
प्रो. नीलम महाजन सिंह
सबसे पहले हमारे सभी पाठकों को 79 स्वतंत्रता दिवस की बधाई व शुभकामनाएं। उन सभी वीर स्वतंत्रता सेनानियों को हमारी चरणवंदना व सलाम! भारतीय संविधान और लोकतंत्र को सलाम। जब भी राज्यों के चुनाव होते हैं तो कोई ना कोई हलचल केंद्रीय सरकार द्वारा आरंभ हो ही जाती है। ‘एस.आई.आर.’ (Special Intensive Revision = SIR) मतदाता सूची क्या है व क्यों महत्वपूर्ण है? भारत के चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षित करने का निर्णय लिया है। भारत में मतदाता सूची सत्यापन की एक अनूठी प्रक्रिया, एस.आई.आर. व्यापक मतदाता सत्यापन के माध्यम से सटीक, धोखाधड़ी-मुक्त चुनाव सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। बिहार विधानसभा 2025 चुनावों के परिप्रेक्ष्य में, राजनीतिक दलों का कहना है कि बिहार में ‘ड्राफ्ट मतदाता सूची’ जारी होने के बाद, उन्होंने कई दावे व आपत्तियाँ दर्ज की हैं। हालाँकि चुनाव आयोग ने कोई शिकायत दर्ज नहीं की है। विपक्षी दलों के बी.एल.ए. का कहना है कि उन्होंने सादे कागज़ पर कई शिकायतें दर्ज की हैं, जिन पर चुनाव अधिकारियों के हस्ताक्षर हैं। चुनाव आयोग कथित तौर पर ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए लोगों को नए मतदाताओं के लिए बने फॉर्म-6 को भरने के लिए कह रहा है। 06 अगस्त, 2025 को संसद के मानसून सत्र के दौरान, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन व पुनरीक्षण के विरोध में भारी हंगामा हुआ। यद्यपि चुनाव आयोग का कहना है कि बिहार में ड्राफ्ट मतदाता सूची में गलत तरीके से शामिल या हटाए गए नामों को लेकर राजनीतिक दलों द्वारा कोई दावा या आपत्ति दर्ज नहीं की गई है, फिर भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं, जिनमें ज़मीनी स्तर पर बूथ लेवल एजेंट (बी.एल.ए.) शामिल हैं। दरअसल, विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब वे इन शिकायतों के ज़रिए, योग्य मतदाताओं के नाम काटे जाने की शिकायत करते हैं, तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ई.आर.ओ.) उन्हें मतदाताओं से फॉर्म-6 भरने के लिए कहते हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा 09 अगस्त, 2025 को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त 1.6 लाख से ज़्यादा बूथ स्तरीय एजेंटों (बी.एल.ए.) ने एक भी दावा दायर नहीं किया है, जबकि व्यक्तिगत मतदाताओं द्वारा 7,252 दावे दायर किए गए हैं। हालाँकि, फॉर्म-6 के लिए आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ रही है व अब तक 43,123 आवेदन दाखिल किए जा चुके हैं। ‘बिहार एस.आई.आर. मतदाता सूची’ के विश्लेषण से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतदाताओं के नाम हटाए जाने की संख्या में वृद्धि का संकेत व शिकायतें मिली हैं। लेखिका ने विपक्षी दलों के कई बी.एल.ए. से बातचीत की, जिन्होंने बताया कि उन्होंनें सादे काग़ज़ों पर दावे व आपत्तियाँ दर्ज कराई थीं, व उन्हें ई.आर.ओ. व बूथ लेवल अधिकारियों (बी.एल.ओ.) से रसीद के रूप में प्रतिहस्ताक्षरित भी करवाया गया था। फ़िर चुनाव आयोग ने इन्हें शिकायत के रूप में दर्ज क्यों नहीं किया? भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के एक बी.एल.ए. अमित कुमार पासवान ने ‘दी हिंदू’ को बताया, “मैंने दरभंगा के बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र में 20 नामों के हटाए जाने के संबंध में बी.एल.ओ. के पास शिकायत दर्ज कराई है, जिन्हें इसे ज़िला मजिस्ट्रेट को भेजना चाहिए।” श्री पासवान ने कहा कि बी.एल.ओ. ने उनकी शिकायत पर दो प्रतियाँ, रसीद के रूप में प्रतिहस्ताक्षरित की थीं व बाद में उनकी पार्टी ने इसे ज़िला मजिस्ट्रेट को भी भेज दी हैं। एक प्रति से पता चलता है कि शिकायतें सादे कागज़ पर लिखी गईं थीं, न कि किसी निर्दिष्ट प्रारूप या पार्टी के लेटरहेड पर। इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मुकुंद सिंह, जो एस.आई.आर. के बाद दावे व आपत्तियाँ दर्ज करने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे हैं, ने कहा कि उनकी पार्टी ने कई शिकायतें दर्ज की हैं। सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने बिहार के मसौदा मतदाता सूची से 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के अलग-अलग कारणों की मांग वाली याचिकाओं पर चुनाव आयोग से जवाब माँगा है। निर्वाचन पंजीकरण नियम: 1960 के अनुसार, नाम जोड़ने या नाम हटाने की चुनौती देने के लिए फॉर्म-7, पहली बार पंजीकरण के लिए फॉर्म-6 और मसौदा सूची में मतदाता के विवरण में बदलाव के लिए फॉर्म-8 दाखिल करना होता है। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या कोई विशिष्ट प्रारूप या फ़ॉर्म है जिसका उपयोग बी.एल.ए. द्वारा भरना अपेक्षित है। चुनावी पंजीकरण पर पुस्तिका, बी.एल.ए. को नाम जोड़ने व हटाने के लिए एक विशिष्ट प्रारूप प्रदान करती है। दिल्ली में चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने, गोपनीयता में कहा कि अगर दावे व आपत्तियाँ उचित प्रारूप में नहीं हैं, तो उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता। इसका प्रभाव अन्य राज्यों में भी पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची संशोधन में अनियमितताओं को लेकर चुनाव आयोग व ममता बैनर्जी सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है। पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा के चुनाव हैं। इसके लिए राज्यभर की राजनीतिक सियासी गर्माहट तेज़ हो गई है। वहीं इस तनातनी ने तूल तब पकड़ लिया, जब चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत को मतदाता सूची संशोधन में कथित अनियमितताओं के आरोपी अधिकारियों को न हटाने के फैसले पर स्पष्टीकरण देने के लिए दिल्ली तलब किया। इससे पहले पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा चुनाव आयोग को लिखे गए पत्र में कहा गया था कि मतदाता सूची संशोधन में कथित, अनियमितताओं के आरोपी अधिकारियों को अभी निलंबित करने का उनका कोई इरादा नहीं है। देखा जाए तो यह कदम उस पत्र के बाद उठाया गया है, जिसमें राज्य सरकार ने चुनाव आयोग को बताया था कि वह अभी उन अधिकारियों को निलंबित नहीं करेंगें जिन पर मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप हैं। इसको लेकर आयोग ने पहले पांच अधिकारियों की पहचान कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने व निलंबन की सिफ़ारिश की थी। 124 साल की वोटर, ‘मिंता देवी’ तक कई पत्रकार पहुंचे। प्रियंका गांधी ने भी कई सवाल पूछे हैं। मुख्य सचिव मनोज पंत ने निर्वाचन आयोग को भेजे पत्र में लिखा, कि ऐसे सख्त कदम अनुपात से ज़्यादा कठोर हैं व इससे राज्य के अधिकारियों का मनोबल गिरेगा। बंगाल सरकार ने फ़िलहाल दो अधिकारियों को चुनाव से जुड़ी ड्यूटी से हटाकर, एक आंतरिक जांच शुरू करने का फैसला किया है। चुनावों से पहले निर्वाचन आयोग के इस कदम को ममता बनर्जी सरकार व आयोग के बीच एक टकराव के रूप में देखा जा रहा है। निर्वाचन आयोग राज्य सरकार के रुख से संतुष्ट नहीं है व वह अब सीधे राज्य के शीर्ष अफसर से जवाब चाहता है। यह मामला अब राजनीतिक व प्रशासनिक दोनों स्तरों पर गंभीर है। बिहार में एस.आई.आर. का प्रभाव तमिलनाडु तक जुड़ रहा है। राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने चुनाव आयोग पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर किसी मतदाता का नाम हटा दिया जाता है, तो उसे चुनौती देने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है व मतदाता सूची में वापस आने के लिए फॉर्म-6 ही एकमात्र विकल्प है। क्या चुनाव आयोग अपनी ज़िम्मेदारी से अधिक हस्तक्षेप कर रहा है? भारत के चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के बाद बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं। सैकड़ों किलोमीटर दूर, तमिलनाडु में, इसने राजनीतिक हलचल मचा दी है। दोनों का आपस में क्या संबंध है? क्या यह सिर्फ़ राजनीतिक बेचैनी है, एक जायज़ चिंता है या राज्य के चुनावी नक्शे को नया रूप देने की एक सोची-समझी रणनीति है? डी.एम.के. ज़िला सचिवों की बैठक में एस.आई.आर. व ‘वोट चोरी’ का निंदा प्रस्ताव पारित हुआ है। निश्कर्षाअर्थ यह कहा जा सकता है कि, समय-समय पर चुनाव आयुक्तों से केंद्र की तत्कालीन सरकारें पॉजिटिव लाभार्थी हुई हैं। चुनाव संरक्षक टी.एन. सेशन द्वारा चुनावी सुधार किये गए। अन्य वयस्क चुनाव आयुक्तों से राजनीतिक दलों व उनके नेताओं के मन में एक निश्चित भय आ गया था। अधिकांश चुनाव आयुक्त, प्रतिष्ठित नौकरशाह हैं। चुनाव आयोग ने बार-बार यह सुनिश्चित किया है कि चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष व सफल हों। यह देखना चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि हमारे देश के लोगों को अपनी पसंद-नापसंद सरकार को वोट देने के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह भी महत्वपूर्ण है कि फ़र्ज़ी वोटर लिस्ट संशोधित की जाएं। कोई आश्चर्य नहीं कि यह एक मुश्किल काम है। भारत जैसे विशाल राष्ट्र में प्रजातांत्रिक, संसदीय स्वरूप बना रहना चाहिए व भारतीयों को मतदान का अधिकार अवश्य दिया जाना चाहिये।
प्रो. नीलम महाजन सिंह (वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, अंतर्राष्ट्रीय सामयिक विशेषज्ञ, सालिसिटर व परोपकारक)