भारतीय ज्ञान परम्परा- जीवन दर्शन, संस्कृति और नैतिक मूल्यों का दर्पण

Indian knowledge tradition - a mirror of life philosophy, culture and moral values

रविवार दिल्ली नेटवर्क

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र- आईकेएस की ओर से भारतीय ज्ञान प्रणाली के माध्यम से आत्म प्रबंधन और संगठन प्रबंधन पर तीसरी नेशनल कॉन्फ्रेंस में जुटे देश-विदेश के जाने-माने शिक्षाविद

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र- आईकेएस की ओर से भारतीय ज्ञान प्रणाली के माध्यम से आत्म प्रबंधन और संगठन प्रबंधन पर तीसरी नेशनल कॉन्फ्रेंस हुई। ऑनलाइन इस कॉन्फ्रेंस में आईआईटी, तिरुचिरापल्ली के निदेशक प्रो. पवन कुमार सिंह, एमडीआई गुरुग्राम के प्रो. राजन गुप्ता, डीवाई पाटिल यूनिवर्सिटी के प्रो. एमेरिटस डॉ. सचिन वेरनेकर, उद्योग प्रशिक्षक प्रो. राजीव अग्रवाल, आईआईटी मुंबई, एसजेएम स्कूल ऑफ़ मैनेजेमेंट के प्रो. वर्दराज वापट, एचआर इंटरवेंशनिस्ट और कॉर्पाेरेट ट्रेनर श्री अजय अग्रवाल ने बतौर मुख्य वक्ता शामिल रहे। इन्होंने आत्म प्रबंधन, वेदांत, कर्म सिद्धांत, नेतृत्व, चित्त की स्थिरता, योग, भारतीय शास्त्र और आधुनिक प्रबंधन में भारतीय दृष्टिकोण की प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने महाभारत, रामायण, वेद, उपनिषद और जैन दर्शन के संदर्भों के माध्यम से आत्म-अनुशासन, नैतिक निर्णय, मानसिक संतुलन और नेतृत्व कौशल पर विचार रखे। टीएमयू के कुलपति प्रो. वीके जैन ने कहा कि यह सम्मेलन केवल एक शैक्षणिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन, संस्कृति और नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने का अवसर है। उन्होंने भगवान महावीर के जियो और जीने दो के सिद्धांत को संगठनात्मक प्रबंधन के लिए अत्यंत प्रासंगिक बताया। संयोजन की ज़िम्मेदारी टीएमयू आईकेएस की समन्वयक डॉ. अलका अग्रवाल और फैकल्टी डॉ. माधव शर्मा ने निभाई। कॉन्फ्रेंस में मैनेजमेंट के डीन प्रो. विपिन जैन, डॉ. ज्योति पुरी प्रो. नवनीत कुमार, डॉ. शिवानी एम. कौल, डॉ. अमित कंसल, डॉ. पीयूष मित्तल आदि शिक्षाविदों की उपस्थिति रही।

कॉन्फ्रेंस में प्रो. पवन सिंह ने चार स्तंभ- उचित आहार, व्यवहार, शयन और मनन को आत्म प्रबंधन का मूल बताया। प्रो. राजीव अग्रवाल ने नीति, अनुशासन, नैतिक नेतृत्व, भारतीय परंपराओं की वैश्विक स्वीकार्यता और जीवन में छोटे कार्यों की महत्ता को रेखांकित करते हुए निरंतर प्रयास और आत्म-विश्वास को सफलता की कुंजी बताया। डॉ. सचिन वेरनेकर ने भारतीय जीवन पद्धति, वेद-उपनिषदों, योग, रामायण-महाभारत और गीता के मूल्यों के माध्यम से आत्म-प्रबंधन, सांस्कृतिक एकता और निस्वार्थ कर्म की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को वैश्विक नेतृत्व का आधार बताया। प्रो. राजन गुप्ता ने भारतीय शास्त्रों की आत्म-प्रबंधन में भूमिका पर प्रकाश डालते हुए यह तर्क दिया कि जब तक इस ज्ञान प्रणाली को प्रायोगिक शोध, फील्ड वर्क और वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक इसकी व्यापक सामाजिक स्वीकार्यता संभव नहीं है। उन्होंने आईकेएस में और अधिक शोध कार्य कराने पर जोर दिया। प्रो. वर्दराज वापट ने भारतीय शास्त्रों के आर्थिक दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए वित्तीय संतुलन, नीति और जीवन प्रबंधन के सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की आवश्यकता बताई। श्री अजय अग्रवाल ने आत्म-जवाबदेही, चिंतनशील नेतृत्व और आचरण की जिम्मेदारी पर बल देते हुए अपने व्यावहारिक भाषण में श्रोताओं को आत्म-प्रबंधन और आंतरिक परिवर्तन की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित किया।