
सुनील कुमार महला
प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस (World Humanitarian Day) मनाया जाता है।पाठकों को बताता चलूं कि यह दिन मानवीय सहायता कर्मियों और आपदा, युद्ध व संकट की घड़ी में जान बचाने वालों की याद में मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह दिन हमें उन लोगों की स्मृति दिलाता है, जिन्होंने विभिन्न मानवीय संकटों के दौरान अपनी जान गंवाई या मानवीय उद्देश्यों के लिए दूसरों की मदद करते हुए अपनी जान जोखिम में डाली। आंकड़े बताते हैं कि 2024 में, 816 मानवीय कार्यकर्ता हमलों का शिकार हुए तथा जिनमें 383 कार्यकर्ता मारे गए। यह 2018 में दर्ज हमलों (410) की संख्या से लगभग दोगुना और उस वर्ष हुई मौतों से तीन गुना अधिक है। वास्तव में, यह दिवस लोगों में ‘मानवता’ की भावनाओं को जाग्रत करता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी विपदा, आपदा या जोखिम में एक मानव ही दूसरे मानव के काम आता है। मानवता एक व्यापक शब्द है,जिसे परिभाषित करना आसान नहीं है।याद रखिए कि किसी विपत्ति, आपदा, जोखिम की स्थिति में मदद के लिए आंखें मानव समाज को ही ढूंढती हैं।गौरतलब है कि भारत में मानवता के ऐसे कई प्रतिबिंब है, जो आज भले ही भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हो, लेकिन आज भी वे गर्व के साथ याद किए जाते हैं। उनमें प्रमुखता से मदर टेरेसा और महात्मा गांधी का नाम आता हैं। आज एशिया और अफ्रीका में बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं, जहां भुखमरी एक बहुत बड़ी समस्या है, लोग कुपोषण और बीमारियों के शिकार हैं, ऐसे हिस्सों में मानव समाज की बहुत जरूरत है,जो मानवता को भुखमरी जैसी समस्या से मदद के जरिए उबार सकते हैं।पाठक जानते हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान पूरा विश्व एक दूसरे के साथ खड़ा नजर आ रहा था। इस दौरान न जानें कितने डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी और मीडियाकर्मी और फ्रंटलाइन वर्कर्स ने खुद की जान को जोखिम में डालकर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए दुनिया से अलविदा कह दिया था और दुनियाभर को इंसानियत से परिचय कराया। यही वास्तव में सच्ची मानवता थी।भूखे को रोटी देना,प्यासे को पानी देना, वस्त्रहीन लोगों को वस्त्र उपलब्ध कराना, बेघर को आसरा प्रदान करना, गरीबों को शिक्षित करना, अंधे, विकलांग, बीमार व्यक्ति की सहायता करना,बेरोजगारों को रोजगार देना,पशु-पक्षी, मूक प्राणियों को अभयदान,गरीब, कमजोर लोगों की मदद तथा दुःखी और निराश लोगों को हिम्मत देना सच्चा धर्म,सच्ची ईश्वर भक्ति व सच्ची मानवता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि विश्व मानवतावादी दिवस इन पेशेवरों के साहस, प्रतिबद्धता और योगदान को, विशेष रूप से उन लोगों को जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया है, सम्मानित करता है।
बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि इस दिन से जुड़ी कुछ विशेष और कम ज्ञात बातें भी हैं, जिनके बारे में ज़्यादातर लोग नहीं जानते हैं। गौरतलब है कि इस दिवस का इतिहास संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर हमले से जुड़ा है।दरअसल, 19 अगस्त 2003 को बगदाद (इराक़) में यूएन मुख्यालय पर एक बम हमला हुआ था, और इसमें 22 लोग मारे गए थे, जिनमें यूएन के शीर्ष मानवीय राजनयिक सर्जियो विएरा डी मेलो भी शामिल थे और इसी घटना की स्मृति में साल 2008 से यह दिन मनाया जाने लगा। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इस दिन का कोई स्थायी नारा नहीं है।हर साल एक नई वैश्विक थीम इस दिन के लिए तय की जाती है। आज दुनिया भर में अनेक मानवीय चुनौतियां विद्यमान हैं। मसलन, जलवायु संकट, शरणार्थी, युद्ध, भुखमरी आदि। इन सभी चुनौतियों पर ध्यान खींचने के लिए नया कैम्पेन और थीम तय की जाती है। उल्लेखनीय है कि विश्व मानवतावादी दिवस 2024 की थीम ‘मानवता के लिए कार्य करें’ रखी गई थी और इस साल यानी कि वर्ष 2025 में यह थीम ‘वैश्विक एकजुटता को मजबूत करना और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना’ रखी गई है। वास्तव में, यह थीम मानवीय सहायता के पीछे एक सरल विचार को दर्शाती है कि ‘अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मानवीय संकटों से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए एक साथ आना चाहिए , लेकिन ऐसा इस तरह से किया जाना चाहिए कि स्थानीय समुदायों के साथ न केवल लाभार्थियों के रूप में काम किया जाए, बल्कि सक्रिय प्रतिभागियों और नेताओं के रूप में काम किया जाए जो अपने भविष्य को स्वयं आकार दे सकें।’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि मानवीय कार्यकर्ता अक्सर अज्ञात नायक होते हैं।बड़ी आपदाओं में डॉक्टर, नर्स, स्वयंसेवक, राहतकर्मी और स्थानीय लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं, परंतु यह विडंबना ही कही जा सकती है कि दुनिया के अधिकांश लोग उनके नाम तक नहीं जानते। वास्तव में, यह दिन उन्हीं की गुमनाम बहादुरी को याद करता है।हाल के वर्षों में यह दिन सिर्फ युद्ध-पीड़ित क्षेत्रों पर ही नहीं, बल्कि क्लाइमेट चेंज और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, अनावृष्टि, भू-धंसाव, मौसमी आपात स्थितियों के साथ ही साथ भुखमरी, सुरक्षा आदि पर भी फोकस करने लगा है। यूएन और विश्वभर में अनेक गैर सरकारी संगठन इस दिन पर दुनियाभर में सोशल मीडिया कैम्पेन चलाते हैं। उल्लेखनीय है कि 2014 से यह इंटरनेट पर मानवीय मुद्दों के लिए सबसे बड़ा वैश्विक ऑनलाइन अभियान माना जाता है। केवल बड़े एनजीओ या यूएन कर्मचारी ही नहीं, बल्कि वे स्थानीय लोग भी इस दिन सम्मानित होते हैं, जो बिना किसी नाम-शोहरत के ज़िंदगियाँ बचाते हैं। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत ने विश्व भर में हमेशा-हमेशा से मानवीय सहायता में बड़ी भूमिका निभाई है—फिर चाहे नेपाल वह भूकंप हो, श्रीलंका सुनामी, या अफ्रीका में दवा और अनाज की मदद। गौरतलब है कि भारत ने कोरोना महामारी के दौरान अनेक देशों को दवाएं भेजी। इस दौरान भारत ने दवाओं की गुणवात्ता से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया और कीमतों में भी वृद्धि नहीं की। भारत ने वैक्सीन मैत्री अभियान के अंतर्गत 96 देशों को 162.9 मिलियन (16.29 करोड़) कोविड-19 वैक्सीन की खुराकें उपलब्ध कराई। इनमें से 14.3 मिलियन (1.43 करोड़) वैक्सीन गिफ्ट की गईं, जबकि बाकी वाणिज्यिक और कोवैक्स माध्यम से भेजी गईं। वर्ष 2025 के दौरान भारत द्वारा(आपरेशन ब्रह्मा) म्यांमार के भूकंप में 118 सदस्यीय फील्ड अस्पताल यूनिट और 60 टन राहत सामग्री भेजी गई। वर्ष 2023 में आपरेशन दोस्त के तहत तुर्की और सीरिया में भूकंप पीड़ितों को एनडीआरएफ, फील्ड अस्पताल, मेडिकल सप्लाई, ड्रोन आदि भेजे। वर्ष 2022 में आपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन युद्ध के दौरान भारतीयों का विस्थापन एवं चिकित्सा आपूर्ति की गई। इतना ही नहीं, पाकिस्तान-इज़राइल संघर्ष के दौरान 2023 में पैलेस्टीन को दो ट्रांच में सहायता भेजी गई, जिनमें क्रमशः 22 अक्टूबर को 6.5 टन चिकित्सा सामग्री प्लस 32 टन राहत सामग्री, 19 नवंबर को 10 टन चिकित्सा सामग्री प्लस 22 टन राहत सामग्री तथा दवाइयां, मेडिकल उपकरण, तंबू, पलंग, जल शुद्धिकरण आदि शामिल थे। इतना ही नहीं, वर्ष 2024 के दौरान अफ्रीकी देश जाम्बिया को हैजा के प्रकोप के जवाब में करीब 3.5 टन दवाइयां, क्लोरीन टेबलेट्स, जल शुद्धिकरण सामग्री और ओआरएस भेजी गईं, यह अपने आप में मानवता की बहुत बड़ी मिसाल थी। पाठकों को बताता चलूं कि भारतीय सेना की ‘ऑपरेशन राहत’ जैसी मानवीय पहलकदमियां विश्व स्तर पर सराही गई हैं। अंत में यही कहूंगा कि इस दिन का असली संदेश यही है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, यानी कि ‘यह पृथ्वी एक परिवार है।’ सच तो यह है कि मानवता सबसे ऊपर है — धर्म, राजनीति, सीमा या भाषा से भी बड़ी। हमारे यहां तो संस्कृत में बड़े ही खूबसूरत शब्दों में कहा भी गया है कि-‘परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः, परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थमिदं शरीरम्।’ तात्पर्य यह है कि
वृक्ष दूसरों के लिए फल देते हैं, नदियाँ दूसरों के लिए बहती हैं, गायें दूसरों के लिए दूध देती हैं, और यह शरीर भी दूसरों की भलाई के लिए ही है।