ओम प्रकाश उनियाल
यूं तो कहने को हिन्दी में समाचार पत्र-पत्रिकाओं, इलेक्ट्रोनिक व सोशल मीडिया की बाढ़-सी आती जा रही है। जो कि हिन्दी पत्रकारिता के लिए शुभ संकेत है। लेकिन चिंतनीय विषय यह है कि हिन्दी पत्रकारिता का बीड़ा उठाने वाले हमेशा दयनीय स्थिति में रहते हैं। दूसरे, जिस गति से हिन्दी पत्रकारिता निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ रही है उस हिसाब से उसका स्तर भी घटता जा रहा है। कुछ हिन्दी अखबारों, पत्रिकाओं व समाचार चैनलों को छोड़कर अधिकतर केवल अपनी संख्या बढ़ाने पर लगे हुए हैं। पाठकों, दर्शकों को वे क्या परोस रहे हैं इस बात का ध्यान कम ही रखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर तो कुछ ने हिन्दी पत्रकारिता का स्वरुप ही बिगाड़ कर रख दिया है। तथाकथित डिजिटल समाचार चैनल, फेसबुकिया एवं यूट्यूब पत्रकार तो हिन्दी पत्रकारिता को भटकाने पर तुले हुए हैं। न शब्द-संयोजन, न वाक्य-विन्यास और ना ही सम्पादन। जो मन में आया वह लिख डाला। पत्रकारिता तो पवित्र पेशा है। समाज के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है पत्रकारिता करने वालों की। यह समझना जरूरी है कि पत्रकारिता में संयम बरतना है। हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी। 30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने ‘उद्न्त मार्तण्ड’ की शुरुआत कर हिन्दी पत्रकारिता की नींव रखी। जो कि अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बने रहने के कारण उनके द्वारा अल्पावधि में बंद करवा दिया गया। हालांकि, तत्पश्चात भी अन्य पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होते रहे। आजादी के बाद हिन्दी पत्रकारिता का विस्तारीकरण हुआ, नया आयाम मिला तो जरूर किन्तु चुनौतियां आज तक बरकरार हैं। 30 मई को प्रतिवर्ष हिन्दी पत्रकारों का सम्मान व गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। हिन्दी पत्रकारिता को अत्यधिक मजबूत बनाने की जिम्मेदारी हर पत्रकार को उठानी होगी। तभी इस दिवस को मनाने का महत्व माना जाएगा।