रहे लोगों के नुक़सान की समय से भरपाई करने पर तो उनका नियंत्रण चलता है। वैसे भी देखा जाये तो पिछले कुछ वर्षों से देश के अन्नदाता किसानों को होने वाले नुक़सान ने उनकी आर्थिक रूप से कमर तोड़ने का कार्य कर रखा है, पहले तो कोविड़ काल के समय में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के बावजूद भी किसानों को बड़ा आर्थिक नुक़सान पहुंचा था, उसके पश्चात पिछले कुछ वर्षों से मौसम लगातार देश के अन्नदाता किसानों को दगा देकर के भारी आर्थिक नुक़सान पहुंचाने का कार्य कर रहा है। वहीं रही सही कसर खेती-किसानी के नुक़सान का मुआवजा देने को भी वोट बैंक के नजरिए से देखने वाली ओछी राजनीतिक सोच से पूरी हो जाती है, जिसके प्रभाव के चलते ही फसलों की खरीद दर यानी की एमएसपी दर व फसल बीमा की नीति प्रभावित होती है। जिसके चलते अन्नदाता किसानों को अपनी फसलों का लागत मूल्य के अनुरूप उचित मूल्य नहीं मिल पाता है और साथ ही उनको फसल बीमा योजना में समय से फसलों के नुक़सान का धरातल पर जाकर आंकलन करवा कर उचित मुआवजा मिल पाता है।
हालांकि आज के समय में भी देश के अलग-अलग राज्यों में फसलों के नुक़सान को तय करने के लिए मापदंडों में समानता नहीं है। देश में अनाज व दलहन की फसलों के बीमा के अलावा विभिन्न प्रकार की फल-फूल, साग-सब्जी, हर्बल औषधियों आदि की खेती के बीमा पर सिस्टम के अलग-अलग मापदंड हैं, वही किसानों को भी इनके बीमा के संदर्भ में कोई विशेष जानकारी नहीं है। वैसे भी अगर हम धरातल पर हालात का निष्पक्ष रूप से आंकलन करें तो पाते हैं कि जिस राज्य के किसान संगठन मजबूती के साथ अपने अन्नदाता किसानों के हितों की उचित प्लेटफार्म पर निरंतर पैरवी करते हैं, वहां के किसानों के नुक़सान की तो एकबार को फिर भी कामचलाऊ भरपाई हो जाती है, उसके अलावा तो सभी जगह किसानों को नुक़सान की भरपाई के लिए सरकारी तंत्र की चौखटों पर जाकर के दर-दर की ठोकरें खाने के बाद भी मुआवजे की धनराशि हासिल करने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। वैसे तो सरकारी तंत्र की यह सोच देश के मेहनतकश अन्नदाता किसानों के प्रति बिल्कुल भी जायज़ नहीं है, लेकिन अफसोस क्या करें कि 70 प्रतिशत मेहनतकश अन्नदाता किसानों को तो अपना व अपने परिजनों का पेट भरने के लिए खेत व खलिहानों में काम करने से ही बिल्कुल फुर्सत नहीं मिल पाती है, इसलिए वह बेचारे अपने हक के लिए भी सरकार तंत्र की चौखट पर जाकर धरना प्रदर्शन तक नहीं कर पाते हैं, जिसके चलते ही हर कार्य में अपने-अपने आकाओं के राजनीतिक हित तलाशने वाला हमारा सिस्टम ऐसे किसानों की समस्याओं की बड़ी चतुराई से अनदेखी कर देता है, जो सोच हमारे देश के खेती-बाड़ी सेक्टर व अन्नदाता किसानों के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है।
हालांकि इस वर्ष हमारे सिस्टम को रिकॉर्ड तोड़ गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद थी, लेकिन मौसम की मार ने अन्नदाता किसानों की खेतों में खड़ी हुई गेहूं व अन्य सभी फसलों को भारी नुक़सान पहुंचा दिया है, हालांकि अभी इस नुक़सान के वास्तविक आंकड़े आने बाकी हैं, लेकिन यह तय है कि सरकार की रिकॉर्ड तोड़ गेहूं की पैदावार होने की उम्मीदों को बड़ा झटका लगने की अब पूरी संभावना बन गयी है, क्योंकि देश में अधिकांश प्रकार की फसलों पर मौसम की जबरदस्त मार पड़ी है, फ़सल लगभग 25 से 30 प्रतिशत तक खराब हो गई है। मौसम की मार ने देश के विभिन्न राज्यों में रबी के सीजन की अधिकांश फसलों को अपनी चपेट में लेने का कार्य किया है, देश में गेहूं, जौ, जई, सरसों, आलू, चना, मटर, आम, लीची, फल-फूल, साग-सब्जी, हर्बल औषधीय पौधों, मसलों आदि की फसलों को मौसम ने जबरदस्त रूप से नुकसान पहुंचाने का कार्य किया है। मौसम ने पक कर तैयार खड़ी फसल को जमीन पर बुरी तरह से गिराकर खराब कर दिया है, खेतों में पानी भर जाने के चलते कटी फसल व अन्य फसलें खेतों में सड़ रही हैं, ऐसी बेहद चिंताजनक हालात में देश के अन्नदाता किसानों को केन्द्र व राज्य की सरकारों से बड़ी उम्मीदें हैं कि वह चाहता है कि प्राकृतिक आपदा की इस घड़ी में मौसम की मार से पीड़ित किसानों के साथ सरकार कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो और उनके नुक़सान की भरपाई के लिए तत्काल धरातल पर जाकर के नुक़सान का पूरी ईमानदारी से सर्वे करवाकर के किसानों को उनके नुक़सान की उचित मुआवजा धनराशि राशि मिलें। तब ही अन्नदाता किसान आगामी ज़ायद के सीजन की फसलों की समय से बुवाई करने में आत्मनिर्भर बनकर के सक्षम हो पायेगा, वरना तो वह बेचारा अन्नदाता किसान अपना, अपने परिजनों का व अन्य देशवासियों का पेट भरने के लिए सरकारी व निजी तंत्र के कर्ज़ के जाल में बुरी तरह से फंसाता चला जायेगा, इसलिए समय की मांग है कि सरकार अन्नदाता किसानों के नुक़सान की जल्द से जल्द उचित मुआवजा धनराशि देकर भरपाई करके उनको फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ताकत प्रदान करें।