नए जंग की आंच में झुलसने लगे बाजार

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

वैश्वीकरण के इस युग में जब एक देश में कोई घटना होती है तो उसका सीधा प्रभाव दूसरे देशों पर पड़ने लगता है। चाहे वह इजराइल-हमास युद्ध हो या यूक्रेन- रूस युद्ध या फिर विश्व के किसी कोने में आने वाली मंदी, उसका सीधा प्रभाव वैश्विक स्तर पर दिख ही जाता है। इजरायल फिलीस्तीन संबंधी सैन्य संकट कई बार हुआ है, इस बार हालात दुनिया को अधिक प्रभावित करेंगे ऐसा साफ लग रहा है। इसके पहले दुनिया पहले से ही रूस यूक्रेन युद्ध के संकट के दबाव को झेल रही थी। इसके अलावा आर्थिक विशेषज्ञ दुनिया के मंदी में जाने की आशंका से इनकार नहीं कर रहे थे क्योंकि अमेरिका सहित दुनिया के हर देश की अर्थव्यवस्था दबाव में है।

इजरायल और फिलीस्तीन के साथ कारोबार और आयात-निर्यात पर तो असर पड़ेगा ही, वहीं महंगाई से परेशान आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। रोजमर्रा की चीजों से लेकर कर्ज, निवेश सब पर असर पड़ सकता है। इजराइल-हमास युद्ध से कच्चे तेल की कीमत बढ़ने की आशंका है। चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का अधिकांश हिस्सा आयात करता है ऐसे में अगर कच्चे तेल की कीमत बढ़ी तो पेट्रोल-डीजल के दामों पर असर होगा।

इतना ही नहीं 5G कनेक्टिविटी का विस्तार अधर में लटक सकता है। अगर ये युद्ध लंबा चला तो डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत पर भी असर होगा। रुपये की कीमत में 3 से 4 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। साथ ही जी 20 में प्रस्तावित इंडिया-मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कोरिडोर में देरी हो सकती है।

वैश्वीकरण का दिखने लगा है प्रभाव

पिछले कुछ दशकों में, वैश्विकरण बहुत तेजी से हुआ है, जिसके परिणामस्वरुप, पूरे विश्वभर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पारस्परिकता में तकनीकी, दूर संचार, यातायात आदि के क्षेत्र में काफी तेजी से वृद्धि हुई है। इसने मानव जीवन को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ढंगों से प्रभावित किया है। इसके नकारात्मक प्रभावों को समय-समय पर सुधारने की आवश्यकता है। वैश्वीकरण ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को बहुत से सकारात्मक तरीकों से प्रभावित किया है। विज्ञान और तकनीकियों की अविश्वसनीय उन्नति ने व्यवसाय या व्यापार को सभी सुरक्षित सीमाओं तक आसानी से विस्तार करने की आश्चर्यजनक अवसरों को प्रदान किया है।

युद्ध से सुलगती दुनिया

एक बार फिर इजरायल- फिलीस्तीन आमने सामने है और हमेशा की तरह विश्व के प्रमुख देश दो हिस्सों में बंट कर एक दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी करते दिख रहे हैं। यही नहीं अगर बात भारत की की जाए तो भारत के लोग भी सोशल मीडिया पर इजरायल-फिलीस्तीन दोनों का ही समर्थन करते दिख रहे हैं। इजरायल-फिलीस्तीन के बीच संघर्ष की चर्चा दुनियाभर में है। इजरायल और फिलीस्तीनी संगठन हमास के बीच जबरदस्त लड़ाई हो रही है । इजरायल पर हमास के ताजा हमले के बाद एक बार फिर इजरायल और फिलिस्तीन विवाद चर्चा के केंद्र में है। शनिवार, 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल के खिलाफ “ऑपरेशन अल-अक्सा स्टॉर्म” शुरू किया। हमास ने गाजा स्ट्रिप से इजरायल के ऊपर 5000 रॉकेट्स दागने का दावा किया है। इतना ही नहीं, हमास से जुड़े दर्जनों लड़ाके दक्षिण की तरफ से इजरायल की सीमा के अंदर घुस गए। वहीं इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया है।

इजरायल फिलिस्तीन विवादों में भारत की स्थिति को देखें तो भारत ने भले ही फिलीस्तीन को अपनी खोई हुई ज़मीन को पुनः प्राप्त करने और अपने देश को इज़रायल से स्वतंत्र करने के लिए फिलीस्तीनी संघर्ष का लगातार समर्थन किया था लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने इज़रायल के साथ दोस्ती बढ़ाने की दिशा में एक अलग रूख दिखाया है। वर्ष 2014 में भाजपा सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है। दमन और हिंसा के उसके क्रूर इतिहास को नज़रअंदाज़ कर इज़रायल को एक साहसी राष्ट्र और भारत के मित्र के रूप में पेश किया जा रहा है। भारत ने अपनी आज़ादी के आंदोलन के दिनों में भी बार-बार फिलीस्तीनियों के अधिकार की वकालत की थी, बाद में भी वह उनका हमदर्द बना रहा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भारत में भी बहुसंख्यकवाद के आक्रामक होने के साथ इस्राइल के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

युद्ध के शुरुआत के बाद से ही दुनिया दो खेमे में बंटी हुई है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देश इजरायल का समर्थन कर रहे हैं, जबकि तुर्किये, ईरान जैसे देश फिलीस्तीन के साथ हैं। ऐसे में बाइडेन को जल्द पश्चिम एशिया में शांति स्थापित करने पर विचार करना होगा। इस युद्ध से तेल की कीमतों में वृद्धि, वैश्विक मंदी, इस्लामी दुनिया में बढ़ती नाराजगी जैसी स्थिति पैदा होने की संभावना है। साथ ही लेबनान स्थित हिजबुल्लाह के नेतृत्व में सक्रिय आतंकियों का समूह भी बढ़ सकता है। लेकिन इसका सर्वाधिक प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर ही पड़ने के आसार है।

संघर्ष से भारत भी हो रहा प्रभावित

जब भी वैश्विक स्तर पर संघर्ष होता है तो उसका प्रभाव भारत पर भी पड़ता है। ठीक इसी तरह, इस संघर्ष का भी प्रभाव भारत पर दिखेगा। भारत ने परंपरागत रूप से इज़राइल और अरब देशों के प्रति अपनी विदेश नीति में एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा है। यदि संघर्ष बढ़ता है और अन्य अरब देश भी इसमें संलिप्त होते हैं तो यह भारत के लिये राजनयिक चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। इस परिदृश्य में इज़राइल के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना और अरब देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना भारत के लिये जटिल सिद्ध हो सकता है। संघर्ष बढ़ने से इज़राइल के साथ भारत के व्यापार पर असर पड़ सकता है, विशेष रूप से रक्षा उपकरण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी पहलों के संदर्भ में मध्य-पूर्व के साथ भारत के आर्थिक एवं रणनीतिक संबंध अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। यदि संघर्ष बढ़ता है और इसमें हिज़बुल्लाह और ईरान जैसे अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी भी संलग्न होते हैं तो यह पश्चिम एशियाई क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है। साथ ही पश्चिम एशियाई क्षेत्र भारत के लिये ऊर्जा आयात का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। क्षेत्र की स्थिरता में कोई भी व्यवधान संभावित रूप से भारत की ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जिससे आर्थिक चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।

व्यापार पर भी पड़ेगा प्रभाव

भारत एशिया में इजरायल का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और विश्व स्तर पर सातवां सबसे बड़ा भागीदार है। पिछले 20 साल में भारत और इजराइल के बीच व्यापार 50.5 गुना बढ़ा है। इजरायली ड्रिप इरिगेशन टेक्नोलॉजी और प्रोडक्ट अब भारत में व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाते हैं। अप्रैल 2000-मार्च 2023 के दौरान, भारत में इजरायल का प्रत्यक्ष FDI 284.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। इजरायल का भारत में हाई-टेक डोमेन, एग्रिकल्चर और पानी के क्षेत्र में 300 से ज्यादा इन्वेस्टमेंट हैं। साथ ही वित्त वर्ष 2022-23 में इज़राइल का इंडियन मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट 7.89 बिलियन डॉलर था।

इसके साथ फिलिस्तीन के साथ भारत का व्यापार भी होता रहा है जो कि इजराइल के जरिए होता है। 2020 में भारत-फिलिस्तीन ट्रेड वॉल्यूम 67.77 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। उसके साथ कुल निर्यात $67.17 मिलियन जबकि कुल आयात $0.6 मिलियन रहा था जो अब युद्ध की स्थिति में समाप्त हो जाएगा। अगर युद्ध लम्बा जाता है तो इसपर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। एक तरफ जहां भारत इजरायल से व्यापार में तेजी के तरफ बढ़ ही रहा था कि युद्ध से एक लम्बा ब्रेक लग सकता है, जिसका खामियाजा भारतीय बाजार को भी भुगतान पड़ सकता है।

तेल की क़ीमतों में उछाल

विश्व को आशंका है कि रूस व यूक्रेन जंग की तरह ही इजराइल व हमास और हिजबुल्लाह के बीच जंग लंबे समय तक जारी रह सकती है, ऐसे में वैश्विक आपूर्ति सिस्टम में असर पड़ सकता है। खास कर क्रूड ऑयल के दाम बढ़ सकते हैं। कच्चे तेल का भाव 90 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गया है। इसमें कोई शक नहीं कि माहौल अनिश्चितता का है। लेकिन इतना तय है कि तेल की कीमतों में हाल के समय में तो इजाफा निश्चित तौर से देखने को मिलना शुरू भी हो गया है इसके वजह युद्ध के इलाके का तेज उत्पादक देशों, अरब देशों के बीच का होना। यह क्षेत्र दुनिया का एक तिहाई तेल की आपूर्ति करता है जो कि दुनिया भर के तेल बाजार में अस्थिरता लाने के लिए पर्याप्त है।

शेयर बाज़ार में हो रही लगातार गिरावट

संघर्ष से जियो-पॉलिटिकल टेंशन में बढ़ोतरी के साथ, वैश्विक अर्थव्यवस्था और व्यापार को मुद्रास्फीति के जोखिमों को बढ़ा रही है और अगर संघर्ष जल्दी खत्म नहीं हुआ तो वैश्विक बाजारों में उच्च अस्थिरता के साथ और मंदी की भी स्थिति उत्पन्न कर सकती है। इसके परिणामस्वरूप रुपये पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, संघर्ष का प्रत्यक्ष प्रभाव भारत पर सीमित ही होने की उम्मीद है, क्योंकि भारत के साथ इजरायल का व्यापार 10 बिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक है, वित्त वर्ष 2023 में इजरायल को निर्यात 8.5 अरब डॉलर और आयात 2.3 अरब डॉलर है।

भारतीय शेयर बाजार इसी आशंका में भारी बिकवाली का शिकार होते जा रहा है। शेयर बाजार में बुधवार (25 अक्टूबर) को लगातार 5वें दिन गिरावट दर्ज की गई. बाजार के प्रमुख इंडेक्स कमजोर ग्लोबल संकेतों के चलते टूटे। BSE सेंसेक्स 522 अंक गिरकर 64,049 पर बंद हुआ. निफ्टी भी 159 अंकों की गिरावट के साथ 19,122 पर आ गया। शेयर बाजार में लगातार 5वें दिन गिरावट से निवेशकों को करीब 15 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। क्योंकि BSE पर लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट कैप घटकर 309.32 लाख करोड़ रुपए हो गया, जोकि 17 अक्टूबर को बाजार बंद होने के बाद 323.87 लाख करोड़ रुपए था। एक तरफ जहां शेयर बाज़ार हर रोज गिर रहा है तो वहीं दूसरी ओर युद्ध के कारण सोने की कीमतें बढ़ने की आशंका है। क्योंकि सोने की कीमतों में उछाल दिखने लगा है।

भारत की ओर देख रही टेक कंपनियां

इजरायल हमास युद्ध के कई खराब प्रभाव है तो कुछ अच्छे भी है। इस संघर्ष के बढ़ने से कारोबार पर असर पड़ सकता है। युद्ध का असर टेक कंपनियों पर होना तय है। अगर संघर्ष लंबा चला तो टेक कंपनियां अपना ठिकाना बदल सकती है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल सहित 500 से अधिक ग्लोबल कंपनियों के ऑफिस इजराइल में हैं। मान जा रहा है कि इजरायल और हमास युद्ध के चलते ये कंपनियां अपना परिचालन इजरायल से शिफ्ट कर भारत ला सकती है।

इस स्थिति में क्या होगा आर बी आई कि भूमिका

इस स्थिति में आरबीआई को अधिक सतर्क होना होगा, अगर बॉन्ड पैदावार ऊंची रहेगी तो महंगाई का असर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर नहीं बल्कि थोक मूल्य सूचकांक पर दिखेगा। चूंकि खुदरा ईंधन की कीमतों में बदलाव नहीं किया जाएगा, अगर सरकार इसे अवशोषित करती है तो कच्चे तेल की ऊंची कीमतें तेल विपणन कंपनियों या राजकोषीय पर दिखाई देंगी। इस स्थिति में आर बी आई ओएमओ (ओपन मार्केट ऑपरेशनंस) बिक्री जैसे उपकरणों के माध्यम से सिस्टम में तरलता को सख्त बनाए रखने का प्रयास करेगा, जिसका बांड पैदावार पर असर पड़ सकता है। अगर पश्चिम एशिया में संघर्ष पूर्ण युद्ध में बदल जाता है और नई आपूर्ति बाधाएं सामने आती हैं तो भारत सरकार जरूरी वस्तुओं की कीमतों को कम करने के लिए कदम उठा सकती है।

यह सुनिश्चित करना बहुत ही कठिन है कि, वैश्वीकरण मानवता के लिए लाभप्रद है या हानिकारक। यह आज भी बड़े असमंजस का विषय है। फिर भी, इस बात को नजरअंदाज करना बहुत ही कठिन है कि, वैश्वीकरण ने पूरे विश्वभर में लोगों के लिए महान अवसरों का निर्माण किया है। इसने समाज में लोगों की जीवन-शैली और स्तर में बड़े स्तर पर बदलाव किया है। यह विकासशील देशों या राष्ट्रों के लिए विकसित होने के बहुत से अवसरों को प्रदान करता है, जो ऐसे देशों के लिए बहुत आवश्यक है।

फिलहाल दुनिया जिस तरह से इजरायल हमास युद्ध के कारण भू-राजनीतिक विभाजन की स्थिति बनती दिख रही है, वह युद्ध की फैलने की चिंताओं को बढ़ाने का काम ही करेगी। ऐसे में यही उम्मीद की जानी चाहिए कि यह युद्ध एक क्षेत्र तक ही सीमित रहे और शांति के प्रयासों में तेजी आए। दुनिया आर्थिक तो क्या किसी भी हालात में एक और युद्ध झेलने की स्थिति में नहीं है।