एमसीडी के नतीजे भाजपा ही नहीं कांग्रेस के लिए भी खतरे की घंटी

सुशील दीक्षित विचित्र

दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी की एंट्री और भाजपा का पंद्रह साल बाद निगम की सत्ता से बाहर होना , ऊपर से देखने में कोई बड़ी घटना नहीं है । यह भी ठीक ही है कि स्थानीय निकाय चुनावों के मुद्दे राज्य या राष्ट्रीय स्तर के चुनावों से भिन्न होते हैं । भाजपा इसी दिल्ली में लोकसभा चुनाव की सभी सीटें जीत लेती है लेकिन विधानसभा चुनाव में दहाई तक नहीं पहुँचती । उतनी सीटें भी नहीं जीत पाती जितने कि उसके सांसद हैं । इससे वही समुदाय प्रसन्न हो सकता है जिसको भाजपा की किसी भी हार को मोदी की हार प्रचारित करने में सुख मिलता है । खुद अरविंद केजरीवाल इसे मोदी की पराजय से जोड़ रहे हैं । भाजपा का प्रदर्शन भी उतना बुरा नहीं रहा जैसा कि सोशल मिडिया पर प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है ।

कुछ चौनलों से लेकर आप के दफ्तरों तक और दफ्तरों से सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर भाजपा का दिल्ली नगर निगम में सूपड़ा साफ़ बताया जा रहा है । यह अतिरेक और जल्दबाजी में निकाला गया निष्कर्ष है । वोट प्रतिशत के आकड़े इस बात को झुठलाते है । किंतु परंतु इफ वट आदतन कोई भी करे लेकिन तटस्थता से देखे तो भाजपा का मत प्रतिशत पहले की अपेक्षा बढ़ा है । यह दूसरी बात है कि बढ़ा हुआ मत प्रतिशत उतने वोटों में तब्दील नहीं हो सका जो उसे 250 सीटों वाली एमसीडी में 125 का जादुई आकड़ा पार करा सकता । इसका कारण एंटी इंकम्बेंसी उतना नहीं है जितना कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन। कमजोर प्रदर्शन का सीधा फायदा आप को पहुंचा । 2017 में दिल्ली की तीनों एमसीडी में कुल मिला कर कांग्रेस का मत प्रतिशत लगभग 21 था और इस बार घट कर 11.68 रह गया । यह घटा हुआ मत प्रतिशत सीधे आप की झोली में जा गिरा ।

इसका नतीजा यह हुआ कि पिछली बार 31 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस इस वार दहाई का आकड़ा भी नहीं छू सकी और सात सीटों पर ही सिमट गयी । उधर 2017 में आप को 26 प्रतिशत वोट मिला था जिसने आप को 68 सीटों पर जीत दिलाई थी । इस चुनाव में उसे 16.2 प्रतिशत वोट मिले । यही बढ़ा हुआ मत प्रतिशत सीटों में तब्दील हुआ तो आप अचानक दोगुनी ऊंची छलांग मारकर 134 सीटों पर जा पहुँची । यह दिखाता है कि कांग्रेस की झोली से छिटक कर बाहर हुए मतदाता ने सीधे केजरीवाल की पार्टी की ओर रुख किया । थोड़ी बहुत कमी सत्ता से नाराज मतदाताओं ने पूरी कर दी । इसी सब ने मिल कर भाजपा को सत्ता के बाहर बिठा बैठा दिया । आम आदमी पार्टी का पूरी दिल्ली पर अधिकार सुनिश्चित कर दिया । भाजपा का 36 से 39 हुआ वोट शेयर 104 सीट दिला पाया जो बहुमत से 22 और आप से 30 सीट काम रहा ।

जैसा कि पहले कहा गया है कि इसे मोदी और भाजपा की हार से जिस तरह जोड़ा जा रहा है और जिस तरह यह कहा जा रहा है कि भाजपा को उखाड़ फेंका , यह केवल उत्साह का अतिरेक है । ऐसा उत्साह दर्शाने वाले बहुत से नेता , दल बुद्धिजीवी और लोग हैं । पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी की सत्ता में वापसी हुई तब भी इस वर्ग ने जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी , शोर मचाया था कि मोदी हार गए , भाजपा हार गई । यह देखने से आँखें चुरा ली गई कि पश्चिम बंगाल की राजनीति से कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी बाहर हो गई । दोनों की मिला कर जो 76 सीटें थीं वे तीन सीटों वाली भाजपा के पास पहुंच गई जबकि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी शून्य पर सिमट गई ।

दिल्ली के एमसीडी के नतीजों से भाजपा के हारने का फतवा देने वाले फिर एक बार इसी तथ्य से आँखें चुरा रहें हैं कि वस्तुतः या हार जितनी भाजपा की है उससे बहुत अधिक कांग्रेस की है । यह भाजपा से अधिक कांग्रेस की चिंता होनी चाहिए कि जहाँ भी आप की इंट्री होती है वहां कांग्रेस धीरे-धीरे बाहर होती जाती है । आप ने भाजपा को तो बाहर किया लेकिन उतना नुकसान नहीं पहुंचाया जितना कांग्रेस को पहुंचाया। कांग्रेस के खिलाफ लड़ कर ही तो पहली बार अरविन्द केजरीवाल ने अपनी आम आदमी को जीत दिलाई थी । इसी जीत ने शीला दीक्षित की लंबी राजनीतिक जिंदगी पर पूर्णविराम लगा दिया था । इस जीत से एक संदेश राजनीतिक गलियारों में सहसा गूँज उठा कि कांग्रेस की जगह आप ले सकती है । जहां-जहां कांग्रेस कमजोर है वहां वहां आप उसे और कमजोर कर सकती है ।

यह आशंका निराधार नहीं कही जा सकती । आप हर विधानसभा चुनाव की नजीर ले सकते हैं जिसमें भाजपा और कांग्रेस के आलावा आप ने भी हिस्सा लिया हो । ऐसे हर चुनाव में केजरीवाल की नजर कांग्रेस के ही कैडर वोट की ओर रहती है । हर गैर भाजपा की तरह वह भी मुस्लिम दलितों आदि में अपनी पैठ बढ़ा रही है और इसमें वह सफल भी हो रही है । इस घंटी को कांग्रेस वैसे ही सुनने से इंकार कर रही है जैसी तब करती रही जब मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में उदय हो रहा था । किसी भी पार्टी के लिए ऐसी अनदेखी शुभ नहीं मानी जा सकती । विगत में भी यह उदासीनता कांग्रेस के लिए भारी पड़ी थी बल्कि इस बात को यूँ कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा कि विगत से लेकर एमसीडी के चुनावी नतीजों तक भारी ही पड़ती आ रही है । कई क्षेत्रीय दल उसे या उसके विरोध की जमीन से निकले और सबसे पहले उसे ही सत्ता से बेदखल किया वह भी उसी का वोटबैंक हथिया कर ।

पंजाब इसका बहुत बड़ा उदाहरण है । कांग्रेस की अंतर्कलह । उसका निस्तारण करने में असफल शीर्ष नेतृत्व और बड़े स्थानीय नेताओं के असंतोष ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया । बाहर भी उस आप पार्टी ने किया जिसने एक दिन कांग्रेस से दिल्ली छीनी थी और ऐसी छीनी कि वह दोबारा सत्ता तक नहीं पहुँच पाई । क्या पंजाब में भी ऐसा हो सकता है यह भविष्य की बात है लेकिन ताजा समय में कांग्रेस की वहां हालत जैसी खराब है उससे उसके भविष्य पर संदेह ही होता है।

2014 से पहले कांग्रेस केंद्र समेत देश के अधिकांश राज्यों पर काबिज थी । भाजपा के विरोध के नाम पर क्षेत्रीय दल उसे के साथ या तो चुनाव लड़ते थे अथवा भाजपा को सत्ता से दूर रखने के नाम पर उसके गठबंधन यूपीए को समर्थन देते थे । तब कांग्रेस अगुआ थी । 2014 के बाद कांग्रेस की जमीन ऐसी खिसकी कि वह दो राज्यों तक सीमित हो कर रह गयी । जो क्षेत्रीय दल उसके झंडे तले रहते थे वे बाहर हो कर कांग्रेस से अपेक्षा करने लगे कि वह उसके वैनर के नीचे लड़े । राजद जैसी पार्टियों ने महागठबंधन बना कर कांग्रेस को ही पिछलग्गू पार्टी बना दिया । तमिलनाडु में बी पार्टी की कमोवेश यही हालत है । एक बड़ी जीत कांग्रेस को संजीवनी पिला सकती थी लेकिन यह बड़ी जीत आती दिखाई नहीं देती । अध्यक्ष बदलने के बाद भी नहीं ।

इसके विपरीत केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली से निकल कर आप देश के अन्य राज्यों में या तो दस्तक देने लगेगी अथवा अभी भी दे रही है । इसलिए किसी को भी यदि संभलने की फौरी जरूरत है तो वह कांग्रेस है । यह किसी की भारी पराजय है तो वह कांग्रेस है जो अपना वोट शेयर नहीं बचा पायी , जबकि भाजपा ने अपने वोट शेयर में मामूली ही सही इजाफा ही किया है । अगर किसी का सूपड़ा साफ़ हुआ है तो वह है कांग्रेस है जो नौ पर सिमट कर रह गयी ।

भाजपा के लिए भी यह संदेश है कि काम की बातें या काम गिनाने ही नहीं चाहिए काम जमीन पर भी दिखना चाहिए । दिल्ली में भाजपा ऐसा करने में असफल रही । वह कोई ऐसा एजेंडा भी मतदाताओं के सामने नहीं रख सकी जो उसकी विशेषता रही है । उसके सांसद भी अपने क्षेत्र में प्रभावी भूमिका यदि नहीं निभा पाए तो वह इसलिए कि उन्होंने जनता के सामने अपने काम की नजीर पेश नहीं कर सके । आप के नेताओं ने यह काम बहुत कुशलता से किया । भाजपा को इससे सीख लेनी होगी और उसे आगे अपने राज्यों में भी आंकड़ों में नहीं जमीन पर काम करके दिखाना होगा वरना अगर भविष्य में आप ने कांग्रेस की जगह ले ली तो वह भाजपा को भी ऐसे ही प्रभावित कर सकती है जैसा एमसीडी के चुनाव में किया ।