पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन कितना जरूरी?

ओम प्रकाश उनियाल

हरे-भरे पहाड़ जहां भी होंगे खुबसूरती तो संजोए ही होते हैं साथ ही पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन में भी अपनी पूरी भूमिका निभाते हैं। बेशक वे छोटे हों या बड़े। हिमालय की गोद में जो भी हरितिमा से परिपूर्ण पहाड़ हैं उनसे शुद्ध व परिष्कृत वायु जब चलती है तो ऐसी वायु हर प्राणी के लिए लाभदायक होती है। यह वायु सजीव चीजों के साथ-साथ निर्जीव वस्तुओं में जान डाल देती है। वैसे तो पर्यावरण संरक्षण के लिए पूरे विश्व में मुहिम चल ही रही है। समस्या यह है कि लोगों में जिस हिसाब से जागरूकता आनी चाहिए वह बहुत ही कम देखने को मिल रही है। आज तरह-तरह का प्रदूषण फैल रहा है। जल, वायु, ध्वनि आदि। नतीजन हरेक के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। यह स्थिति भारत में ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में है। इसके अलावा तरह-तरह का कूड़ा-करकट जैसे, प्लास्टिक, पॉलिथीन, ई-कचरा बहुतायत मात्रा में जमा होता रहता है। जिसे जमीन या समुद्र व नदियों में फेंका जाता है। यह नहीं सीवरेज, औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाला रसायन आदि भी नदियों या समुद्र में बहाया जाता है। जिसका असर मनुष्य के साथ-साथ जलीय-जीवों पर भी पड़ रहा है। मैदानी इलाके दुनिया में जहां भी हैं चंद को छोड़कर विभिन्न प्रकार के प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। जिसके लिए एक दिन की नहीं बल्कि लगातार पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन की मुहिम चलाना जरूरी है। वरना एक दिन ऐसा आएगा जब इस धरा पर जीवन खत्म हो जाएगा। धरा निर्जीव हो जाएगी। अस्तित्व मिट जाएगा। उचित यही है कि हर व्यक्ति ‘पर्यावरण मित्र’ की भूमिका निभाए। धरती को साफ-सुथरा रखें। खाली जगहों पर अधिक से अधिक विभिन्न प्रजाति के पेड़ लगाएं। नदियों में गंदगी न फैलाएं।