- भारत पदक जीतना है भारतीय हॉकी के लिए बड़ी उपलब्धि होगी
- बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया,नीदरलैंड, स्पेन व भारत की टीमें खासी मजबूत
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : अपने जमाने के बेहतरीन लेफ्ट आउट रहे पूर्व ओलंपियन जफर इकबाल और महरूम लेफ्ट इन मोहम्मद शाहिद की जोड़ी के हॉकी मैदान पर किस्से आज भी बीते जमाने के हॉकी धुरंधरों ही नहीं हॉकी के मुरीदों को आज भी रोमांचित करते हैं। भारत अब से एक महीने बाद एफआईएच ओडिशा हॉकी पुरुष हॉकी विश्व कप 2023 की मेजबानी की मेजबानी को कमर कसे है। भारतीय पुरुष हॉकी टीम की निगाहें 1975 में क्वालालंपुर में आखिरी बार हॉकी विश्व कप जीतने के 48 बरस बाद अब अपने घर में पदक जीतने की है। भारत की 1980 में आठवीं और अंतिम बाद मास्को ओलंपिक में स्वर्ण और 1978 में बैॅकॉक और 1982 में नई दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने वाली तथा 1984 की लॉस एंजेल्स ओलंपिक में शिरकत करने वाली जफर इकबाल ने अपने एक दशक से लंबे अंतर्राष्टï्रीय हॉकी करियर में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
१९७५ में अशोक कुमार सिंह के गोल से भारत के पहली बार विश्व कप जीतने के तीन बरस यानी 1978 में जफर इकबाल पहली बार 1978 में ब्यूनर्स आयर्स हॉकी विश्व कप में खेले। 1978 में भारतीय हॉकी टीम विश्व कप में छठे स्थान पर रही थी। भारत की 13 जनवरी, 2023 से शुरू हो रहे पुरुष हॉकी विश्व कप में संभावनाओं की बाबत जफर इकबाल कहते हैं, ‘ विश्व कप जैसे विश्व स्तरीय टूर्नामेंट में आप कभी यह नहीं जान सकते कि कौन सी टीम पूरे रंग में है। मौजूदा चैंपियन बेल्जियम के साथ, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया , इंग्लैंड, स्पेन और मेजबान भारत जैसी इस बार विश्व कप में शिरकत कर रही टीमें खासी मजबूत है। कतर में चल रहे विश्व कप फुटबॉल में पूर्व चैंपियन स्पेन, जर्मनी और ब्राजील जैसी टीमें बाहर हो चुकी हैं। इस तरह के बड़े टूर्नामेंट मे आप यह नहीं कह सकते कि कौन सी टीम किस टीम को हरा दे। इसीलिए फुटबॉल विश्व कप की विजेता की भविष्यवाणी करना खासा मुश्किल होता है। इसी बार ओडिशा हॉकी पुरुष हॉकी विश्व कप में भी कौन खिताब जीतेगा इसकी भविष्यवाणी करना खासा मुश्किल है। भारत की टीम ओडिशा पुरुष हॉकी विश्व कप में स्पेन, इंग्लैंड और वेल्स के साथ मुश्किल ग्रुप डी में है। हमें ग्रुप चरण में में मुश्किल मैच खेलने होंगे।हमारे ग्रुप में स्पेन, इंग्लैंड और वेल्स जैसी मजबूत टीमें हैं और सभी अपने लिहाज से खासी मजबूत हैं। मेरा मानना है कि भारत इस बार विश्व कप मे पदक जीतता है तो भारतीय हॉकी के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। हमारी भारतीय टीम में कई ऐसे जु़झारू खिलाड़ी हैं जो हमेशा ही अपना सर्वश्रेष्ठï देते है । भारत के ये हॉकी खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में उसे लंबे अंतराल के बाद कांसे के रूप में पदक जिता कर उसके हीरो रहे थे।’
यादों के झरोखे से…
‘1978 विश्व कप में जर्मनी से हार व इंग्लैंड से ड्रॉ बड़ा झटका’
1978 में पहली बार भारत के लिए पुरुष हॉकी विश्व कप में शिरकत करने का जिक्र आते ही जफर अतीत की यादों में खो जाते हैं। जफर कहते हैं, ‘ मैंने 1977 में भारत के लिए घर में नीदरलैंड के खिलाफ हॉकी टेस्ट सीरीज में अपना पहला मैच खेला। इसके बाद 1978 के हॉकी विश्व कप के लिए ब्यूनर्स आयर्स(अर्र्जेंटीना) रवाना होने से पहले हमें विदेश में कुछ सीरीज खेलीं। हमारी1978 में हॉकी विश्व कप में शिरकत करने वाली टीम में 1975 में खिताब जीतने वाली टीम के कई सदस्य थे। हम 1978 में अर्जेंटीना पहुंचने पर हॉकी विश्व कप खिताब जीतने के दावेदार थे और खिताब बरकरार रखना चाहते थे और यही हमारी इसमें शिरकत करने की प्रेरणा भी थी। हमारी टीम में 1975 की विश्व कप जीतने वाली टीम के साथ कई नए खिलाड़ी भी थे। हम सभी बड़े मंच पर बढिय़ा प्रदर्शन को बेताब थे और हमारी टीम खासे विश्वास से भरी थी। हम बदकिस्मती से कनाडा से पहला मैच हार गए और लेकिन इसके बाद हमने ऑस्ट्रेलिया से अपना मैच जीता। जर्मनी के खिलाफ 0-7 से हार और इंग्लैंड से एक एक से ड्रॉ खेलने के कारण हम सेमीफाइनल के लिए क्वॉलिफाई नहीं कर पाए। 1978 के विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद कई आसान मैच हार गए। हम जर्मनी के खिलाफ हारने और इंग्लैड से ड्रॉ खेलने के कारण ही सेमीफाइनल में स्थान बनाने से चूक गए। हमारी भारतीय टीम के लिए यह बड़ा झटका था क्योंकि हम इसमें बतौर चैंपियन उतरे थे। तब हम स्पेन से अपना अंतिम मैच हार कर छठे स्थान पर रहे।’
‘ एस्ट्रो टर्फ ने हॉकी को ताकत के खेल के तब्दील कर दिया था’
भारत के लिए मुंबई में 1982 हॉकी विश्व कप में भी शिरकत करने वाले जफर इकबाल बताते हैं कि 1970 से 1980 के बीच हॉकी किस तरह बदलनी शुरू हुई। जफर बताते हैं, ‘हमारे जमाने में हॉकी घास पर खेली जाती थी। 1980 के करीब दुनिया भर में हॉकी में घास की जगह एस्ट्रो टर्फ ने लेनी शुरू कर दी। हालांकि 1982 में बॉम्बे (अब मुंबई) में अपने घर में हॉकी विश्व कप घास पर खेला और हम इसमें पूरी क्षमता से खेल पाए और एक बार फिर सेमीफाइनल में जगह नहीं बना सके। एस्ट्रो टर्फ ने हॉकी को ताकत के खेल के तब्दील कर दिया था। खिलाडिय़ों को एस्ट्रो टर्फ पर ज्यादा फिट और ज्यादा दमखम की दरकार थी। हमें अब यूरोपीय शैली की ज्यादा आक्रामक खेलने की जरूरत थी। हमें वक्त के साथ कदमताल करने के लिए अपना खेल बदलने की जरूरत थी। एक बार जब हॉकी एस्ट्रो टर्फ पर ही खेली जाने तो हमें खुद को इस पर खेलने के मुताबिक ढालना ही था।’