
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
कूटनीति और व्यापार के क्षेत्र में जब विश्व के बड़े राष्ट्र अपनी संकीर्णता और संरक्षणवाद की संकीर्ण गलियों में सिमट रहे हैं, तब भारत ने वैश्विक सहयोग और द्विपक्षीय साझेदारी की ऊंची राह पर अग्रसर होते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ब्रिटेन के साथ ‘समग्र आर्थिक एवं व्यापार समझौता’ (कॉम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक एंड ट्रेड एग्रीमेंट- सी ई टी ए) पर हस्ताक्षर कर एक ऐसा समझौता किया गया है, जिसे न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि रणनीतिक, तकनीकी और सांस्कृतिक दृष्टि से भी ‘गेम चेंजर’ माना जा रहा है। यह समझौता उस समय हुआ है जब वैश्विक व्यापारिक अस्थिरता, ट्रंप प्रशासन की उच्च टैरिफ नीति और ब्रेक्ज़िट के पश्चात ब्रिटेन की नई भू-राजनीतिक ज़रूरतें, सब कुछ पुनर्संयोजन की मांग कर रहे थे। ऐसे में यह डील भारत की दूरदर्शिता, वैश्विक नेतृत्व क्षमता और मजबूत नीति निर्धारण का प्रतीक बनकर उभरी है।
भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौते की रूपरेखा : नए दौर का द्वार
भारत और ब्रिटेन के बीच यह समझौता लगभग तीन वर्षों की कठिन वार्ताओं के बाद 2025 में संपन्न हुआ। इसे भारत का अब तक का सबसे समग्र (कंप्रेहेंसिव) और रणनीतिक व्यापारिक समझौता माना जा रहा है। वर्तमान में भारत-ब्रिटेन का कुल वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार लगभग $21.34 बिलियन डॉलर (2023-24) का है, जिसे इस समझौते के माध्यम से $34 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने और वर्ष 2030 तक $120 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह व्यापार वृद्धि दोनों देशों के लिए आर्थिक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होगी। यह समझौता ‘फ्री ट्रेड एग्रीमेंट’ (एफ टी ए) की अवधारणा के अंतर्गत आता है, जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार (आई पी आर), डिजिटल ट्रेड, डेटा प्रवाह, श्रम गतिशीलता, और कानूनी विवाद समाधान जैसे विभिन्न पहलुओं को समाहित किया गया है। यह डील केवल वस्तु व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सेवा क्षेत्र, कृषि उत्पाद, पेशेवर आवाजाही और तकनीकी सहयोग को भी एक नई ऊंचाई देती है।
व्यापार में वृद्धि और शुल्क में कमी : द्विपक्षीय लाभ का समुचित संतुलन
इस समझौते का सबसे बड़ा लाभ यह है कि भारत के लगभग 99% निर्यात को ड्यूटी-फ्री (शून्य शुल्क) पहुंच मिलेगी, जिससे वस्त्र, रत्न-आभूषण, चमड़ा, इंजीनियरिंग उत्पाद, समुद्री खाद्य, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को अभूतपूर्व लाभ मिलेगा। इससे भारत की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा, जिसकी वर्तमान में जी डी पी में हिस्सेदारी 17% है, जबकि सरकार का लक्ष्य इसे 25% तक ले जाना है। इसी प्रकार वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में भारत की हिस्सेदारी 2.8% है जबकि चीन की 28.8% है, ऐसे में यह डील भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मौजूदगी को सशक्त बनाएगी। ब्रिटेन की ओर से भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों पर लगने वाला 18% का शुल्क अब हट जाएगा, जिससे इस क्षेत्र में 2030 तक $7.5 बिलियन डॉलर के निर्यात की संभावना बन रही है। स्मार्टफोन, इन्वर्टर, ऑप्टिकल फाइबर केबल, ऑटो कलपुर्जे आदि उत्पाद अब बिना शुल्क ब्रिटेन भेजे जा सकेंगे।
फायदेमंद साबित होगा यह समझौता:
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) देश के कृषि क्षेत्र के लिए एक उल्लेखनीय वरदान के रूप में सामने आया है। अब भारत के फल, सब्ज़ियां, मसाले, चाय, बासमती चावल, हल्दी, मिर्च, गुड़, शहद और मछली जैसे कृषि उत्पाद ब्रिटेन के प्रीमियम बाजारों तक बिना शुल्क पहुंच सकेंगे, जबकि पहले इन पर 10-20% तक शुल्क लगता था। फेनी (गोवा), ताड़ी (केरल) और वाइन (नासिक) जैसे उत्पादों को जी आई टैग के साथ वहां की बाजार में विशेष पहचान मिलेगी, जिससे राज्यों के स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा। यह समझौता भारत को ब्रिटेन में निर्यात की सुविधा प्रदान करता है तो वहीं ब्रिटेन को भारत जैसे विशाल और उभरते उपभोक्ता बाजार तक अधिक सहज पहुंच मिलती है। ब्रिटेन से कारें, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, डेयरी उत्पाद, मेडिकल डिवाइस आदि अब भारत में कम शुल्क पर उपलब्ध हो सकेंगे।
इस समझौते से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ डी आई) के नए द्वार खुलेंगे। खासकर ग्रीन हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण जैसे क्षेत्रों में ब्रिटिश निवेश से ‘मेक इन इंडिया’ और ‘नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन’ को बल मिलेगा। इसके साथ ही एम एस एम ई और स्टार्टअप सेक्टर के लिए ब्रिटेन जैसे उच्च क्रय शक्ति वाले बाजारों तक पहुंच का रास्ता खुलेगा, विशेषकर फिनटेक, एग्रीटेक, हेल्थ-टेक और एजु-टेक में वैश्विक साझेदारियाँ बनने की संभावना है। भारत की महिला उद्यमिता और युवा नेतृत्व को ब्रिटिश बाजार, संसाधन और निवेश नेटवर्क तक पहुंच का विशेष अवसर मिलेगा।
समझौते की व्यापकता इसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़ी ग्रीन टेक्नोलॉजी, कार्बन क्रेडिट, और सतत आपूर्ति श्रृंखला जैसी अवधारणाओं के समावेश से भी स्पष्ट होती है। लाइफ मिशन ‘LiFE Mission’ और ब्रिटेन की हरित नीति के समन्वय से सतत विकास को नई दिशा मिल सकती है। इसके अतिरिक्त डिग्री मान्यता, रिसर्च साझेदारी और वर्क परमिट सुविधाओं से दोनों देशों के युवाओं, शोधार्थियों और पेशेवरों को लाभ होगा। सेवा क्षेत्र में योग, संगीत, पाक कला, अकाउंटेंसी आदि के पेशेवरों को ब्रिटेन के उच्च-मूल्य बाजार में जगह मिलने से भारत की सॉफ्ट पावर और प्रतिभा को वैश्विक मंच मिलेगा। डबल सोशल सिक्योरिटी एग्रीमेंट के अंतर्गत अब भारतीय पेशेवरों को दोहरी सामाजिक सुरक्षा नहीं चुकानी पड़ेगी, जिससे लाखों डॉलर की बचत होगी।
वैश्विक व्यापार में भारत की रणनीतिक बढ़त
भारत और ब्रिटेन के बीच हुआ यह समझौता मात्र एक व्यापारिक अनुबंध नहीं है, बल्कि यह भारत की उस दूरदर्शी नीति का जीवंत प्रतिबिंब है, जिसके अंतर्गत भारत अपने आप को एक विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व मंच पर स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। यह अनुबंध न केवल आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है, बल्कि यह भारत की उन रणनीतिक पहलों का भी प्रतीक है, जिनका उद्देश्य वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में समावेशन और स्थायित्व को सुनिश्चित करना है। 2014 के पश्चात, भारत ने मॉरिशस, यू ए ई, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों के साथ फ्री ट्रेड डील्स को अंतिम रूप दिया है, जिसने देश के निर्यात-आयात तंत्र को नयी दिशा दी है और आर्थिक विकास के नए आयाम खोले हैं। इसी क्रम में, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन (ई यू ) के साथ भी बारंबार बातचीत प्रगति पर है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत का दृष्टिकोण न केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित है, बल्कि यह व्यापक वैश्विक सहयोग के नेटवर्क का हिस्सा बनने की आकांक्षा रखता है।
भारत का यह समग्र दृष्टिकोण न केवल अपने घरेलू बाजार को सशक्त बनाने के लिए है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश, तकनीकी सहयोग, और नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी भागीदारी को मजबूती प्रदान करते हुए, भारत ने एक ऐसा मंच तैयार किया है, जिस पर उसका विकासशील से विकसित राष्ट्र बनने का सपना धीरे-धीरे साकार होता दिखाई देता है। यह समझौता और इसके आगे भी निरंतर चल रहे व्यापारिक संवाद, भारत की आर्थिक नीतियों में परिवर्तनशीलता और नवाचार की प्रेरणा का प्रमाण हैं।
चुनौतियाँ और समाधान : सजगता और विवेक की मांग
हर व्यापारिक समझौते की तरह भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के साथ भी कुछ जटिलताएँ और संभावित चुनौतियाँ जुड़ी हुई हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सबसे प्रमुख चिंता यह है कि यदि भारत का आयात उसकी निर्यात क्षमता से अधिक हो जाता है, तो यह व्यापार घाटे की स्थिति को जन्म दे सकता है। इससे देश के कुछ घरेलू उद्योगों, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एम एस एम ई) को गंभीर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। ब्रिटेन से आने वाले अपेक्षाकृत सस्ते इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, अल्कोहलिक पेय और परिष्कृत उपभोक्ता वस्तुएँ भारतीय बाजार में कीमत और ब्रांड की दृष्टि से आकर्षक होंगी, जिससे स्थानीय उत्पादकों की मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन के कड़े गुणवत्ता मानक और जटिल नियम भारत के पारंपरिक, कुटीर और सीमित संसाधनों वाले छोटे उत्पादकों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं। चाहे वह खाद्य प्रसंस्करण हो, वस्त्र उद्योग हो या हस्तशिल्प- इन क्षेत्रों को ब्रिटेन के बाज़ार में स्थापित करने के लिए तकनीकी दक्षता, प्रमाणन, और गुणवत्ता के उच्चतम मापदंडों को पूरा करना आवश्यक होगा। बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और डिजिटल व्यापार के मसले भारत के लिए सतर्कता की मांग करते हैं। भारत ने हमेशा सार्वजनिक स्वास्थ्य, सस्ती दवाइयों और न्यायसंगत पेटेंट व्यवस्था को प्राथमिकता दी है, ऐसे में ब्रिटेन की सख्त IPR शर्तें फार्मा और कृषि क्षेत्र में भारत के छोटे उत्पादकों के लिए चुनौती बन सकती हैं। भारत को इन मोर्चों पर अपनी नीति-निर्धारण की स्वायत्तता बनाए रखनी होगी।
इन संभावित प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे तकनीकी उन्नयन, उत्पादन प्रक्रिया में सुधार, गुणवत्ता नियंत्रण तथा वैल्यू चेन के विस्तार की दिशा में ठोस कदम उठाएँ। साथ ही, छोटे उद्यमों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और निर्यात संबंधी ढांचागत सुविधाएँ प्रदान करना भी अत्यंत आवश्यक होगा ताकि वे इस वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रह सकें और लाभ उठा सकें।
इस समझौते से भारत का बढ़ेगा दुनिया में साख
यह न केवल दो राष्ट्रों के बीच व्यापारिक लेन-देन को आसान बनाएगा, बल्कि भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, विशेषकर ऐसे समय में जब चीन की आक्रामक रणनीति और अमेरिका की अनिश्चित विदेश नीति से वैश्विक अस्थिरता बढ़ी है। भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व के खिलाफ सामूहिक रणनीति विकसित करने के लिए भारत-ब्रिटेन साझेदारी उपयोगी हो सकती है। साथ ही, दोनों देश अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र, जी20, और कॉमनवेल्थ में समन्वित दृष्टिकोण के साथ वैश्विक मुद्दों पर प्रभावी हस्तक्षेप कर सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान आरंभ हुई और अब वैश्विक स्तर पर व्यापक होती जा रही अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियाँ विश्व व्यापार के स्वरूप को प्रभावित कर रही हैं। ऐसे माहौल में भारत ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह किसी भी प्रकार के दबाव में व्यापार समझौते नहीं करेगा, बल्कि वैकल्पिक मार्गों और बहुपक्षीय रणनीति के तहत अपने हितों की रक्षा करता रहेगा। ब्रिटेन के साथ संपन्न हुआ यह मुक्त व्यापार समझौता इसी नीति का ठोस उदाहरण है, जो भारत की न केवल आर्थिक परिपक्वता, बल्कि उसकी कूटनीतिक सूझबूझ को भी दर्शाता है।
तीन वर्षों के जटिल और व्यापक वार्तालाप के पश्चात यह समझौता साकार हुआ है। इस प्रक्रिया में बार-बार परिवर्तन हुए, प्राथमिकताएँ तय हुईं, और कई बार असहमति के बिंदु उभरे। बावजूद इसके भारत ने अपने रुख में न तो लचीलापन दिखाया और न ही जल्दीबाज़ी की। भारत ने यह साफ़ कर दिया कि वह किसी भी डेडलाइन या भूराजनैतिक दबाव के अधीन आकर समझौता नहीं करेगा। अमेरिका की ओर से बार-बार भारत पर समय-सीमा निर्धारित कर दबाव बनाया गया कि वह उनके साथ भी व्यापार समझौता जल्द करे, किंतु भारत ने स्पष्ट किया कि उसके लिए प्राथमिकता ‘गुणवत्ता आधारित समझौता’ है, न कि ‘समयबद्ध समझौता’।
ब्रिटेन के साथ हुए इस समझौते के जरिये भारत ने अमेरिका और यूरोपियन यूनियन (EU) सहित अन्य शक्तिशाली वैश्विक साझेदारों को यह संदेश दिया है कि वह अपनी संप्रभु नीतियों, रणनीतिक प्राथमिकताओं और दीर्घकालिक हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। साथ ही, यह समझौता बहुपक्षीयता को प्राथमिकता देने की भारत की नीति को मजबूती प्रदान करता है, जिसमें किसी एक महाशक्ति पर निर्भर रहने की बजाय संतुलित वैश्विक भागीदारी को प्रमुखता दी जाती है।
आर्थिक समृद्धि की साझा यात्रा
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता वैश्विक अनिश्चितताओं, संरक्षणवाद और टैरिफ युद्धों के इस युग में आशा, सहयोग और समृद्धि की एक नई कथा लिखता है। यह केवल दो देशों के बीच हुआ व्यापारिक समझौता नहीं, बल्कि यह उन करोड़ों युवाओं, किसानों, उद्यमियों और पेशेवरों के लिए नए अवसरों का द्वार है जो भारत के भविष्य की नींव हैं। यह समझौता भारत की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘लोकल से ग्लोबल’ जैसी पहलों को गति देगा, सेवा और विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करेगा और वैश्विक मंच पर भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और निर्णायक राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा।
इस समझौते ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि भारत अब वैश्विक व्यापार की शर्तों को केवल स्वीकार नहीं करता, बल्कि उन्हें अपने हितों के अनुसार गढ़ता भी है। यही भारत की उभरती शक्ति का प्रमाण है और यह डील उसी परिवर्तनशील भारत की आर्थिक कूटनीति की विजयगाथा है।