मनमोहन सिंह Vs नरेन्द्र मोदी: देश के दो प्रधानमंत्रियों के निर्णय और नेतृत्व की तुलना

Manmohan Singh Vs Narendra Modi: Comparison of decision making and leadership of the two Prime Ministers of the country

संगीता शुक्ला

वर्ष 2025 दस्तक देने वाला है और हर बार की तरह आने वाले साल के बारे में भी कई ज्योतिषियों और अंकशास्त्रियों ने राजनीतिक उथल-पुथल, जंग और वैश्विक आर्थिक संकटों की संभावनाओं को लेकर कई भविष्यवाणियां की हैं।

कुछ देर के लिए यदि हम इन ज्योतिषीय पुर्वानुमानों को भूल भी जाएं तो एक ऐसी घटना हमारे सामने आई जिसने एक तरह से राजनीतिक उथल-पुथल की भविष्यवाणी को बल दिया है। हाल ही में, संविधान की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य पर भारतीय संसद में एक बहस के दौरान हुआ विवाद वर्तमान की राजनीतिक वास्तविकता का एक स्पष्ट उदाहरण पेश किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान विपक्ष को डॉ. बी.आर. अंबेडकर का बार-बार नाम लेने से बचने की सलाह दी, उन्होंने सुझाव दिया कि विपक्ष अगर इतनी बार भगवान का नाम ले लेगा तो उन्हें स्वर्ग में जगह मिल जाएगी। उनकी इस टिप्पणी ने संसद से लेकर सड़क तक राजनीतिक हलचल मचा दी। इस आग में अपने हाथ सेंकने के लिए कई दल दलित मुद्दे को उठाते हुए वोट हासिल करने को होड़ में लग गए।

किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद, NDA सरकार, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को कई ज़ोरदार झटके लगे हैं। आने वाले साल 2025 में NDA के भविष्य पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।
भारत अपनी लोकतांत्रिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण की ओर बढ़ रहा है ऐसे में यदि हम भारत की वर्तमान और पूर्व सरकार के निर्देशक, डॉ. मनमोहन सिंह (2004-2014) और नरेंद्र मोदी (2014-2024) के नेतृत्व की ओर देखें तो उनके कार्यकाल में देश के शासन के दो विपरीत अध्यायों को देख सकते हैं। इन दोनों ही नेताओं ने अलग-अलग दृष्टिकोण, नेतृत्व शैली और नीति प्राथमिकताओं को अपने-अपने तरीके से अपनाकर भारत को अलग आकार दिया है।

विपरित नेतृत्व शैलियां
अर्थशास्त्री और टेक्नोलॉजी के पैरोकार, डॉ. मनमोहन सिंह अपने शांत स्वभाव एवं बुद्धिमता के लिए जाने जाते थे। उनके नेतृत्व की पहचान गठबंधन की राजनीति से थी जिसके कारण उन्हें अक्सर कई बार समझौता करना पड़ता था। अपनी आर्थिक सूझबूझ के लिए वैश्विक स्तर पर सम्मानित होने के बावजूद, मनमोहन सिंह को अपने ही देश में कई बार अहम मुद्दों पर अनिर्णय के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, विशेषकर भ्रष्टाचार और घोटालों के मामले में उनकी चुप्पी के कारण कई बार उनके नेतृत्व पर प्रश्न उठे।

इसके विपरीत, नरेंद्र मोदी ने दृढ़ इच्छाशक्ति और मुखर शैली वाले नेता की पहचान कायम की। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में सत्ता को केंद्रीकृत करते हुए, मोदी ने खुद को एक परिवर्तनकारी नेता के रूप में पेश किया है। हालांकि, उनका नेतृत्व ध्रुवीकरण करने वाला रहा है, जिसके कारण उनके नेतृत्व को समर्थन भी मिला और तीखी आलोचनाएं भी।

आर्थिक नीतियां और उनका प्रभाव
मनमोहन सिंह का कार्यकाल स्थिरता और विकास पर केंद्रित था। उनके कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद यानि GDP औसतन 8-9% सालाना था। भारत के आर्थिक उदारीकरण के वास्तुकार के रूप में, उन्होंने प्रमुख व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए और कई अहम आर्थिक सुधारों पर ज़ोर दिया। हालांकि, उनका दूसरा कार्यकाल घोटालों से घिरा रहा जिसके कारण आर्थिक विकास को धीमी बढ़ोतरी का प्रभाव झेलना पड़ा।

मोदी की आर्थिक विरासत में नोटबंदी और GST- वस्तु एवं सेवा कर, जैसे साहसिक फ़ैसले शामिल हैं। एक तरफ़ जहां “मेक इन इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसी पहलों का उद्देश्य आधुनिकीकरण था तो वहीं दूसरी ओर ‘जन धन योजना’ जैसे कार्यक्रमों ने देश के हर एक व्यक्ति को वित्तीय समावेशन (फाइनेंशियल इन्क्लूज़न) से जुड़ने की प्राथमिकता दी। हालांकि, उनके आलोचक धीमे विकास और बेरोज़गारी की चुनौतियों पर सवाल उठाते रहते हैं विशेषकर कोरोना महामारी के कारण हुए बदलावों के बाद।

विदेश नीति: कूटनीति बनाम मुखरता
वैश्विक मंच पर, मनमोहन सिंह ने सहयोग को प्राथमिकता दी, जिसमें भारत-अमेरिका के बीच हुआ ऐतिहासिक परमाणु समझौता सबसे अहम था। वहीं, नरेन्द्र मोदी ने भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए मुखर विदेश नीति को अपनाया और सरकार को फ्रंटफुट पर ले आए। उनके कार्यकाल में पड़ोसियों, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध देखे गए, जबकि अमेरिका, जापान और इज़राइल जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए गए।

घरेलू चुनौतियां और शासन
दोनों नेताओं को शासन संबंधी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सिंह का कार्यकाल भ्रष्टाचार के घोटालों और नीतिगत पक्षाघात से जूझ रहा था, जबकि मोदी के कार्यकाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम और कृषि कानूनों जैसी नीतियों का बड़े पैमाने पर विरोध किया गया। एक तरफ़ जहां नरेन्द्र मोदी को जनता से सीधे संवाद करने का श्रेय दिया जाता है तो वहीं दूसरी ओर लोगों की असहमति को दबाने और संवैधानिक संस्थाओं को कमज़ोर करने के लिए उनकी आलोचना भी की जाती है।

सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में नरेगा और शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसी कल्याणकारी योजनाओं पर जोर दिया गया। वहीं मोदी ने ‘स्वच्छ भारत’ और ‘उज्ज्वला योजना’ सहित कई कल्याणकारी कार्यक्रमों का विस्तार किया, जिसमें हाशिए पर खड़े गरीब एवं वंचित समुदायों पर ध्यान केंद्रित किया गया। राजनीतिक रूप से, सिंह ने गठबंधन की बाधाओं को पार किया, जबकि मोदी ने भाजपा के प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए बहुमत का लाभ उठाया।

दो नेताओं की विरासत
मनमोहन सिंह को उनके आर्थिक सुधारों और वैश्विक कूटनीति के लिए याद किया जाता है, जबकि नरेंद्र मोदी का कार्यकाल साहसिक निर्णयों और राष्ट्रवादी नीतियों के लिए पहचाना जाता है। एक नज़र में देखें तो मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी का नेतृत्व, पिछले दो दशकों में भारत के विकसित होते राजनीतिक एवं आर्थिक परिदृश्य को दर्शाता है।

भारत की विकास यात्रा इन दोनों नेताओं के योगदान से परिभाषित होती है। आने वाले समय में भी, मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लिए गए निर्णय देश को सबक देते रहेंगे।