आर.के. सिन्हा
जब समाज में डॉक्टरों को लेकर तमाम तरह की नकारात्मक बातें होने लगी हैं, तब कुछ ऐसे भी डॉक्टर हैं जो अपने काम से सर्वप्रिय हो जाते हैं। उनका सब स्वतः ही सम्मान करने लगते हैं। शंकर नेत्रालय के संस्थापक डॉ.एस.एस. बद्रीनाथ भी उस तरह के डॉक्टर थे। उनकी वजह से आंखों के लाखों रोगियों के जीवन में खुशियां आ गईं थीं। उनके हाल ही में हुए निधन से देश ने एक इस तरह के डॉक्टर को खो दिया जिसने अमीर-गरीब रोगियों के बीच में कभी भी भेदभाव नहीं किया । उनकी निगरानी में चेन्नई में शंकर नेत्रालय शुरू हुआ और वह भारत के सबसे बड़े धर्मार्थ नेत्र अस्पतालों में से एक के तौर पर स्थापित हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ.बद्रीनाथ के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ठीक ही कहा कि आंखों की देखभाल में डॉ. बद्रीनाथ के योगदान और समाज के प्रति उनकी अथक सेवा ने एक अमिट छाप छोड़ी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉ. बद्रीनाथ का काम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।
आजकल बहुत से डॉक्टरों के रोगियों के साथ सही से इलाज न करने के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं, तब डॉ. बद्रीनाथ जैसे डॉक्टर ही एक तरह से उम्मीद की किरण जगाते हैं। उनका हमारे बीच में होना सुकून देता था। वे नेत्र रोगियों के जीवन में आशा की किरण जगाते रहे ।
किसी भी रोगी के लिए अपने नेत्र चिकित्सक का चयन करना आसान नहीं होता। आख़िरकार, रोगी अपनी बहुमूल्य दृष्टि की सुरक्षा के लिए और उसे आजीवन उत्तम स्थिति में बनाए रखने में किसी श्रेष्ठ डॉक्टर की तलाश में रहते हैं। उन्हें जब डॉ. ब्रदीनाथ जैसा सच्चा और ईमानदार डॉक्टर मिल जाता है तो उनकी परेशानी दूर हो जाती है। डॉ. बद्रीनाथ ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिसिन की पढ़ाई की थी। उन्होंने 1963 और 1968 के बीच ग्रासलैंड हॉस्पिटल, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल स्कूल और ब्रुकलिन आई एंड ईयर इन्फर्मरी में नेत्र विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। अमेरिका में डॉ. बद्रीनाथ की मुलाकात डॉ. वासंती से हुई। एक साल बाद, उन्होंने 1970 तक डॉ. चार्ल्स एल शेपेंस के अधीन मैसाचुसेट्स आई एंड ईयर इन्फर्मरी, बोस्टन में काम करना शुरू किया और लगभग एक साथ रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स (कनाडा) के फेलो और नेत्र विज्ञान में अमेरिकन बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की। वे 1970 में अपने परिवार के साथ भारत आ गये। उन्होंने छह साल की अवधि तक स्वैच्छिक स्वास्थ्य सेवाओं, अड्यार में एक सलाहकार के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू की।
डॉ. बद्रीनाथ ने 1978 में मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की, जिसकी शंकर नेत्रालय अस्पताल इकाई, एक पंजीकृत सोसायटी और एक धर्मार्थ गैर-लाभकारी नेत्र रोग संगठन है। अगले 24 वर्षों में, उन्होंने और उनके सहयोगियों ने भारत में अंधेपन से निपटने के लिए एक सेना बनाने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञों और पैरामेडिकल कर्मियों को पढ़ाने और प्रशिक्षित करने के अलावा, किफायती लागत पर गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल की पेशकश की और अनुसंधान के माध्यम से नेत्र देखभाल समस्याओं के लिए स्थायी स्वदेशी समाधान की खोज जारी रखी। वर्षों तक अपने धर्मार्थ कार्यों के लिए, डॉ. बद्रीनाथ को भारत सरकार से पद्म श्री और पद्म भूषण का राष्ट्रीय सम्मान मिला ।
ड़ॉ. बद्रीनाथ को उनके रोगी और उनके संबंधी अपना भगवान मानते थे। आजकल डॉक्टरों के साथ मारपीट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। रोगियों के करीबी बात-बात पर डॉक्टरों पर हाथ छोड़ने लगे हैं। पर डॉ. बद्रीनाथ का उनके रोगी और सहयोगी तहेदिल से सम्मान करते थे। बेशक, डॉक्टरों से हाथापाई करने वालों की हरकतों के कारण भ्रष्ट डाक्टरों के खिलाफ मुहिम कमजोर पड़ती है। रोगी और डॉक्टरों के संबंधों में मिठास घोलने की जरूरत है। इसकी पहल डॉक्टरों को ही करनी होगी। ग्राहक को भगवान का दर्जा दिया गया है। डॉक्टरों के लिए भी उनके मरीज ग्राहक रूपी भगवान हैं। मरीजों के लिए तो डॉक्टरों को पहले से ही भगवान का दर्जा प्राप्त है। लेकिन, उन्हें अपने व्यवहार में विनम्रता लाने की सख्त जरुरत है। वे भी रुखा व्यवहार और बदतमीजी नहीं कर सकते। उन्हें डॉ. बद्रीनाथ से प्रेरणा लेनी होगी। डॉ. बद्रीनाथ का जीवन किसी भी डॉक्टर के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
खैर, यह कहना तो सरासर गलत होगा कि सारे ही डॉक्टर खराब हो गए हैं या सभी पैसे के पीर ही हो गए हैं। अब भी बड़ी संख्या में डॉक्टर निष्ठा और लगन से अपने पेशे के साथ ईमानदारी पूर्वक न्याय कर रहे हैं। सुबह से देर रात तक कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हां, पर कुछ धूर्त डाक्टरों ने अपने पेशे के साथ न्याय तो नहीं ही किया है। भारत में मेडिसन के पेशे से जुड़े सभी लोगों को यह तो मानना ही पड़ेगा कि उनकी तरफ से देश में कोई बड़े अनुसंधान तो हो नहीं रहे, जिससे कि रोगियों का स्थायी भला हो। पर उन पर फार्मा कंपनियों से माल बटरोने से लेकर पैसा कमाने के दूसरे हथकंडे अपनाने के तमाम आरोप लगते ही रहते हैं। क्या ये सारे आरोप मिथ्या हैं? क्या फार्मा कम्पनियों से पैसे लेकर उनकी ही ब्रांडेड दवाईयां लिखने वाले डोक्टरों के प्रति मरीजों और उनके सगे-सम्बन्धियों में कभी ऐसे डॉक्टरों के प्रति कभी भी सम्मान का भाव जागेगा? इस तरह के तमाम गंभीर आरोप डॉ. बद्रीनाथ पर तो नहीं लगते थे।
नेत्र चिकित्सक डॉ. बद्रीनाथ की बात करते हुए यह कहना जरूरी है कि हरेक इंसान को अपनी आंखों का बहुत ध्यान देना चाहिए। इंसान के सबसे जरूरी अंगों में से एक है आंख। लेकिन हम इंसान आंखों का ही ख्याल नहीं रखते हैं।आंखों से जुड़ी सभी तरह की बीमारियों से बचने का सबस आसान उपाय यह है कि पहले इस रोका जाए। इसके लिए सबसे पहले आपको आंखों में होने वाले इंफेक्शन से बचना होगा। जब भी आंख में दिक्कत शुरू हो तो वक्त रहते इसका इलाज करवाएं। अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो हमेशा इसे कंट्रोल में रखें। इसके अलावा आंखों में अगर कैटरेक्ट और ग्लूकोमा जैसी कोई दिक्कत है तो उसका वक्त रहते इलाज करवाएं। डॉ. बद्रीनाथ मानते थे कि हर व्यक्ति को हरेक 3 महीने में एक बार जरूर आंख का चेकअप करवाना चाहिए। साथ ही विटामिन ए से भरपूर चीजों को अपनी डाइट में शामिल कर लेना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा मौसमी फल और सब्जियां अपनी डाइट में शामिल करना जरूरी है। कंप्यूटर और मोबाइल का इस्तेमाल कम से कम करें और कोशिश करें कि आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए एक्सरसाइज और योग करें।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)