आम-जनमानस के हित में सरकारी चिकित्सा तंत्र को बेहतर करना समय की मांग

Improving the government medical system in the interest of the general public is the need of the hour

दीपक कुमार त्यागी

भारत को आज़ाद हुए 77 वर्षों से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन आज़ादी के वक्त देश की जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से संसाधनों की भारी कमी होने के चलते सरकार की चिकित्सा व्यवस्था भगवान के भरोसे थी। लेकिन अफसोस आज 77 वर्षों के बाद भी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की राह काफी ज्यादा मुश्किलें भरी हैं, बड़ी संख्या में सरकारी अस्पताल सरकार के द्वारा तय मानकों पर खरा नहीं उतरते हैं। सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में सबसे बड़ा अड़ंगा सिस्टम में बैठे हुए कुछ लोगों की देश में निजी चिकित्सा व्यवस्था को प्रोत्साहन देने की सोच बड़ी बाधक बनी हुई है, वहीं रही-सही कसर सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार, लोभ-लालच पूरा कर देता है। जबकि देश में अब बेहद मंहगी हो गयी निजी चिकित्सा व्यवस्था के चलते आम-जनमानस के हित में सरकारी चिकित्सा तंत्र को बेहतर करना समय की मांग है।

देश में शहरों से लेकर के गांव तक में सरकारी व निजी तंत्र के द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही चिकित्सा व्यवस्था के क्या हाल हैं, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। देश में आये दिन ही चिकित्सा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाने वाली घटनाएं घटित होना अब एक आम बात होती जा रही है। उसी कड़ी में कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निजी अस्पतालों, नर्सिंग होमों को लेकर के एक मामले का निर्णय सुनाते हुए विचारणीय टिप्पणी करने का कार्य किया है। हाई कोर्ट ने यहां तक कह दिया है कि निजी अस्पताल मरीजों को एटीएम की तरह इस्तेमाल कर पैसे निकालते हैं। वैसे धरातल के हालात देखें जायें तो यह टिप्पणी निजी चिकित्सा तंत्र के बहुत सारे छोटे व फाइव स्टार सुविधा देने वाले बड़े अस्पतालों तक पर भी एकदम से सटीक बैठती है। वैसे देखा जाए तो माननीय न्यायमूर्ति की टिप्पणी को आम-जनमानस के हित में हमारे देश के सिस्टम को एक चेलेंज के रूप में लेना चाहिए, जिसके तहत सिस्टम को निजी अस्पतालों के द्वारा किया जाने वाले मरीजों का बेहद महंगा इलाज और उपचार के नाम पर की जाने वाली लूट-खसोट बंद होनी चाहिए, हमारे सिस्टम को सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिसमें लोगों को समय रहते हुए ही उच्च गुणवत्ता पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था मिल सकें, जिससे की भविष्य में देश में कहीं पर भी देरी से इलाज होने वाली स्थिति ना हो, लोगों को आसानी से ही सरकारी अस्पतालों में बेहतरीन इलाज मिल सकें।

लेकिन अफसोस की बाद यह है कि जिस देश के 80 करोड़ लोगों को सरकार को पेट भरने के लिए फ्री राशन तक देना पड़ रहा है। उस देश में आम-जनमानस की मांग के अनुसार सरकारी तंत्र की सस्ती, सुलभ, उच्च गुणवत्ता पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था ना होने का जबरदस्त लाभ एक पूरा निजी तंत्र जमकर लेने का कार्य कर रहा है, वह निजी तंत्र लोगों को इलाज़ के नाम पर मनमाने रेटों का पूरा पैकेज बेचकर के अपनी तिजोरी भरने का कार्य कर रहा है। लोगों व सिस्टम ने देखा है कि कोरोना काल में सरकार की सख्ती के बावजूद भी निजी तंत्र के बहुत से अड्डों पर मरीजों के लाचार परिजनों से किस तरह से मनमाने ढंग से वसूली करने का खेल चला था, मरीजों के लाचार परिजनों को लुटते-पिटते देखा था। जिसके चलते ही देश में आज आम-जनमानस को इलाज़ के नाम पर चल रही बड़े पैमाने पर लूट-खसोट से बचाने के लिए पूरे देश में सरकारी चिकित्सा तंत्र को बेहतर बनाना समय की एक बेहद ही आवश्यक मांग है।

वैसे भी देश में आज़ादी के बाद से ही केंद्र व राज्य सरकारों के स्तर से सरकारी चिकित्सा की सम्पूर्ण व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए निरंतर काम चल रहा है, लेकिन फिर भी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से सरकारी चिकित्सा तंत्र के पास डॉक्टर, नर्स, सहयोगी स्टाफ व अन्य आवश्यक संसाधनों की भारी कमी है। जिसके चलते ही पूरे देश में निजी चिकित्सा तंत्र को पैर फैलाने का भरपूर अवसर मिला और देश के शहरों व कस्बों में छोटे-बड़े अस्पताल खुलने लग गये। लेकिन अफसोस अधिकांश निजी अस्पतालों से भारी मुनाफा कमाने का सरल अवसर देखकर के धीरे-धीरे यह कार्य लोगों को जीवन देनी वाली समाजसेवा की जगह एक जबरदस्त लाभ कमाने के अवसर देने वाला बहुत बड़ा संगठित व्यापार बन गया। इस संगठित व्यापार में अब नामचीन डॉक्टरों के साथ-साथ साझीदार के रूप में देश के कुछ ताकतवर राजनेताओं, कुछ उद्योगपतियों, कुछ अधिकारियों का एक पूरा नामी व बेनामी गठजोड़ खड़ा हो गया है। इस गठजोड़ की कृपा से देश में लोगों को इलाज़ उपलब्ध करवाने की आड़ में पिछले कुछ दशक में ही पूरे देश में निजी चिकित्सा तंत्र का पूरा एक ऐसा ताकतवर जाल बन गया है, जिसमें अधिकांश मरीजों के परिजनों का फंसना तय है। लेकिन फिर सरकार में बैठे हुए हुक्मरानों व सिस्टम को आम जनमानस का यह दर्द ना जाने क्यों नज़र नहीं आता है।

हालांकि देश में जिस तेज़ी के साथ जनसंख्या वृद्धि हो रही है, उस स्थिति में देश में सरकारी व निजी स्तर पर मज़बूत चिकित्सा व्यवस्था की बेहद आवश्यकता है। सरकारी व निजी अस्पतालों की बात करें तो देश में लगभग 70,000 अस्पताल हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वर्ष 2018 की रिपोर्ट बताती है कि जिसमें से 23,582 सरकारी अस्पताल हैं, 29,899 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं, वहीं 5,568 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) हैं, 1,255 उप-जिला अस्पताल (एसडीएच) हैं और 1,003 जिला अस्पताल (डीएच) हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2025 में इनकी संख्या 26,000 हो गई होगी।

वहीं देश में लगभग 43,486 के करीब निजी अस्पताल हैं, निजी चिकित्सा व्यवस्था वाला क्षेत्र देश के शहरी क्षेत्रों में बेहद मज़बूत हो चुका है। हांलांकि सरकारी और निजी चिकित्सा वाला इस तंत्र से शहर व गांव दोनों क्षेत्रों के ही निवासी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं। भारत में निजी अस्पतालों की हिस्सेदारी सभी सुविधाओं में का लगभग 62 प्रतिशत है। बेहद मंहगा होने के बावजूद भी अब देश में आलम यह हो गया है कि निजी चिकित्सा व्यवस्था लोगों के इलाज़ में बेहद ही महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। हालांकि यह विचारणीय तथ्य है कि बहुत सारे निजी क्षेत्र के अस्पताल आज भी मूल्यानुसार उचित इलाज़ की सुविधा नहीं दे पा रहे है और देश में उस चिकित्सा के महंगे मूल्य का भुगतान सरलता से करने की क्षमता बहुत कम लोग रखते हैं, बाकी सब जरूरतमंद लोगों को सरकारी योजनाओं, सरकारी पैनल व इंश्योरेंस कंपनियों आदि की तरफ ही उम्मीद भरी नज़रों से ही देखना पड़ता है, तब कहीं जाकर के उन बेचारों का इलाज़ हो पाता है। वरना तो देश में अब यह आलम हो गया है कि निजी अस्पतालों में इलाज़ करवाने में अच्छे से अच्छे लोगों तक के भी मकान-दुकान जमीन-जायदाद तक बिकते हुए अधिकांश लोगों ने देखें हैं और अब तो निजी क्षेत्र के अस्पतालों में भी इतनी ज्यादा मारामारी है कि इलाज़ में चूक व हीलाहवाली होना भी एक आम बात हो गई है।

वैसे अगर हम भारत की सरकारी व निजी अस्पताल वाली इस पूरी चिकित्सा व्यवस्था की प्रणाली की तुलना करके देखें तो यह यह स्पष्ट रूप से नज़र आता है कि सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में इलाज़ सटीक व बेहद सस्ता है। वहीं निजी अस्पतालों में इलाज़ बेहद मंहगा हो गया है, साथ ही बहुत सारे निजी अस्पतालों इलाज़ की आड़ में मरीज़ के परिजनों को एटीएम मान लिया गया है, वह जब चाहे तब गैर जरूरी मंहगी जांच, दवाईयां व ऑपरेशन तक भी बेख़ौफ़ होकर के पैसे कमाने के लिए कर देते हैं, जो स्थिति मरीज़ के जीवन से खिलवाड़ के साथ-साथ उसके परिजनों का आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न है। जिसके चलते ही देश के शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली बहुत बड़ी आबादी घंटों-घंटों तक इंतजार करते हुए, संसाधनों का भारी अभाव झेलने वाली सरकारी क्षेत्र की चिकित्सा व्यवस्था पर ही निर्भर है। क्योंकि वह बेचारे निजी अस्पतालों का भारी-भरकम इलाज का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हैं।

लेकिन देश में स्थिति ऐसी हो गयी है कि सरकारी अस्पतालों में भारी भीड़ होने के चलते इलाज़ देरी से मिलने के कारण मरीज़ का मर्ज़ गंभीर हो जाने से उसकी जान तक पर बन जाती है, जिसके चलते शहरों, कस्बों और गांवों तक में निजी चिकित्सा व्यवस्था के भरोसे ना चाहते हुए भी लोगों को रहना पड़ता है। इसलिए देश के नीति-निर्माताओं को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की आबादी को लूट-खसोट से बचाते हुए उच्च गुणवत्ता पूर्ण सुलभ चिकित्सा सेवा प्रदान करने में सरकारी अस्पताल की महत्वपूर्ण भूमिका को कम से कम अब तो समझना होगा, उनको देश की जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से दूरदराज़ के इलाकों तक में सरकारी चिकित्सा व्यवस्था का संसाधन युक्त तंत्र बनाकर लोगों को सस्ता सुलभ इलाज़ उपलब्ध करवाकर भारी मुनाफाखोरी में संलिप्त निजी चिकित्सा क्षेत्र की लूट-खसोट से बचाना होगा।