मोदी जी 356 के दोषी तो आप भी है !

Modi ji, you are also guilty of 356!

सीता राम शर्मा “चेतन”

किसी भी नियम कानून, पद या अधिकार का दुरुपयोग उसका गलत तरीके से उपयोग ही नहीं होता, उसका दुरुपयोग वह भी होता है जब उसका उपयोग उस काम के लिए नहीं किया जाए जिसके लिए उसे बनाया गया है । गौरतलब है कि थाना, पुलिस के रहते हुए उसके सामने या आसपास चोरी, डकैती, हत्या होती रहे तो ज्यादा दोषी कौन ? थाना, पुलिस या फिर चोर, डकैत और हत्यारा ? स्पष्ट है ऐसी स्थिति में हर दृष्टिकोण से पहला दोषी थाना, पुलिस ही होगी । पर सोचिए, यदि तब थाना, पुलिस ऐसे तर्क दे कि उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया तो यह उसकी अच्छाई, उपलब्धि और महानता मानी जाएगी या अकर्मण्यता, लापरवाही और कर्तव्यहीनता ? अब कल्पना कीजिए कि किसी देश में जन सुरक्षा का जिम्मेवार महकमा यह सोचकर खुश होता और अभिमान करता हो कि चाहे जितने अपराध होते रहे उसने पहले के जिम्मेवार लोगों की तरह अपने संवैधानिक पद और शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया, किसी के विरुद्ध कठोर कार्रवाई कर किसी को परेशान नहीं किया, तो उसे आप क्या कहेंगे ? बेशक उससे यही पूछेंगे कि यदि जन सुरक्षा के दायित्वों का निर्वहन ना करने के दोषी लोगों और अपराधियों के लिए बने कानूनों का उपयोग करना संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग है तो फिर इन संवैधानिक शक्तियों का सदुपयोग क्या, कब और कैसे ? उन कानूनों और उसका सदुपयोग करने वाली सरकार के होने और नहीं होने का अर्थ क्या ? गौरतलब और अनुभव सिद्ध सत्य तो यह है कि इन ज्वलंत और जरुरी प्रश्नों पर वर्तमान मोदी सरकार का जवाब तो मौन रहकर प्रश्नकर्ता को महत्वहीन या फिर अज्ञानी जता बता कर खुद को ज्ञानी, निष्पक्ष और जिम्मेवार सरकार सिद्ध करना ही होगा !! वर्तमान मोदी सरकार का पिछला दस वर्षीय कार्यकाल निःसंदेह कई महत्वपूर्ण सुधारों, कार्यों और बड़ी उपलब्धियों का रहा है बावजूद इसके इस बात से भी कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि इस दरम्यान उसने कई बड़ी गलतियां भी की है और कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उसे जो सुधार करने चाहिए थे वह उसने बिल्कुल नहीं किया । इनमें से एक जनता के लिए अत्यंत विषम परिस्थितियों के लिए बनाई गई संवैधानिक व्यवस्था, जब कोई भी राज्य सत्ता और शासन व्यवस्था वहां की जन सुरक्षा में असफल सिद्ध हो रही हो, वहां धारा 356 का सदुपयोग नहीं करना रहा है ! उदहारण पश्चिम बंगाल रहा है और मणिपुर भी । अब एक सवाल जो अत्यंत कटु, चुभने वाला और असहनीय लग सकता है, कि क्या उन स्थानों पर जहां लगातार जघन्य अपराध और हत्याएं होती रही, उन अपराधों और हत्याओं का भुक्तभोगी आपकी पहली कतार में से कोई एक या कुछ महानुभाव होते ( क्षमा कीजिएगा, यहां सामान्य मानवीय की बात कर खुद को सबके लिए समान रुप से जिम्मेवार बताने के खोखले तर्क मत दीजिएगा ) तो भी आपकी नीति उसी पापी महानता का अनुकरण करती ? क्षमा कीजिएगा, इस जवाब का अनुमान मेरे जैसा साधारण संवेदनशील आम आदमी नहीं लगा सकता क्योंकि यह स्वंय को महान या महामानव मानने समझने वाले सत्ता शासक के मस्तिष्क की कूटनीतिक पराकाष्ठा से बहुत दूर है । पर मोदी जी, इतना तो अवश्य कहूंगा कि पश्चिम बंगाल और मणिपुर में, जहां सत्ता आपके अपने दल की थी या दूसरे दल की, दोनों जगह आपने विषम परिस्थितियों में आम जनमानस को आतंक और अपराध के भयावह दावानल में छोड़कर ऐसी ही अत्यंत विषम परिस्थितियों के लिए बनाई गई संविधान की धारा 356 का सदुपयोग नहीं किया जो आपकी महानता नहीं, आपकी घोर असंवैधानिक अकर्मण्यता और आपका अक्षम्य सत्ता अपराध था, क्योंकि यदि आपने उस संवैधानिक शक्ति का सदुपयोग समय रहते किया होता तो कई निर्दोष जानें बच जाती । याद रखिएगा, एक कुशल शासक की दृष्टि में हर एक जान की कीमत बराबर होती है और एक निर्दोष को बचाने के लिए वह सैकड़ो अपराधियो की जान लेने से भी नहीं चुकता । आपके शासनकाल में तो कितने ही निर्दोष लोगों की जान जाती रही ! कितने ही निर्दोष लोग जीवन बचाने के लिए महीनों भय और आतंक में जीते जी मरते रहे और मर रहे हैं पर आपकी पापी महानता वाली संवैधानिक दृष्टि यथार्थ में घोर असंवैधानिक और अमानवीय होकर पापी सत्ता की राजनीतिक कूटनीतिक चतुराई में आत्ममुग्धता और महानता के पापी अहसास से इतराती रही है ! सच मानिए, यह किसी सुक्ष्म और देवी शक्तियों से संपन्न आदर्श और महान शासक का जीवन चरित्र और कर्तव्य नहीं हो सकता ! उस भटकाव से बाहर निकलिये । जब जागो तभी सवेरा ! उल्लेखित विषय लेखकीय अज्ञानता का हो या ज्ञान का, आपके पक्ष का हो या विपक्ष का, आपके लिए आवश्यक रुप से महसूस करने वाले अपराधबोध का हो या जगाने वाले कर्तव्यनिष्ठा के भाव का, उसमें सत्य आंशिक हो या वृहद, आपके लिए उसके प्रति स्वीकार्य और सकारात्मकता का शासकीय ग्राह्य भाव और व्यवहार होना चाहिए । आपने वह अब तक नहीं किया पर भविष्य में आवश्यकतानुसार अवश्य कीजिए । करेंगे या नहीं, यह अब भी संदेह और चिंता का विषय है । यहां एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर दूं कि बेशक 1975 का आपातकाल शासकीय राष्ट्र सत्ता की अनीति और उसके राजनीतिक पाप का एक कलंकित अध्याय था तो पिछले दस वर्षीय कार्यकाल में समय रहते आपकी सरकार के द्वारा इन दो राज्यों में धारा 356 की आपातकालीन संवैधानिक व्यवस्था का सदुपयोग नहीं करना भी, एक कलंकित अध्याय ही रहा है, जिसका पूरा और भयावह सच वे जानते हैं जिन्होंने इस संवैधानिक व्यवस्था के सदुपयोग नहीं होने का व्यापक दंश झेला है ।

महोदय, शासन प्रबंधन की दोषपूर्ण व्यवस्था की बात करते हुए सिर्फ एक आवश्यक संवैधानिक धारा का जिक्र आपकी वर्तमान शासकीय विसंगतियों का समग्र विवेचन नहीं, आवश्यकतानुसार सही और गलत कानून मिटाने या बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण यह होता है कि कानून पुराने हो या परिष्कृत, नये हो या जरुरी, बिना किसी भेदभाव और राजनीतिक लाभ-हानी के देश और हर एक देशवासी के लिए व्यवहारिक तौर पर निभाए और बनाए जाने चाहिए । क्या आपकी सरकार ऐसा कर पा रही है ? करेगी ? जवाब के लिए किसी भी प्रकार के असमंजस या दुविधा की स्थिति नाटकीय, छलावा और सरासर बेईमानी ही होगी क्योंकि जवाब बहुत स्पष्ट है – नहीं । क्यों ? इसके लिए वास्तविकता सर्वविदित है । अब इस संदर्भ में एक अंतिम तर्क आपकी सरकार का हो सकता है कि समस्याएं बहुत पुरानी हैं इसलिए समय तो लगेगा । चलिए मान लेते हैं, पर उसकी भी कोई तो सीमा होगी ? दस वर्ष बीत चुके और पूरे पांच वर्ष अधिकारिक तौर पर और मिल चुके हैं ! परिणाम की बात करें तो जनता के छोटे-छोटे काम आज भी मुश्किल हैं ? अव्यवस्था, अनियमितता, अफसरशाही, घूसखोरी और भ्रष्टाचार अब भी अनवरत जारी है ! उसकी सूचना सीधे आपके मंत्रियों के साथ आप तक की जाती है, पर उन शिकायतों पर आवश्यक सुनवाई का उसका विश्वास अंततः आम जनता का अपराध ही सिद्ध हो रहा है !! भ्रष्टाचारी, अपराधी नौकरशाह आज भी मनमानी कर रहे हैं और आम आदमी आप और आपकी सरकार पर भरोसा करता अंततः निराश हताश होता यह सोचने को विवश है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध आई भ्रष्ट सरकार का विकल्प क्या ? महोदय, याद कीजिए, 2014 में सत्ता संभालने से पहले नक्सलवाद, आतंकवाद और भ्रष्टाचार को खत्म करने के आपके नारे और उसकी निरंतर बढ़ाए जाने वाली समय सीमा के छलिया पापी भाषणों और आश्वासनों का दौर आज भी आपके और आपके संगी-साथियों के श्रीमुख से जारी है ! नक्सलवाद पर थोड़ा अंकुश लगा पर जो उससे दूर हुए उनमें से अधिकांश आज भी अपराध का ही कारोबार चला रहे हैं ! भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी की तो बात करना ही आपके लिए सरासर बेईमानी और निर्लज्जता की निशानी होगी क्योंकि उनकी संख्या तो आपके कार्यकाल में देश के मंदिर, संसद में ही बढ़ती चली गई है ! महोदय, याद रखिएगा कुशल व्यापारी बनकर राष्ट्रीय या वैश्विक प्रभाव तो बढ़ाया जा सकता है उसे स्थायित्व देने के लिए कानून के राज की सफलता नितांत आवश्यक है । जिस पर आपका ध्यान गायब है । सच कहें तो उसकी पहली गुनाहगार तो आपकी सरकार और अपराधियों से भरी संसद ही है ! रही बात आपके दल की बढ़ती शक्ति और सामर्थ्य की, तो पाखंड में नहीं सत्य के साथ राम और कृष्ण के होकर सत्य और उसके न्याय को समझने का प्रयास कीजिए, उसका सरल सिद्धांत है कि अनीति का अंत निश्चित है । जीवन नीति हो, राजनीति हो या कूटनीति यदि भाव, कर्म और लक्ष्य धर्म सम्मत और उचित हो तो भी उसे साधने के लिए छल प्रपंच और अपराध की न्यूनता श्रेष्ठ होती है । उस श्रेष्ठता का अभाव आज आपकी सरकार में भी स्पष्ट दिखाई देता है । फिर भविष्य और अंतिम परिणाम क्या ? आप बखूबी समझ सकते हैं ।

महोदय, आलेख में अत्यंत कटु सत्यों का निर्ममता से किया गया वर्णन जनहित के साथ आपके, आपकी सरकार के और सबसे ज्यादा देश के हित को ध्यान में रखकर किया गया है । जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ! ज्ञानी ज्ञान ही लेते हैं और अज्ञानी अज्ञान ही । महान विद्वान और राजनीति शास्त्र के ज्ञाता प्रसिद्ध कुटनीतिज्ञ चाणक्य ने कहा था कटु आलोचक परम मित्र होता है और प्रबल प्रशंसक शत्रु । पानी का प्यासा कुंआ खोदने के पहले पानी योग्य उपयुक्त भूमि का चयन करता है । जिससे आशा हो उसी के सामने उसकी कमियों और उसके प्रति अपनी निराशाओं और अपेक्षाओं का जिक्र करना चाहिए । हालाकि आशा अब संदिग्धता के मार्ग पर है बावजूद उसमें दिखाई देती अंतिम संभावनाओं में यह आलेख हलचल करने का प्रयास भर है । आपने कई बार आपातकाल पर कांग्रेस की आलोचना करते हुए उसे कटघरे में खड़ा किया है और अब भी कर रहे हैं इसलिए बड़ी विनम्रता और स्पष्टता से लिख रहा हूं कि संविधान की धारा 356 का सदुपयोग ना करने के दोषी आप भी हैं ! जिसके लिए आपको खुद को भी कटघरे में खड़ा करना चाहिए ।

अंत में दो बात प्रमुखता से । एक – व्यवस्था में स्वच्छता और उत्कृष्टता चाहिए तो सबसे पहले अपने दल की व्यवस्थागत सफाई कर उसे स्वच्छ और व्यवस्थित करना चाहिए । मैंने 2014 में आपको भेजे अपने पहले पत्र में भी लिखा था कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री उपर से नीचे की तरफ आती है । अतः भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवश्यक प्राथमिक उपचार और कठोर प्रयास की जरूरत सबसे पहले उपर है । दुर्भाग्य से आज भी स्थिति वही है ! आपके और आपकी सरकार के लिए सबसे पहले और ज्यादा जरुरी है देश के सांसदों, विधायकों और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए कठोर अनुशासन और दंड का विधान बनाना । किसी का भी चयन, कर्तव्यहीनता, अपराध और भ्रष्टाचार की स्थिति में सिर्फ और सिर्फ सेवा समाप्ति के प्राथमिक दंड के नियम के साथ ही प्रारंभ हो । सांसद और विधायक बनने की योग्यता के कानून की मांग तो बहुत पहले से हर एक नागरिक की रही है । दो – कानून का राज स्थापित करना देश की दूसरी अनिवार्य आवश्यकता है और यह सिर्फ कानून बना कर नहीं, उन्हें व्यवहार में लाकर किया जा सकता है । इसके लिए यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सरकार के संज्ञान में आते विषयों, मामलों और सत्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार और त्वरित व्यवहार किया जाए । जो फिलहाल बहुत दूर की बात दिखती है और उस पर आपका और आपकी सरकार का प्रयास और ध्यान ना के बराबर है !!