मनसा का मातमः अफवाह बनी त्रासदी की वजह

Mansa's mourning: rumor became the cause of tragedy

ललित गर्ग

हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में बिजली का तार टूटने और करंट फैलने की एक अफवाह ने कई जानें ले लीं, जिसने धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। किसी धार्मिक स्थल पर भगदड़ की यह पहली घटना नहीं, लेकिन अफसोस है कि पुरानी गलतियों से सबक नहीं लिया जा रहा। ऐसी त्रासद, विडम्बनापूर्ण एवं दुखद घटनाओं के लिये मन्दिर प्रशासन और सरकारी प्रशासन जिम्मेदार है, रविवार की सुबह एक बार फिर श्रद्धालुओं के लिये मौत का मातम बनी, चीख, पुकार और दर्द का मंजर बना। लगभग साढ़े आठ से नौ बजे के बीच हजारों श्रद्धालु संकीर्ण सीढ़ीदार मार्ग से मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। जैसे ही अचानक करंट लगने की अफवाह ने अफरा-तफरी का माहौल बनाया, श्रद्धालु घबराहट में एक-दूसरे पर गिरने लगे और कुछ ही पलों में आठ लोगों की मौत हो गई जबकि करीब तीस श्रद्धालु घायल हो गए, जिनमें कई की हालत गंभीर थी। भगदड़ में लोगों की जो दुखद मृत्यु हुई, उसका दर्द समूचा देश महसूस कर रहा है। प्रश्न है कि पुलिस का बंदोबस्त कहां था? श्रद्धालुओं की मौत एक ऐसा दर्दनाक एवं खौफनाक वाकया है जो सुदीर्घ काल तक पीड़ित और परेशान करेगा। प्रशासन की लापरवाही, अत्यधिक भीड़, निकासी मार्गों की कमी और अव्यवस्थित प्रबंधन ने इस त्रासदी को जन्म दिया। यह घटना कोई अपवाद नहीं है, बल्कि हाल के वर्षों में दुनिया भर में सामने आई ऐसी घटनाओं की कड़ी का नया खौफनाक मामला है, जहां भीड़ नियंत्रण में चूक एवं प्रशासन एवं सत्ता का जनता के प्रति उदासीनता का गंभीर परिणाम एवं त्रासदी का ज्वलंत उदाहरण है। मनसा के मातम, हाहाकार एवं दर्दनाक मंजर ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था की पोल ही नहीं खोली बल्कि सत्ता एवं धार्मिक व्यवस्थाओं के अमानवीय चेहरे को भी बेनकाब किया है।

भारत में भीड़ से जुड़े हादसे आम लोगों के जीवन का ग्रास बनते रहे हैं। धार्मिक आयोजनों हो या खेल प्रतियोगिता, राजनीतिक रैली हो या सांस्कृतिक उत्सव लाखों लोगों को आकर्षित करते हैं, जहाँ भीड़ प्रबंधन की मामूली चूक भयावह त्रासदी में बदलते हुए देखी जाती रही है। उदाहरण के लिये, पिछले एक साल पर नजर दौड़ाएं तो इस तरह के कई दुखद हादसे हो चुके हैं। हाल ही में पुरी में भगदड़ जानलेवा साबित हुई। पिछले साल जुलाई में ही हाथरस में एक धार्मिक आयोजन में मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई थी। इस साल जनवरी की शुरुआत में तिरुपति मंदिर में टोकन लेने के लिए हद से ज्यादा श्रद्धालु पहुंच गए और पुलिस उनको काबू नहीं कर सकी। भगदड़ मची तो 6 लोगों की जान चली गई। इसी साल, मौनी अमावस्या पर महाकुंभ में और उसके बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी हादसा हुआ। वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश के रत्नागढ़ मंदिर में ढाँचागत कमियों से प्रेरित भगदड़ के कारण 115 लोगों की मौत हो गई थी।

भारत ही नहीं दुनिया में धार्मिक आयोजनों में भीड़ प्रबंधन हमेशा से बड़ी चुनौती बनता रहा है। वर्ष 2022 में दक्षिण कोरिया के इटावन हैलोवीन समारोह में अत्यधिक भीड़ के कारण 150 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। इसी तरह, वर्ष 2015 में मक्का में हज के दौरान मची भगदड़ में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। आग, भूकंप, या आतंकी हमलों जैसी आपातकालीन स्थितियांे में भी भीड़ प्रबंधन की पौल खुलती रही है। आखिर दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश में हम भीड़ प्रबंधन को लेकर इतने उदासीन क्यों है? बड़े आयोजनों-भीड़ के आयोजनों में भीड़ बाधाओं को दूर करने के लिए, भीड़ प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार, सुरक्षाकर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करना, जन जागरूकता बढ़ाना और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना अब नितान्त आवश्यक है। हर बार जांच, कठोर कार्रवाई करने, सबक सीखने की बातें की जाती हैं, लेकिन नतीजा के ढाक के तीन पात वाला है। न तो शासन-प्रशासन कोई सबक सीख रहा है और न ही आम जनता संयम एवं अनुशासन का परिचय देने की आवश्यकता समझ रही है। भगदड़ की घटनाओं का सिलसिला कायम रहने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की बदनामी भी होती है, क्योंकि इन घटनाओं से यही संदेश जाता है कि भारत का शासन-प्रशासन भगदड़ रोकने में पूरी तरह नाकाम है। सार्वजनिक स्थलों पर भगदड़ की घटनाएं दुनिया के अन्य देशों में भी होती है, लेकिन उतनी नहीं जितनी अपने देश में होती ही रहती हैं। क्या इस तरह की अफवाह को रोका नहीं जा सकता था? हमारा प्रशासन कोई अनुमान लगाने में इतना अक्षम क्यों है? क्या इसका कारण उसकी संवेदनहीनता है अथवा यह कि संबंधित अधिकारी यह जानते हैं कि कैसी भी घटना हो जाए, उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला। आखिर हम दुनिया के अन्य देशों से कोई सबक सीखने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? सबसे बड़ा सवाल है कि क्या धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की कोई ठोस और वैज्ञानिक व्यवस्था है? मनसा देवी मंदिर की सीढ़ियां, संकरे रास्ते और अव्यवस्थित दुकानों के बीच का क्षेत्र लंबे समय से भीड़भाड़ के लिए जाना जाता है। फिर भी वहां कोई स्थायी सुरक्षा उपाय क्यों नहीं किए गए? अफवाह पर नियंत्रण के लिए कोई त्वरित सूचना तंत्र नहीं था, न ही भीड़ को दिशा देने के लिए पर्याप्त पुलिस बल या मार्गदर्शन की व्यवस्था थी। इस तरह की घटनाएं केवल अफवाह का परिणाम नहीं होतीं, बल्कि यह व्यवस्था की कमजोरियों एवं कोताही का परिणाम होती हैं। तीर्थस्थलों पर नियंत्रित प्रवेश, डिजिटल टिकटिंग, सीसीटीवी निगरानी, आपातकालीन निकासी मार्ग, और स्थानीय प्रशासन की सक्रिय मौजूदगी जैसी व्यवस्थाएं अनिवार्य होनी चाहिए। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि भगदड़ की घटनाएं लगभग वैसे ही कारणों से रह रहकर होती रहती हैं, जैसे पहले हो चुकी होती हैं।

मृतकों में उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के लोग शामिल थे। उनमें छह वर्षीय बच्चा आरुष, किशोर और बुजुर्ग तक शामिल थे। उनके परिवारों पर अचानक दुख का पहाड़ टूट पड़ा। इस दौरान बचे हुए श्रद्धालुओं ने बताया कि भीड़ इतनी घनी थी कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। मनसा देवी मंदिर की यह घटना हमें याद दिलाती है कि भीड़ सिर्फ भक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि अगर उसे सही दिशा और सुरक्षा नहीं दी जाए तो वह भयावह त्रासदी में बदल सकती है। यह समय है कि प्रशासन, मंदिर ट्रस्ट और समाज मिलकर ठोस कदम उठाएं ताकि आस्था के केंद्र जीवन के लिए खतरा न बनें। तमाम धार्मिक स्थलों पर फैली अव्यवस्था को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। फिसलन भरे रास्ते, संकरी जगह, आने-जाने का एक ही मार्ग जैसी बातें लगभग हर जगह देखने को मिल जाएंगी। ऐसे में जब किसी खास मौके पर भीड़ बढ़ती है तो स्वाभाविक ही हादसे की आशंका भी बढ़ जाती है, जैसा सावन पर मनसा देवी में हुआ। बेंगलुरु में आरसीबी के इवेंट में हुए हादसे के बाद कर्नाटक सरकार क्राउड कंट्रोल पर एक बिल लेकर आई है, जिसमें जिम्मेदारियां तय की गई हैं। ऐसे कानून की हर जगह जरूरत है। रेलवे स्टेशन, मंदिर और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ को संभालने के लिए पर्याप्त जगह और रास्ते नहीं हैं।

कुछ स्थानों पर निकास मार्ग सीमित हैं या अनुपयुक्त हैं, जो भगदड़ का खतरा बढ़ाते हैं। भीड़ प्रबंधन के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित एवं दक्ष सुरक्षाकर्मी नहीं हैं, जिससे सुरक्षा चूक होने की संभावना बढ़ जाती है। भीड़ प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों, जैसे कि एआई आधारित निगरानी और ड्रोन कैमरे का उपयोग सीमित है। लोगों को आपातकालीन निकास मार्गों, भीड़ नियंत्रण नियमों, और सुरक्षा उपायों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। गलत सूचना या अचानक दहशत से भीड़ अनियंत्रित हो सकती है और भगदड़ मच सकती है। भीड़ का व्यवहार कई बार अनियंत्रित हो जाता है, खासकर धार्मिक, खेल एवं सिनेमा आयोजनों में, जहां लोग भावनाओं में बहकर आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं। अच्छा यह होगा कि सरकारें भगदड़ की घटनाओं को लेकर प्रशासन को सच में जवाबदेह बनाना सीखें। इसके साथ ही आम लोगों को भी जापान जैसे देशों के लोगों से अनुशासन की सीख लेनी होगी।