सुनील कुमार महला
इसरो ने अपने सबसे भारी संचार उपग्रह सीएमएस-03 (जीसैट 7 आर) को एलवीएम3-एम5 रॉकेट के माध्यम से श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 02 नवंबर 2025 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है, जिसे ‘बाहुबली रॉकेट’ (43.5 मीटर ऊंचा और करीब 640 टन वज़नी एलवीएम-3 रॉकेट) नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि इसरो ने 2019 में नौसेना के लिए इस उपग्रह के विकास के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, जो 2013 में प्रक्षेपित किए गए जीसैट-7 रुक्मिणी की जगह लेगा। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इस रॉकेट में दो एस-200 ठोस बूस्टर, एल-110 द्रव ईंधन वाला कोर स्टेज और सी-25 क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जो इसे भारत का सबसे शक्तिशाली लॉन्च वाहन बनाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह उपग्रह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक सशक्त पहल है। दूसरे शब्दों में कहें तो जीसैट-7आर परियोजना, भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियानों की भावना को साकार करती है। यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि सीएमएस-03 की सफलता ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत अब भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण में भी विश्व स्तरीय स्तर पर खड़ा हो चुका है, और भविष्य में यह क्षमता मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों तथा गहरे अंतरिक्ष अभियानों के लिए मजबूत आधार बनेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो इस कामयाबी से इसरो को आगामी महत्वाकांक्षी अभियानों के लिए जरूरी आत्मविश्वास भी मिल सकेगा।बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि यह मिशन भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि पहली बार इतनी भारी क्षमता वाला संचार उपग्रह पूरी तरह स्वदेशी प्रक्षेपण यान से भू-सामान्य स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित किया गया। इस उपग्रह का वजन लगभग 4,410 किलोग्राम है, और यह भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित किया गया है। ध्यातव्य है कि एलवीएम 3 रॉकेट को ‘बाहुबली’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह भारी वजन के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखता है। एलवीएम-3 रॉकेट की तीन चरणीय संरचना में दो ठोस रॉकेट बूस्टर एस-200, एक एल 110 और एक क्रायोजेनिक चरण सी-25 शामिल हैं। यह रॉकेट इसरो को 4,000 किलोग्राम से अधिक वजन वाले उपग्रहों को जीटीओ तक भेजने में सक्षम बनाता है, जिससे भारत को विदेशी देशों से उपग्रह प्रक्षेपण सेवाएं प्राप्त करने पर निर्भरता कम होती है। गौरतलब है कि इस रॉकेट के पिछले सफल मिशन में चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण शामिल था, जिससे भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बना। बहरहाल, यदि हम यहां पर सीएमएस-03 उपग्रह की बात करें तो यह एक मल्टी-बैंड संचार उपग्रह है, जिसे भारत की संचार अवसंरचना बेहतर बनाने के लिए भेजा गया है। वास्तव में, यह उपग्रह कई सेवाओं के लिए किफायती और प्रभावी तरीके से जीटीओ में स्थित होगा, जिससे भारत की दूरसंचार और संचार सेवाओं में सुधार होगा। इसका उद्देश्य न केवल देश के दूरसंचार नेटवर्क सुदृढ़ करना है, बल्कि संचार सेवाओं की गुणवत्ता और विस्तार को बढ़ावा देना भी है। वास्तव में, सीएम एस-3(जीसैट-7 आर) कम्युनिकेशन सैटेलाइट नौसेना का सबसे एडवांस्ड सैटेलाइट है, जिससे नौसेना की समुद्री इलाके में निगरानी की क्षमता मजबूत होगी। यानी एक तरह से यह सैटेलाइट समुद्र में सेना के लिए आंख का काम करेगी। जानकारी के अनुसार इस सैटेलाइट मेंअत्याधुनिक स्वदेशी घटक शामिल हैं। जानकारी के अनुसार इसमें उच्च क्षमता वाले ट्रांसपोंडर आवाज , डेटा और वीडियो लिंक को एक साथ संचालित कर सकेंगे। इससे मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन सपोर्ट मिलेगा, जिससे नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों, विमानों और समुद्री संचालन केंद्रों के बीच सुरक्षित और निर्बाध संपर्क बना रहेगा। इतना ही नहीं, इससे भारतीय महासागर क्षेत्र में व्यापक टेलीकम्युनिकेशन कवरेज संचालित करने में भी मदद मिलेगी।इस उपलब्धि का एक बड़ा लाभ यह है कि इससे नौसेना की समुद्री डोमेन जागरूकता और रणनीतिक क्षमताओं में वृद्धि होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो सीएमएस-03 उपग्रह यूएचएफ, एस-बैंड, सी-बैंड तथा केयू-बैंड में काम करेगा। इससे नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों, विमानों और तटीय स्टेशनों के बीच सुरक्षित व तेज संचार संभव होगा। यह जीसैट-7 श्रृंखला का अगला संस्करण है और इसकी आयु लगभग 15 वर्ष निर्धारित की गई है। गौरतलब है कि इससे पहले भारत को ऐसे भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए विदेशी सेवाओं (जैसे यूरोपियन एरियन रॉकेट) पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब इस मिशन ने भारत को भारी-लिफ्ट लॉन्च क्षमता में आत्मनिर्भर बना दिया है।इस मिशन की एक विशेष बात यह भी रही कि सीएमएस-03 को एलवीएम-3 की अधिकतम क्षमता के लगभग ऊपरी स्तर पर प्रक्षेपित किया गया है। इसरो ने इसे सीधे भू-स्थिर कक्षा में नहीं, बल्कि एक सब-जीटीओ कक्षा में भेजा, जहाँ से उपग्रह अपने ऑनबोर्ड इंजन की मदद से आगे बढ़ेगा। इससे न केवल ईंधन की बचत हुई, बल्कि रॉकेट की क्षमता का अधिकतम उपयोग भी संभव हुआ। वास्तव में, यह इसरो की रणनीतिक योजना और तकनीकी दक्षता का अनुपम व शानदार उदाहरण है। यह पहली बार नहीं है,जब इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र कुछ बड़ा व ऐतिहासिक कर दिखाया है।इसरो के कई मिशन ऐतिहासिक रहे हैं। गौरतलब है कि इसरो ने अब तक 400 से अधिक उपग्रह और 70 से अधिक रॉकेट लॉन्च किए हैं। इनमें से कई मिशन ऐतिहासिक रहे हैं, जैसे चंद्रयान-1, मंगलयान और चंद्रयान-3, जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। प्रमुख रॉकेट पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल), जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल), और जीएसएलवी एमके- III हैं, जबकि प्रमुख उपग्रहों में जीसैट (संचार उपग्रह), कारटो सैट (मानचित्रण उपग्रह), आरआइ सैट (रडार इमेजिंग उपग्रह), मंगलयान (मंगल ग्रह पर भारत का पहला मिशन), और चंद्रयान (चंद्रमा पर भारत का मिशन) शामिल हैं। इनके लॉन्च होने से इसरो ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी बना दिया है। अंत में यही कहूंगा कि इसरो की यह नई सफलता चंद्रयान-3 और मंगलयान जैसी पिछली उपलब्धियों की परंपरा को कहीं न कहीं आगे बढ़ाती है।पाठक जानते होंगे कि भारत ने 1975 में अपना पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ छोड़ा था और अब वह दुनिया की अग्रणी अंतरिक्ष शक्तियों में शामिल हो गया है। श्रीहरिकोटा का लॉन्चपैड, जो कभी साधारण जगह थी, आज भारत की अद्भुत और बेमिसाल वैज्ञानिक क्षमताओं और मेहनत का प्रतीक बन चुकी है। हमारे वैज्ञानिकों ने कम से कम संसाधनों में भी बड़े परिणाम हासिल किए हैं-जैसे मंगलयान मिशन, जो हॉलीवुड की फिल्म ‘ग्रेविटी’ से भी कम बजट में सफल हुआ था। अब इसरो ‘गगनयान मिशन’ की तैयारी कर रहा है, जिसके तहत इंसान को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत 2035 तक अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने और 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय भेजने की योजना बना रहा है। हाल फिलहाल, बाहुबली उपग्रह की सफलता से संचार, रक्षा, मौसम पूर्वानुमान, और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नए द्वार खुलेंगे।सच तो यह है कि यह उपलब्धि इसरो की समर्पित टीम, उनकी मेहनत, और भारत की वैज्ञानिक दूर-दृष्टि का प्रमाण है। भारत की यह ताजा सफलता हमारे देश को अंतरिक्ष के क्षेत्र में और मजबूत बनाएगी और देश के युवाओं को नई प्रेरणा देगी कि वे भी अपने-अपने क्षेत्रों में कुछ बड़ा और अच्छा करें।





