दीपक कुमार त्यागी
- दिल्ली एमसीडी मेयर के चुनाव की प्रक्रिया में सम्मानित सदन की गरिमा को धूमिल करता कुछ पार्षदों का व्यवहार
- सम्मानित सदन के हालात को देखकर देश के आम जनमानस के बीच गया बहुत ही जबरदस्त नकारात्मक संदेश
- सम्मानित सदन के हाल देखकर लग रहा है कि बदतमीजी करने की कोई सार्वजनिक प्रतियोगिता चल रही है
देश का दिल व राजधानी दिल्ली में लंबे समय से एमसीडी के मेयर का चुनाव बार-बार हंगामे की भेंट चढ़ रहा था, जिसके चलते मसला देश की सर्वोच्च अदालत तक भी पहुंच गया था और अंत में देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद ही लगभग ढाई माह बाद 22 फरवरी को मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव बेहद तनावपूर्ण स्थिति में जंग का मैदान बन चुके सदन में जैसे-तैसे ही संपन्न हुए थे। देश की राजधानी के बेहद महत्वपूर्ण व सम्मानित सदन के अंदर चंद लठैत प्रवृत्ति के राजनेताओं की धक्का-मुक्की, आपसी खींचतान, मार-पिटाई, जोर-अजमाइश से परिपूर्ण नकारात्मक व्यवहार को पूरे देश ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बेहद सशक्त माध्यम से लाइव शो के रूप में देखा था। उसके बाद से ही अब एमसीडी के सदन में चले रात भर के बवाल के वीडियो देश व दुनिया के बेहद ताकतवर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर वायरल हो रहे हैं। इन वीडियो को देखें तो हम लोगों की यह गलतफहमी क्षण भर में ही दूर हो जायेगी कि हमारे देश के राजनेता सदन की गरिमा का बेहद ख्याल रखते हैं, सदन के अंदर के इन वीडियो में गुंडागर्दी, मारपीट का स्पष्ट रूप देखने को मिल रहा है, गुंडागर्दी का आलम यह था की कोई मारपीट कर रहा था, कोई डायस को धक्का दे रहा था, कोई माइक तोड़ रहा था, तो कोई बैलट बॉक्स तक की गेंद बनाकर फेंक रहा था, यह सारा ड्रामा किस लिए हो रहा था, यह देश के आम जनमानस की समझ से बिल्कुल ही परे है।
इस पूरे चुनाव की प्रक्रिया को देखें तो इस चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत से ही कुछ राजनेताओं को लगता था कि इस चुनाव को किसी भी तरह से टाला जाए, वही कुछ राजनेताओं को लगता था कि जल्दबाजी में इस चुनाव को तत्काल करवाया जाए। हाल के सदन के हालात देखकर आम जनमानस को लगता है कि यह सब किसी छिपे हुए एजेंडे की पूर्ति व राजनीतिक षड्यंत्र के चलते ही हो रहा था। लेकिन एमसीडी के सदन की स्थिति देखकर के आम जनमानस के बीच शांति, ईमानदारी, आपसी भाईचारे, चाल व चरित्र आदि का पाठ पढ़ाने वाले कुछ बेहद चतुर चालाक राजनेताओं के विचार व व्यवहार देश की आम जनता के सामने आकर उसकी पोल खुलने का कार्य अवश्य ही हुआ है। देश के महत्वपूर्ण सदन के अंदर ही की गयी मारपीट के इन हालातों को देखकर के देश के हर सभ्य नागरिक को गली-मोहल्लों के उन छिछोरे, गुंडे, जाहिल बदमाशों की अचानक से याद आ गयी, जो कि किसी भी व्यक्ति के मान-सम्मान व गरिमा का ध्यान रखें बिना ही आयेदिन सरेआम लोगों को टोपी सड़कों पर उछालकर पीटने व पीट जाने का कार्य करते रहते हैं। हालांकि अब आम आदमी पार्टी तो इस फसाद की जड़ भाजपा को बताकर कह रही है कि जब भाजपा के मेयर व डिप्टी मेयर के प्रत्याशी चुनाव में बुरी तरह से हार गए तो उन्होंने ही सम्मानित सदन में मारपीट व गुंडागर्दी शुरू करके ‘खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे’ वाली कहावत को चरितार्थ करने का कार्य किया। वहीं हार के बाद भाजपा के पक्ष ने आरोप लगाते हुए इस पूरे घटनाक्रम के लिए ‘आम आदमी पार्टी’ को जिम्मेदार ठहराया और एमसीडी के चुनावों की निष्पक्षता व गोपनीयता पर सवाल उठाए, वहीं बाद में स्टैंडिंग कमेटी के चुनावों के नाम पर भी सदन में जमकर हंगामा बरपाया गया, दोनों पक्ष इसे स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव डालने का षड्यंत्र बताने पर लगे हुए हैं, हालांकि यह चुनाव अब कानूनी प्रक्रिया में उलझ गया है।
एमसीडी के सम्मानित सदन में घटित इस पूरे शर्मनाक घटनाक्रम पर मेरे मानना है कि यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक कलंक का धब्बा है, जिस भारत में चुनावों में हार के बाद राजनेता आसानी से बिना किसी विवाद के सत्ता का हस्तांतरण कर देते थे, आज वहां पर सत्ता के हस्तांतरण में इस तरह की परिपाटी भविष्य की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बिल्कुल भी अच्छा संकेत नहीं है। वैसे भी आज के हालात में विचारणीय तथ्य यह है कि इस तरह के नकारात्मक गुंडे लोगों का हमारे सभ्य समाज में क्या स्थान है, क्या कोई भी सभ्य व्यक्ति रजामंदी के साथ अपने पास ऐसे लोगों को बैठाना चाहेगा तो इस प्रश्न का उत्तर नहीं में ही मिलेगा और हम लोगों ने तो ऐसे नाकारा लोगों का चुनावों में चयन करके अपना व अपने बच्चों के भविष्य का सर्वेसर्वा बना दिया है, जो कि सभ्य समाज के लिए व देशहित में बिलकुल ग़लत है। हालांकि यहां पर सोचने वाली बात यह भी है कि दिल्ली की एमसीडी में अधिकतर पार्षद ‘आम आदमी पार्टी’ व ‘भारतीय जनता पार्टी’ के हैं और दोनों ही राजनीतिक दल चाल व चरित्र के मसले पर दूसरे दलों से अपने दल को बहुत ही बेहतर व बेदाग बताते हुए अलग होने का दावा करते हैं, लेकिन बेहद अफसोस की बात यह है कि एमसीडी सदन के अंदर कई किस्तों में चली मारपीट की इस शर्मनाक घटना पर अभी तक किसी भी दल ने इस बहुत ही शर्मनाक कृत्य में संलिप्त रहे अपने-अपने पार्षदों के खिलाफ कोई छोटा या बड़ा औपचारिकता निभाने मात्र तक का जरा एक्शन भी नहीं लिया है। वैसे सभी दलों के नेता चाल-चरित्र व चेहरे को लेकर के आयेदिन सार्वजनिक मंचों से लंबे-चौड़े भाषण व प्रवचन करते हुए आम जनमानस को नज़र आते हैं, लेकिन जब स्वयं अमल करने की बारी आती है तो क्षणिक स्वार्थ में ही सारे सिद्धांतों को तिलांजलि देखकर के ठेंगा दिखा देते हैं।
इस तरह के हालात पर अगर हम बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के देश में आयेदिन कहीं ना कहीं सदन के भीतर व बाहर उत्पन्न की जानी वाली इस तरह की स्थिति का निष्पक्ष रूप से आंकलन करें तो यह बिल्कुल स्पष्ट नज़र आता है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राजनेताओं के द्वारा ‘तू डाल-डाल मैं पात-पात’ की एक जबरदस्त प्रतियोगिता चल रही है, कोई भी इस नकारात्मकता से परिपूर्ण प्रतियोगिता में पीछे नहीं रहना चाहता है, चाहे उसके लिए हम सभी के के प्यारे देश भारत की छवि को ही क्यों ना बट्टा लगाया जाये या फिर दुनिया भर में भारत की बड़ी पहचान मानी जाने वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था के मान-सम्मान से ही इन चंद राजनेताओं को खिलवाड़ ही क्यों ना करना पड़े, वह इसके लिए हर वक्त अंध भक्तों की तरह तैयार बैठे रहते हैं, जो कि दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए नजीर बन चुके अपने प्यारे वतन भारत में भविष्य की राजनीति, राजनीतिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से बिल्कुल भी उचित नहीं है।