प्रदीप शर्मा
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर योगी आदित्यनाथ की एनकाउंटर पॉलिटिक्स काम करती नजर आ रही है. योगी आदित्यनाथ ने फिर से साबित कर दिया है कि संगठन अपनी जगह है. बाकी जगह संगठन बड़ा हो सकता है लेकिन यूपी में सरकार से बड़ा कोई नहीं है। योगी आदित्यनाथ नये मिशन में पूरे मनोयोग से जुट गये हैं. यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए टीम बनाकर सभी की जिम्मेदारी तय कर दी है. खास बात ये है कि डिप्टी सीएम केशव मौर्य को न टीम में जगह दी है, और न ही ब्रजेश पाठक को।
लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को उत्तर प्रदेश में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और पार्टी 62 सीट से सिमट कर महज 33 सीट पर आ गई. लेकिन, पार्टी नेताओं में अंदरुनी कलह की खबरों के बीच यूपी बीजेपी ईकाई ने लोकसभा में हार की विस्तृत रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को सौंपी है. इस रिपोर्ट में पेपर लीक, सरकारी नौकरियों में ठेके पर कर्मचारियों की नियुक्ति और राज्य प्रशासन के घमंड होने के आरोप लगाए गए, जिसकी वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष व्याप्त था
80 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश से एनडीए को इस बार 36 सीटें मिली, जो 2019 में मिली 64 सीटों के मुकाबले करीब आधी है, जबकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया और 43 सीटों पर जीत हासिल की।
सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश बीजेपी ने 15 पन्ने की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें हार की वजह को रेखांकित किया गया है. अयोध्या और अमेठी जैसे महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्रों के करीब 40 हजार लोगों से इस पर राय ली गई है. इससे पार्टी के लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन के बारे में आकलन किया गया।
पार्टी रिपोर्ट में बताया गया कि यूपी के सभी क्षेत्रों में बीजेपी के वोट शेयर में करीब 8 फीसदी की कमी आयी. केन्द्रीय नेतृत्व से आगामी चुनावों को लेकर अतीत में हुई गलतियों से आगाह भी किया गया. हाल में, उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी के सीनियर नेताओं से मुलाकात की थी. महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी की हार के बाद भविष्य की रणनीतियों पर पुनर्विचार के लिए उत्तर प्रदेश के नेताओं से चर्चा की योजनाएं बनाई गई।
इन सभी चीजों के बीच आपसी कलह की चर्चा उस वक्त और तेज हो गई, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनाव में हार की एक बड़ी वजह ओवर कॉन्फ्रिडेंश को बताया. हालांकि, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इससे इतर कहा कि संगठन, पार्टी से बड़ा है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लखनऊ में आयोजित राज्य कार्यकारिणी की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भूपेन्द्र चौधरी और अन्य महत्वपूर्ण नेताओं के साथ सलाह मशविरा किया, ताकि मुद्दों को व्यवस्थित ढंग से ठीक किया जा सके।
सूत्रों की मानें तो यूपी बीजेपी ईकाई ने राज्य में पार्टी के घटिया प्रदर्शन के लिए छह वजह मानी है, जिनमें सरकारी नौकरियों में ठेके पर भर्तियां, लगातार पेपर लीक के मामले, पार्टी के कार्यकर्ताओं में उभरते असंतोष की भावना और राज्य प्रशासन का घमंडी होना है. इन सभी चीजों से आरक्षण को लेकर विरोधियों की बातों को बल मिला है।
पार्टी रिपोर्ट में कुर्मी और मौर्य समुदाय के अलगाव होने और दलित वोटों के छिटकने को भी बीजेपी ने अपनी हार की एक वजह बताई. इसमें बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के वोट शेयर में गिरावट और राज्य के कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस की बेहतरीन प्रदर्शन को भी एक फैक्टर के तौर पर देखा गया है।
खबरों के मुताबिक, पार्टी रिपोर्ट में बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व से कहा गया है कि यूपी बीजेपी अपने मतभेदों को भुलाएं और अगड़ा-पिछड़ा की लड़ाई से बचकर जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दें।
रिपोर्ट में ये कहा गया कि इस वक्त कुर्मी और मौर्य समुदाय ने बीजेपी से अपने-आप को किनारा कर लिया है और पार्टी दलितों के सिर्फ एक तिहाई वोट को ही अपने पक्ष में लाने में कामयाब हो पाई. इसमें आगे बताया गया कि बीएसपी के वोट शेयर में करीब 10 फीसदी की गिरावट आयी है, जबकि कांग्रेस तीनों क्षेत्रों में अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया, जिसका ही नतीजा इस तरह से सामने आया है।
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि पार्टी नेताओं की तरफ से आरक्षण नीतियों के खिलाफ दिए गए बयान ने भी पार्टी के समर्थन पर असर डाला. इसके अलावा, अन्य मुद्दे जैसे- ओल्ड पेंशन स्कीम, जो सीधे तौर पर सीनियर सिटीजन से जुड़ी है, जबकि अग्निवीर और पेपर लीक युवाओं से जुड़े मुद्दे हैं।
यूपी बीजेपी ने इस तरफ भी इशारा किया है कि विपक्ष लगातार उन मुद्दों को उठाता रहा, जो आम लोगों से जुड़े मुद्दे थे. तो वहीं, ये भी कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं का सम्मान किया जाना चाहिए, साथ ही बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व की तरफ से एकता सुनिश्चित करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं।
इस बार उत्तर प्रदेश के अंदर लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 80 में से 37 सीटें हासिल की है, जिसे 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ पांच सीटें मिली थी. बीजेपी 33 सीटों पर सिमटकर रह गई, जिसमें 2019 के चुनाव में 62 सीटें मिली थी. यूपी के इस नतीजे ने पार्टी नेतृत्व को अचंभित कर दिया, जिसने बेहतर नतीजे की उम्मीदु की थी, क्योंकि साल की शुरुआत में भव्य राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी।
बीजेपी डेटा के मुताबिक, पार्टी का सबसे कमजोर प्रदर्शन पश्चिम और काशी यानी वाराणसी में रहा, जहां पर 28 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 8 सीटें जीत पाई. ब्रज में बीजेपी 13 सीटें मे से सिर्फ 8 सीट ही जीत पाई. गोरखपुर को योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है, लेकिन वहां की 18 लोकसभा सीटों में से बीजेपी सिर्फ 6 सीट ही जीत पायी. अवध की 16 लोकसभा सीटों में सिर्फ पार्टी 7 सीट ही जीत पायी. जबकि, कानपुर-बुंदेलखंड की 10 सीटों में से बीजेपी पहले की सीटें भी नहीं बचा पायी और सिर्फ चार सीट पर ही संतोष करना पड़ा।
इस हार के बाद जहां सीएम योगी आदित्यनाथ ने ओवर कॉन्फिडेंस को घटिया नतीजों के लिए जिम्मेदार ठहराया, तो वहीं उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी संगठन को मजबूत करने पर जोर दिया है।
लेकिन, कांग्रेस महज 99 सीटों पर जीत के बावजूद भी कोई समीक्षा बैठक नहीं की, जबकि बीजेपी ने समीक्षा बैठक की. मौर्य ने बयान दिया कि संगठन, पार्टी से बड़ा होता है. जेपी नड्डा से भी मौर्य ने मुलाकात की. लेकिन, जिस तरह से उनकी बॉडी लैंग्वेज दिखी, उसके बाद ये साफ हो गया कि दिल्ली में उन्हें क्या मिला।
ऐसे में जाहिर है कि इस वक्त जो कयास लगाए जा रहे था कि राज्य में सीएम को हटाया जा सकता है, उन कयासों को विराम लग गया है. लेकिन यूपी में कमजोर बीजेपी को उठाने के लिए जिस स्तर पर प्रयास की जरूरत है, क्या वो पार्टी एकजुटता के साथ कर पाएगी, इस वक्त ये एक बड़ा सवाल है. खासकर तब जब आगे 10 सीटों पर उपचुनाव लड़ना है, जहां पर एक बार फिर राज्य में बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस-सपा गठबंधन से हो सकता है।