जम्मू-कश्मीर-लद्दाख: कश्मीरियत, इंसानियत जम्हूरियत का पैगाम

प्रो. नीलम महाजन सिंह

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए की ‘विशेष प्रावधान’ को समाप्त करने पर नरेंद्र मोदी सरकार को पूर्ण समर्थन दिया है। 2019 में केंद्र ने ‘विशेष दर्जा’ खत्म करने की अधिसूचना जारी कर, राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों; जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में विभाजित कर दिया। शुरुआत में ही लेखिका ने विनम्रतापूर्वक कहा कि वह तीन दशकों से अधिक समय से जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व रणनीतिक विकास को कवर कर रही हैं। श्रीनगर में जन्मीं, लेखिका को कश्मीर की बेटी’, की उपाधि से नवाज़ा गया है। मैंने साहस व निर्भीकता से कश्मीर के मुद्दों पर लेख लिखे। केंद्र, राज्य, राज्यपाल व उपराज्यपाल को लिखित सुझाव भी दिये। आइए कश्मीर पर सर्वोच्च न्यायालय ने किन मुद्दों पर अपना निर्णय दिया है, को समझें। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्पष्ट तौर पर कश्मीर के विशेषाधिकार को समाप्त करने का आह्वान किया था। धारा 370 व 35-ए, को समाप्त कर, भारत के अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर को भी केंद्र की एक राज्य बना दिया गया है। भाजपा की स्थापना ‘हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन’ के सभी प्रमुख हस्तियों, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी व लाल कृष्ण आडवाणी ने की थी। भारतीय जनता पार्टी के तीन मुख्य उद्देश्य थे; कश्मीर के विशेष दर्जे का उन्मूलन, समान नागरिक संहिता लागू करना व अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण। इससे हिंदुत्व विचारधारा को ज़मीनी स्तर पर प्रचारित करने की प्रक्रिया आसान होगी। 1981 से आज तक भाजपा के सभी महत्वपूर्ण उद्देश्य साकार हो गए हैं। जनवरी 2024 में भव्य राममंदिर का उद्घाटन होगा। अल्पसंख्यकों के राजनीतिक दलों के कड़े विरोध के कारण समान नागरिक संहिता को अभी तक अमल में नहीं लाया जा सका है। इस प्रकार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करके, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को प्रशासनिक शक्तियाँ भी प्रदान की हैं। लद्दाख को एक अलग दर्जा देना, एक साहसिक व राजनीतिक रूप से सकारात्मक कदम है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएँ दायर की गई थीं, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 और 35-ए को केंद्र सरकार द्वारा ‘एकतरफ़ा रद्द नहीं किया जा सकता है’। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 द्वारा, जम्मू-कश्मीर का जो विशेष दर्जा था, वह एक “अस्थायी प्रावधान” था। इस ऐतिहासिक फैसले में, अदालत ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा है। साथ ही जम्मू-कश्मीर के लिए जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने और 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के, चुनाव आयोग को निर्देशित किया है। यह ऐतिहासिक फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई व न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नेतृत्व वाली पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा सुनाया गया है। चार साल पहले केंद्र को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के जवाब में, 16 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रखा। जब संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया, तो इसका मतलब था कि केवल अनुच्छेद 370(3) का प्रावधान ‘निष्क्रिय’ था। हालाँकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को केंद्र द्वारा एकतरफा समाप्त नहीं कर सकती है, क्योंकि 1957 में ‘संविधान सभा की शक्तियाँ, जम्मू और कश्मीर विधानमंडल में निहित थीं’। बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने कहा, “अनुच्छेद 370 को हटाकर पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत की एकता व अखंडता को ताकतवर किया है।” जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है, ”केंद्र सरकार के हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती”। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में दिसंबर 2018 में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर मुहर लगाने से इंकार कर दिया है। चूंकि इसे अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे को खत्म करने की समग्र प्रतियोगिता के हिस्से के रूप में याचिकाकर्ताओं द्वारा विशेष रूप से चुनौती भी नहीं दी गई थी। इस फैसले के बाद घाटी में विरोध हो सकता है? अदालत ने सम्भावित ‘अराजकता’ को चिह्नित करते हुए “राज्य की ओर से (जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है) संघ द्वारा लिए गए निर्णयों को दैनिक प्रशासन के लिए” चुनौती देने के प्रति चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने की केंद्र की चुनौती को खारिज करने के तुरंत बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसले को “जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए आशा, प्रगति और एकता की शानदार घोषणा” बताया है। त्री मंत्री अमित शाह, आरएसएस सरसंघचालक, डॉ. मोहन भागवत, सभी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को संघ के अन्य राज्यों की तरह भारत का अभिन्न अंग बताया है। जे.के. भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है, “हम इस फैसले का अक्षरश: सम्मान करते हैं।” पूर्व सीएम, श्रीनगर से सांसद, जे.के. नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने संसद से बाहर आते हुए कहा, ”जम्मू-कश्मीर भाड़ में जाये।” अब डॉ. अब्दुल्ला के लिए ‘राजनीति को अलविदा’ कहने का समय आ गया है! जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, जी.ए. मीर इस फैसले पर चुप हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अनुच्छेद 370 को हटाने को संवैधानिक रूप से मान्य करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा, “यह ऐतिहासिक फैसला है, जो हर भारतीय को खुश करने वाला है”। डॉ. एस. जयशंकर ने कहा, ”इस ऐतिहासिक फैसले के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त 2019 को संसद के फैसले को बरकरार रखा है। इस दौरान जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में लंबे समय से तटस्थ, वहां के लोगोँ को “उनका हक़, विकास, सुशासन व सशक्तिकरण देखने को मिलेगा। यह निर्णय जे.के. में हमारे भाइयों-बहनों के लिए एक उज्जवल भविष्य का संकेत देता है”। मोदी सरकार को घाटी के लोगों के लिए व अधिक विकास लाने के लिए अपने निरंतर प्रयास जारी रखने चाहिए। अनुच्छेद 370 पर न्यायमूर्ति संजय कौल के अलग आदेश में कहा गया, “घावों को भरने की आवश्यकता है”। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने 1980 के दशक से जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन व दुर्व्यवहार की निष्पक्ष जांच का आह्वान किया। उमर अब्दुल्ला, पूर्व सी.एम. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बोले, ‘दिल ना-उम्मीद तो है’; उमर को बहुत निराशा हुई। उसी दिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने उमर अब्दुल्ला को, उनकी नाराज़ पत्नी, पायल अब्दुल्ला से तलाक देने से इनकार कर दिया। उमर ने कहा, इन निराशाजनक फैसलों से उबरने के लिए उन्हें कुछ स्व-एकाग्रता की ज़रूरत है। ठीक ही तो है! डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, “दुखदाई और दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि क्षेत्र के लोग खुश नहीं हैं। लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा”। पीडीपी अध्यक्षा, महबूबा मुफ्ती ने कहा, “जम्मू-कश्मीर के लोग उम्मीद नहीं खोने वाले हैं व न ही हार मानने वाले हैं। मान-सम्मान के लिए हमारी लड़ाई बिना किसी परवाह के जारी रहेगी। यह हमारे लिए राह का अंत नहीं है। यही ‘भारत-विचार’ की हानि है। जिस हाथ को हमने पकड़ा था वह घायल हो गया है,” उन्होंने ‘एक्स- ट्विटर’ पर पोस्ट किए गए एक वीडियो संदेश में कहा। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ”यह सरकार को तय करना है कि वह किस तरीके से काम करेगी।” कम से कम 1980 के दशक से राज्य व गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच व रिपोर्ट करने और सुलह के उपायों की सिफारिश करने के लिए एक निष्पक्ष सत्य और सुलह समिति की स्थापना की जानी चाहिए। स्मृति लुप्त होने से पहले आयोग का गठन किया जाना चाहिए जो समयबद्ध होना चाहिए”। युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है व उन्हीं के लिए इस दिन के आभारी हैं। अपने विश्लेषण में, मैंने कहा, “आगे बढ़ने के लिए, घावों को भरने की आवश्यकता होती है, लोगों को अंतर-पीढ़ीगत आघात महसूस होता है। घावों को भरने की दिशा में पहला कदम राज्य व उसके अभिनेताओं द्वारा किए गए उल्लंघन के कृत्यों की स्वीकृति है”। शीर्षार्थ यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, जम्मू-कश्मीर राज्य ‘पृथक संप्रभुता’ के किसी भी तत्व को बरकरार नहीं रखता है। अनुच्छेद 370 असममित संघवाद की विशेषता है न कि संप्रभुता की।याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रपति की उद्घोषणा को चुनौती नहीं दी। उद्घोषणा के बाद राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन है। अनुच्छेद 356(1) के तहत राज्य विधानसभा की ओर से शक्तियों का प्रयोग करने की संसद की शक्ति कानून बनाने की शक्तियों तक ही सीमित नहीं है। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 370(3) के तहत शक्तियाँ समाप्त नहीं हुईं। राष्ट्रपति की शक्ति के प्रयोग के लिए परामर्श व सहयोग के सिद्धांत का पालन करना आवश्यक नहीं था। जबकि जम्मू-कश्मीर व लद्दाख, पाकिस्तान और चीन को छूने वाले सीमावर्ती क्षेत्र हैं, इसलिए केंद्र सरकार को सुरक्षा बलों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। आगे चलकर उग्रवाद, आगजनी, संघर्ष, पथराव, सशस्त्र बलों के जवानों की बर्बर और खूनी हत्या, निर्दोष नागरिकों, सरकारी अधिकारियों व उद्यमियों की हत्या का ख़त्म होना चाहिए। मैंने बार-बार कहा है कि जब भौगोलिक दृष्टि से जम्मू-कश्मीर व लद्दाख भारत का हिस्सा हैं, तो कश्मीर के लोग भी पूरी तरह से भारतीय हैं। घाटी के लोगों को नकारात्मकता के प्रति अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। बर्फिले जम्मू-कश्मीर को शांति, समृद्धि व खुशहाली का मौका दें। इंसानियत, कश्मीरियत व जम्हूरियत की धूप, घाटी को रोशन करे। ‘गर फिरदौस बर-रुए ज़मीन अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्तो’; अमीर ख़ुसरो ने ठीक ही लिखा है, अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं कश्मीर में है! भारत के लोग, पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार, जस्टिस डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ व उनके साथी जज, याचिकाकर्ता, हम सभी भारतीय हैं। आइए अपने मतभेदों को दूर करें व अपने महान राष्ट्र को यह साबित करने का मौका दें कि हम सभी एक हैं! ‘हम भारत के लोग’!

प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, कश्मीर विशेषज्ञ, लेखक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता व परोपकारी)