प्रो. नीलम महाजन सिंह
संविधान के प्रथम अनुच्छेद, ‘1(1) भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा। (2) राज्य व उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। (ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे। संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित”। डॉ: मोहन भागवत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने लोगों से ‘इंडिया’ शब्द का इस्तेमाल न करके, इसके स्थान पर ‘भारत’ का इस्तेमाल करने का आग्रह किया है। डॉ. मोहन भागवत ने गुवाहाटी में एक समारोह में बोलते हुए कहा, “हमें इंडिया शब्द का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए व ‘भारत’ का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए। कभी-कभी हम अंग्रेज़ी बोलने वालों को समझाने के लिए भारत का उपयोग करते हैं। यह प्रवाह के रूप में आता है तथापि हमें इसका उपयोग बंद कर देना चाहिए”। चार साल के अंतराल पर, सर्वोच्च न्यायालय के दो मुख्य न्यायाधीशों ने ‘इंडिया’ के बजाय भारत’ की दलीलों को अलग-अलग तरीके से निपटाया। वहीं तत्कालीन जस्टिस टी.एस. ठाकुर, मुुख्य न्यायाधीश – सर्वोच्च न्यायालय, ने दो नामों के बीच चयन करने के नागरिकों के अधिकार को बरकरार रखा। जस्टिस एस.ए. बोबडे ने सुझाव दिया कि नाम बदलने की याचिका सरकार के साथ उठाई जा सकती है। न्यायविद जस्टिस विद्या भूषण गुप्ता, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश व नैशनल कंस्यूमर फोरम के पूर्व अध्यक्ष ने भी, संविधान के अनुच्छेद 1 पर ध्यानाकर्षित किया, जिसमें, ‘इंडिया जोकि भारत है’ पर कहा कि ‘भारत’ का प्रयोग पहले से ही हो रहा है। जस्टिस वी. बी. गुप्ता का विचार है कि ‘भारत’ शब्द का प्रयोग संविधान में 77 वर्षों से छपा हुआ है। इसे लेकर असमंजस व सामाजिक अवरोध नहीं होने चाहिए। जी-20 रात्रिभोज निमंत्रण में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘भारत के राष्ट्रपति’ (President of Bharat) के रूप में वर्णित किए जाने से, विवाद खड़ा हो गया कि क्या सरकार ‘इंडिया’ को त्याग कर केवल ‘भारत’ का ही प्रयोग किया जाएगा? मार्च 2016 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस टी.एस. ठाकुर ने महाराष्ट्र के कार्यकर्ता निरंजन भटवाल से कहा कि इच्छा उनकी है कि वे अपने देश को ‘भारत’ या ‘इंडिया’ कहें। किसी के पास, किसी प्राधिकारी, राज्य या न्यायालय के पास नागरिकों को यह निर्देश देने की शक्ति नहीं थी कि उन्हें अपने देश को क्या कहना चाहिए। “यदि आप इस देश को ‘भारत’ कहना चाहते हैं, तो सीधे आगे बढ़ें और इसे भारत कहें। यदि कोई इस देश को भारत कहना चाहते हैं, तो उसे इसे भारत कहिए। हम हस्तक्षेप नहीं करेंगेें, मुख्य न्यायाधीश ठाकुर ने कहा था। भटवाल ने संविधान के अनुच्छेद 1. की शब्दावली पर स्पष्टता की मांग की थी, जिसमें कहा गया था कि ‘इंडिया जो भारत है, राज्यों का एक संघ होगा’। उन्होंने तर्क दिया कि ‘इंडिया’ शब्द ‘भारत’ शब्द का शाब्दिक अनुवाद नहीं है। इतिहास और धर्मग्रंथ इस देश को ‘भारत’ के नाम से जानते हैं। यह तर्क दिया गया है कि ‘इंडिया’ अंग्रेजों द्वारा गढ़ा नाम है। नागरिकों को इस बात की स्पष्ट समझ होनी चाहिए कि उन्हें अपने देश को क्या कहना चाहिए। याचिका में कहा गया था कि संविधान-सभा ने नवजात गणतंत्र के लिए कई नामों पर बहस की थी और उनमें से कुछ ‘भारत, हिंदुस्तान, हिंद, भारतभूमि या भारतवर्ष’ जैसे नाम” थे। ‘इंडिया’ को अन्य देशों द्वारा गणतंत्र की मान्यता के सीमित उद्देश्य के लिए ही शामिल किया गया था। दूसरी याचिका फिर से सुप्रीम कोर्ट में आई। मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे के समक्ष, जून 2020 में एक और याचिका लगी, जिसमें ‘भारत’ उस समय कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था। इस बार की सुनवाई वर्चुअली आयोजित की गई। याचिका में मांग की थी कि ‘इंडिया’ को अनुच्छेद 1 से हटा दिया जाए और कहा गया कि राष्ट्र के नाम के बारे में एकरूपता होनी चाहिए। न्यायाधीश बोबडे ने याचिकाकर्ता की ओर इशारा करते हुए जवाब दिया कि “भारत व इंडिया दोनों संविधान में दिए गए नाम हैं। संविधान में भारत को पहले से ही ‘भारत’ कहा गया है।” हालांकि मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने याचिका पर विचार नहीं किया, लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि याचिका को एक प्रतिनिधित्व में तब्दील किया जा सकता है व मुख्य रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा जा सकता है। अंततः भारत सोने की चिड़िया रह चुका है। कई भारतीय भाषाओं में ‘भारत’ का नाम, मुख्य रूप से ‘भारत की वैदिक जनजाति’ के नाम से लिया गया है, जिसक ऋग्वेद में उल्लेंख है। आर्यावर्त के प्रमुख राज्यों को एक रूप में किया गया है। ‘इंडिया’ नाम इस प्रकार से हुआ कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने 1947 में आज़ादी का तथ्य, ‘इंडिपेंडेंट नेशन डिक्लेरेशन ईन अगस्त’ (‘Independent Nation Declared In August’) है। सारांशार्थ ये आग्रह रहेगा कि हमारा देश व देश के लोगों को एकजुट रहना होगा। इंडिया शब्द लाखों प्रकार से प्रयोगरहो रहा है। संयुक्तराष्ट्र ने भी कह दिया है कि यदि भारत अपनी अधिसूचना लिखित रूप से देता है तो उसे परिवर्तित कर दिया जाएगा। हम भारत के लोग एक हैं और 77 वर्षों से इंडिया का प्रयोग हुआ है। यदि अब आधिकारिक अधिसूचना लागू हो जाती है तो उसे शांतिपूर्ण रूप से स्वीकार करना चाहिए। किसी प्रकार की राजनीतिक व सामाजिक अंतर्द्वंद्व ना हो।भारत को विश्व को प्रभावोत्पादक निर्देश देने होंगें।
नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)