सुनील कुमार महला
पहलगाम आतंकी हमले की बहुत ही दुखद खबर के बाद हाल ही में विश्व बैंक से एक अच्छी खबर आई है। यह खबर ग़रीबी उन्मूलन पर है। ग़रीबी वास्तव में एक बहुत बड़ी व ज्वलंत समस्या है। यदि हम यहां गरीबी की साधारण परिभाषा की बात करें तो बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन या संसाधनों की कमी होना, जैसे भोजन, कपड़े, और आवास ग़रीबी के अंतर्गत माना जाता है। ऐसी स्थितियों में एक आम आदमी को बुनियादी जरूरतों जैसे कि रोटी,कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि को पूरा करने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो गरीबी एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति, परिवार, या समुदाय के पास जीवनयापन के लिए या समृद्ध जीवन के लिए बुनियादी ज़रूरतें हासिल करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं होते हैं। अमूमन गरीबी को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें क्रमशः निरपेक्ष, सापेक्ष और बहु-आयामी गरीबी को शामिल किया जा सकता है। यदि हम यहां निरपेक्ष गरीबी की बात करें तो एक निश्चित आय स्तर से नीचे होना इसमें आता है। वहीं सापेक्ष गरीबी समाज में अन्य लोगों की तुलना में गरीब होने को शामिल करती है तथा बहुआयामी गरीबी आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पहलुओं के अभाव को शामिल करती है। बहरहाल, अच्छी खबर यह है कि 10 साल में भारत के 17 करोड़ लोग अत्यंत गरीबी से बाहर निकले हैं। पाठकों को बताता चलूं कि वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत ने वर्ष 2011-12 से वर्ष 2022-23 के बीच 17 करोड़ से ज्यादा लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला है और इस दौरान अत्यधिक गरीबी की दर 16.2 प्रतिशत से घटकर मात्र 2.3 प्रतिशत ही रह गई है।इस दौरान, 171 मिलियन या 17.1 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला गया है। तात्पर्य यह है कि भारत में 171 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर हैं।ग्रामीण और शहरी इलाकों में गरीबी में भी बड़ी गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी दर 18.4 प्रतिशत से घटकर जहां 2.8 प्रतिशत रह गई है, वहीं दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में यह 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत रह गई है। इससे ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच का अंतर 7.7 प्रतिशत से घटाकर 1.7 प्रतिशत रह गया है, जो सालाना 16 प्रतिशत की गिरावट है। दरअसल, 37.8 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं, जो कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है और यह काबिले-तारीफ है कि भारत ग़रीबी उन्मूलन की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है। दरअसल,वर्ल्ड बैंक की हालिया ‘पॉवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ’ रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि भारत ने इस दौरान निम्न-मध्यम आय वर्ग में भी प्रवेश किया है। 3.65 अमेरिकी डॉलर प्रति दिन आय के आधार पर गरीबी की दर 61.8 प्रतिशत से घटकर 28.1 प्रतिशत रह गई है, जिससे 378 मिलियन या 37.8 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। यूएसडी (USD) 3.65 प्रति दिन की गरीबी रेखा के अनुसार, गरीबी 61.8% से घटकर 28.1% हो गई है, जिससे 37.8 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए हैं। ग्रामीण गरीबी 69% से घटकर 32.5% हो गई, और शहरी गरीबी 43.5% से घटकर 17.2% हो गई, जिससे ग्रामीण-शहरी अंतर 25 से 15 प्रतिशत अंक तक कम हो गया, जिसमें 7% की वार्षिक गिरावट आई है।भारत के पांच सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य—उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, और मध्य प्रदेश—ने 2022-23 तक अत्यधिक गरीबी में दो-तिहाई की गिरावट में योगदान दिया है।हालांकि, अब भी इन राज्यों भारत की 54 प्रतिशत अत्यधिक गरीब आबादी है और 51% बहुआयामी गरीब आबादी का हिस्सा हैं।रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि वर्ष 2019-21 तक नॉन मोनेटरी गरीबी दर 53.8 प्रतिशत से घटकर 16.4 प्रतिशत रह गई है। इतना ही नहीं, रोजगार वृद्धि ने भी कामकाजी उम्र की जनसंख्या को पार कर लिया है तथा शहरों में बेरोजगारी 6.6 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो वर्ष 2017-18 के बाद से सबसे कम है। युवा बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत है।कृषि सेक्टर में रोजगार अब भी अधिकांश रूप से असंगठित है।हालांकि, स्वरोजगार और महिलाओं की रोजगार दर में वृद्धि हो रही है। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भारत लगातार हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। सच तो यह है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबी में भारी कमी, रोजगार के नए अवसरों का सृजन, और भारत का निम्न-मध्यम आय वर्ग में कदम रखना—यह सब हमारे देश की प्रगति, इसके उन्नयन को ही दर्शाता है। यही कारण है कि आज भारत में 171 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर पहुंच चुके हैं।हालांकि, कुछ राज्यों में अभी भी गरीबी एक बड़ी समस्या है तथा युवाओं में बेरोजगारी एक चिंता का विषय है, लेकिन महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।यहां यह उल्लेखनीय है कि अत्यधिक गरीबी को प्रतिदिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम आय के रूप में परिभाषित किया गया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि सुधारों के बावजूद, अभी भी कुछ चुनौतियां मौजूद हैं।मसलन, रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि युवाओं में बेरोजगारी 13.3% है, और उच्च शिक्षा प्राप्त स्नातकों में यह दर 29% तक बढ़ जाती है। गैर-कृषि वेतनभोगी नौकरियों में से केवल 23% ही औपचारिक हैं और कृषि रोजगार का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक है। इसके अलावा, स्व-रोजगार बढ़ रहा है, खासकर ग्रामीण श्रमिकों और महिलाओं में, लेकिन लैंगिक असमानताएं अभी भी मौजूद हैं, क्योंकि पुरुषों की तुलना में 23.4 करोड़ अधिक महिलाएं वेतनभोगी काम कर रही हैं। बहरहाल, यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि विश्व बैंक की गरीबी और इक्विटी ब्रीफ 100 से अधिक विकासशील देशों में गरीबी, साझा समृद्धि और असमानता के रुझानों के बारे में जानकारी प्रदान करती है तथा ये ब्रीफ साल में दो बार जारी किए जाते हैं और विश्व स्तर पर गरीबी कम करने के प्रयासों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो विश्व बैंक के गरीबी और समानता संबंधी संक्षिप्त विवरण 100 से अधिक विकासशील देशों में गरीबी, साझा समृद्धि और असमानता के रुझानों पर प्रकाश डालते हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि गरीबी खराब स्वास्थ्य, कम जीवन प्रत्याशा, शिक्षा का अभाव, और भेदभाव को जन्म देती है। यदि हम यहां दुनिया के सबसे ग़रीब देशों की बात करें तो इनमें क्रमशः दक्षिण सूडान ,बुरुंडी ,मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मोज़ाम्बिक, नाइजर, मलावी, लाइबेरिया,मेडागास्कर और यमन को शामिल किया जा सकता है। वास्तव में ये देश राजनीतिक अस्थिरता, संघर्ष (युद्ध और हिंसा), बेरोजगारी, प्राकृतिक संसाधनों एवं शिक्षा-स्वास्थय की कमी के कारण गरीब हैं। वास्तव में कहना ग़लत नहीं होगा कि भ्रष्टाचार भी एक बहुत अमीर देश को गरीब बना सकता है और शोषणकारी उपनिवेशवाद, कमजोर कानून व्यवस्था, युद्ध और सामाजिक अशांति, गंभीर जलवायु परिस्थितियाँ या शत्रुतापूर्ण, आक्रामक पड़ोसियों का इतिहास भी ऐसा ही कर सकता है। हाल फिलहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत में 171 मिलियन लोगों का अत्यधिक गरीबी से बाहर आना पिछले दशक की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक है। वास्तव में यह हमारे देश की समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है। आज सरकार ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों पर बराबर ध्यान दे रही है। आज हमारे देश ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं जैसे कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत मिशन, पीएम मुद्रा योजना, अटल पेंशन योजना, स्मार्ट सिटी योजना और मेक इन इंडिया आदि, आर्थिक सुधारों और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से, गरीबी के स्तर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। आज उदारीकरण से सरकारी नियंत्रण कम हुआ है और निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिला है। भारत की वैश्वीकरण नितियों से भारत विश्व व्यापार में शामिल हुआ है और विदेशी निवेश को आकर्षित किया है, जिससे रोजगार सृजन हुआ है और ग़रीबी कम हुई है। सच तो यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास हुआ, फायदों की वृद्धि हुई, विदेशी निवेश बढ़ा, और भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकृत हुई है। पिछले कुछ सालों से रोज़गार सृजन कार्यक्रम, आय समर्थन कार्यक्रम, रोज़गार गारंटी तथा आवास योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना जैसे कार्यक्रमों से भारत विकास के सोपानों को लगातार छू रहा है। भारत में लगातार शिक्षा, स्वास्थ्य की उपलब्धता हर गांव ढ़ाणी में सुनिश्चित हुई है। महिलाओं के सशक्तीकरण से आर्थिक असमानता दूर हुई है तथा पोषण और स्वच्छता कार्यक्रमों से हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। संसाधनों और सेवाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित होने से विकास को पंख लगे हैं। वास्तव में उच्चतम और निम्न-मध्यम आय वाली गरीबी में तेज गिरावट, साथ ही ग्रामीण-शहरी गरीबी के अंतर में कमी, भारत सरकार के प्रभावी प्रयासों को दर्शाती है। इसके अतिरिक्त, रोजगार में वृद्धि, विशेष रूप से महिलाओं के बीच और बहुआयामी गरीबी में कमी जीवन स्तर में व्यापक सुधार की ओर इशारा करती है।