सतहत्तरवां वर्ष बौद्धिक चेतना और मर्यादा का वर्ष हो !

सीता राम शर्मा ” चेतन “

पंद्रह अगस्त को मोदी लाल किले पर लगातार दसंवी बार राष्ट्रीय ध्वज लहराएगें । राष्ट्रीय महत्व के ऐसे विशिष्ट अवसरों पर मोदी प्रायः राष्ट्रीय विकास और जनकल्याण से संबंधित बड़ी नीतियों एंव योजनाओं की घोषणा करते रहे हैं । अतः देश के जनमानस को इस दिवस पर मोदी के द्वारा दिए जाने वाले उद्बोधन की प्रतीक्षा रहती है ! इस वर्ष प्रतीक्षा की यह उत्कंठा कुछ ज्यादा इसलिए है क्योंकि अगले वर्ष आने वाले स्वतंत्रता दिवस से पूर्व लोकसभा चुनाव होने हैं, जो स्वतंत्र भारत का अब तक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण, जटिल और अत्यंत त्रासदी भरा चुनाव सिद्ध होगा, इसमें अंश मात्र भी संदेह नहीं है । महत्वपूर्ण इसलिए कि यह चुनाव इस सदी के बचे हुए सतहत्तर वर्ष का भविष्य निर्धारित करेगा ! यह चुनाव अपने पिछले दस वर्षीय स्वर्णिम विकास काल की नींव पर विकसित भारत के भावी भविष्य की मजबूत इमारत बनाने के अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यकाल का जनक होगा । जटिल इसलिए कि यह चुनाव भारत के स्वतंत्रता इतिहास का पहला ऐसा चुनाव होगा जिसका मुख्य उद्देश्य और लक्ष्य राष्ट्र बचाओ बढ़ाओ और अपने स्वार्थी भ्रष्ट अस्तित्व को बचाओ बढ़ाओ वाले दो गठबंधनों के मध्य होगा और अत्यंत त्रासद इसलिए कि संभवतः यह भारतीय इतिहास का पहला चुनाव होगा जिसमें राष्ट्रीय सत्ता के विरोध में सिर्फ राष्ट्रीय नहीं अप्रत्यक्ष रूप से बहुतायत षड्यंत्रकारी अंतरराष्ट्रीय शक्तियां भी चुनाव लड़ेंगी । संभव है कि मेरी इस बात से बहुतायत लोग असहमत हों और उन्हें मेरी इस बात पर संदेह भी हो । जिन्हें है या होगा, मेरा प्रबल विश्वास है कि असहमति और संदेह का वह बाह्य भाव भी प्राकट्य रुप से आने वाले समय में होने वाले लोकसभा चुनाव की समाप्ति के साथ स्वतः समाप्त हो जाएगा । इस दिशा में वर्तमान सरकार से भी मेरी यह प्रार्थना है कि वह आने वाले लोकसभा चुनाव तक अर्थात अगले नौ महीने तक वैसी भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों और उसके गठजोड़ पर भारतीय खुफिया तंत्र को अत्यधिक सक्रिय बनाने का हर संभव प्रयास करे ।

फिलहाल बात पंद्रह अगस्त के दिन प्रधानमंत्री के द्वारा देश को दिए जाने वाले उद्बोधन की, तो एक संवेदनशील और जनप्रिय प्रधानमंत्री के रुप में मोदी की यह विशेषता रही है कि वे ऐसे अवसर पर राष्ट्र के लोगों को प्रेरित और गर्वित करते हुए या तो राष्ट्र और जनमानस से जुड़ी समस्याओं के प्रति उन्हें सजग और संघर्षशील बनाते हैं या फिर नव विकास और विश्वास की नई क्रांतिकारी योजनाएं लाते हैं ! ऐसे महत्वपूर्ण अवसरों पर वे देश की जनता को संबोधित करते हुए क्या और किन विषयों पर बोलें, कई बार वे इसके लिए देश की जनता से उनकी सलाह भी मांगते हैं ! एक जननेता और जनसेवक का उनका यह चित्त और चरित्र उन्हें अकाट्य और तर्कसंगत रुप से एक सर्वमान्य और योग्य शासक प्रमाणित करता है ! अब जबकि देश अपना सतहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस मनाने को तैयार है और मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करने की तैयारी में हैं और देश के करोड़ों लोग उनके उस संबोधन की प्रतीक्षा में हैं तब मस्तिष्क में यह सवाल स्वाभाविक रूप से कौंधता है कि इस बार मोदी के संबोधन में क्या सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होगा ? क्या कोई नई योजना की घोषणा ? कोई बड़े बदलाव की बात ? या फिर जैसा कि अधिकांश लोग मानते हैं कि इस बार के संबोधन का मूल भी चुनावी भाषण की तर्ज पर अपनी उपलब्धियों का ब्यौरा और विपक्षी दलों का भ्रष्टाचार और परिवारवाद ही होगा ।

मेरा मानना है कि ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए क्योंकि इसके लिए उनके पास चुनावी सभाओं के बहुतायत अवसर होंगे और बनाए भी जा सकते हैं । प्रधानमंत्री को चाहिए कि वह सतहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर देशवासियों में देश और दुनिया के प्रति अंदरुणी समझ विकसित करने पर बोलें । देश-दुनिया के वर्तमान और भविष्य पर बोलें । वे पंद्रह अगस्त 2023 से पंद्रह अगस्त 2024 तक के समय अर्थात भारत की स्वतंत्रता के सतहत्तरवें वर्ष को बौद्धिक चेतना और मर्यादा का वर्ष घोषित करें । जिसका मुख्य उद्देश्य हर भारतीय में उसकी शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक और राष्ट्रीय चेतना का विकास हो । मर्यादा का वर्ष इसलिए कि इसी एक वर्ष में एक तरफ जहां मर्यादा विहिन होती भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनावी जंग होनी है वहीं दूसरी तरफ इसी वर्ष के मध्य जनवरी 2024 में भारत को सदियों की प्रतीक्षा के बाद उसके आराध्य और वैश्विक मानवता के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का मंदिर मिलेगा ! एक राष्ट्र के रुप में ये दोनों ही अवसर मर्यादित रहने और मर्यादा का निर्बाध निरंतर उत्सव मनाने का सबसे महत्वपूर्ण और उचित समय होगा । मुझे लगता है कि वर्तमान राष्ट्रीय और वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री को स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिवस और मंच का सदुपयोग इस दिशा में करना चाहिए । बेहतर तो यह होगा कि स्वतंत्रता के पूरे सतहत्तरवें वर्ष को हम राष्ट्र पहले सबसे पहले के साथ सतहत्तरवां वर्ष बौद्धिक चेतना और मर्यादा का वर्ष की थीम के साथ मनाएं ! सौभाग्य से अयोध्या में बन रहे भव्य मंदिर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा भी पंद्रह जनवरी को ही हो रही है, कितना अच्छा हो कि उसका विशेष उत्सव भी देश पंद्रह अगस्त 2024 तक पूरी भव्यता और भव्य आयोजनों के साथ जारी रखे ! इसी आशा और शुभेच्छा के साथ सभी सुधी पाठकों को सतहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं !