अशोक मधुप
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission) ने देश के डॉक्टर्स के लिए जेनेरिक दवाइयां प्रेस्क्रिप्शन में लिखना अनिवार्य कर दिया है.आदेश में कहा है कि अगर कोई भी डॉक्टर ऐसा नहीं करता है तो उसके प्रैक्टिस लाइसेंस को भी अस्थायी तौर पर सस्पेंड कर दिया जा सकता है. लाइसेंस सस्पेंड करने के अलावा कई अन्य दंड का भी प्रावधान किया गया है.इस आदेश में यह भी कहा गया है कि पर्ची पर डाक्टर दवा स्पष्ट शब्दों में लिखेगा. राष्ट्रीय चिकित्सा बोर्ड का आदेश तो जनता के हित में है. वह चाहता है कि जनता को सस्ती दवाएं मिलें, किंतु आदेश को लागू करने से पहले ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि जैनरिक दवाएं सर्व सुलभ हों. जगह −जगह जैनरिक दवा के स्टोर खुलवाने होंगे.जबकि अभी तक ऐसा नही है. मजबूरन मरीज और जरूरतमंद ब्रांडेड दवा के स्टोर के पास जाता है.
नेशनल मेडिकल कमीशन के नए नियमों के अनुसार अब सभी डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं लिखनी होगी. अगर कोई डॉक्टर ऐसा नहीं करता है तो उसे दंडित भी किया जा सकेगा. एनएमसी ने डॉक्टर्स से यह भी कहा है कि वह ब्रॉडेड जेनेरिक दवाओं को लिखने से भी बचें. दो अगस्त को एनएमसी ने नियमों का नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा कि भारत में जेनेरिक दवाएं ब्रॉडेड दवाओं की तुलना में 30 से 80 प्रतिशत तक सस्ती हैं. भारत में दवाइयों पर आम आदमी के जेब पर बड़ा भार पड़ता है. ऐसे में जेनेरिक दवाएं प्रेस्क्राइब करने पर हेल्थ पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। दरअसल, जेनेरिक और ब्रॉडेड दवाओं की गुणवत्ता और असर में कोई अंतर नहीं होता, लेकिन तमाम बड़ी कंपनियां ऊंची कीमत वाली दवाइयों को प्रेस्क्राइब करने के लिए काफी ऑफर चलाती रहती हैं.
एनएमसी के नए नियमों के अनुसार, डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं ही लिखनी होगी. बार-बार आदेश का उल्लंघन करने पर डॉक्टर का प्रैक्टिस करने का लाइसेंस एक विशेष अवधि के लिए सस्पेंड कर दिया जाएगा. साथ ही डॉक्टर्स को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह अगर किसी मरीज का पर्ची बना रहा यानी की प्रेस्क्रिप्शन लिख रहा है तो वह उसे स्पष्ट भाषा में लिखे जो किसी से भी पढ़ा जा सके. नेशनल मेडिकल कमीशन ने आदेश दिया है कि दवाइयों के नाम अंग्रेजी के कैपिटल लेटर्स में लिखा जाना चाहिए. अगर हैंडराइटिंग सही नहीं है तो पर्ची को टाइप कराकर मरीज को प्रेस्क्रिप्शन दिया जाए. एनएमसी ने एक टेम्पलेट भी जारी किया है. इस टेम्पलेट का उपयोग नुस्खा लिखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा.
नेशनल मेडिकल कमीशन यानी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने आदेश में यह भी कहा कि अस्पतालों और डॉक्टर्स को मरीजों को जन औषधि केंद्रों और अन्य जेनेरिक फार्मेसी दुकानों से दवाएं खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. आदेश में यह भी कहा गया है कि मेडिकल छात्रों और जनता को उनके ब्रांडेड समकक्षों के साथ जेनेरिक दवा की समानता के बारे में शिक्षित करना चाहिए. जेनेरिक दवाओं के प्रचार को बढ़ावा देनी चाहिए.
उधर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सोमवार को मांग की कि डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य बनाने वाले नियमों को टाल दिया जाए. आइएमए ने भारत में बनी दवाओं के मानक को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि इनमें 0.10 प्रतिशत से भी कम का क्वालिटी चैक किया जाता है. आइएमए ने यह भी कहा कि अगर डॉक्टरों को ब्रांडेड दवाएं लिखने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो ऐसी दवाओं को लाइसेंस क्यों दिया जाना चाहिए. जेनेरिक दवाओं के लिए सबसे बड़ी परेशानी उनकी क्वालिटी की गारंटी है. देश में अभी क्वालिटी कंट्रोल बहुत कमजोर है. जब तक सरकार बाजार में जारी सभी दवाओं की क्वालिटी का भरोसा नहीं दिला देती, तब तक इस कदम को टाल देना चाहिए.
ज्ञातव्य है कि इंडियन मेडिकल काउंसिल की ओर से 2002 में जारी नियमों में बदलाव किया था. उन्होंने उसमें सजा होने की बात जोड़ी थी. इंडियन मेडिकल काउंसिल के बदले गए नियमों के तहत डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन में अब सिर्फ यह लिखेंगे कि उस बीमारी के लिए मरीज को क्या फॉर्मूला लेना है। वो किसी ब्रांड की दवा का नाम नहीं लिख सकते हैं.
इससे पहले भी कई बार डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं न लिखने पर कार्रवाई की चेतावनी दी जा चुकी है. मई 2023 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने कहा था- केंद्र सरकार ने अस्पतालों, स्वास्थ्य योजना कल्याण केंद्रों और पॉलीक्लिनिक के डॉक्टरों को कई बार जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश जारी किए हैं,इसके बावजूद अस्पतालों के रेजिडेंट और एक्सपर्ट्स डॉक्टर मरीजों को प्रिस्क्रिप्शन में ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं, अब ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का आदेश तो सही है किंतु इस आदेश को लागू करने का सही समय सही नही है.यह तो सही है कि जन औषधि सस्ती हैं, किंतु सर्व सुलभ नही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के भाषण में कहा कि देश में दस हजार जन औषधि केंद्र हैं, हम इन्हें बढ़ाकर 25 हजार करने जा रहे हैं. लगभग 143 करोड़ की भारत की आबादी पर दस हजार जन औषधि केंद्र न के बराबर हैं,ये संख्या लाखों में होनी चाहिए , तभी तो सबको दवा मिलेंगी. अभी तो हालत यह है कि जन ओषधि केंद्र पर दवाई ही नही मिलती।जवाब मिलता है,उपर से आपूर्ति नही है।मजबूरन बीमार तो दूसरे ब्रांडेड दवाई वाले महंगे स्टोर से कई गुनी मंहगी दवाई खरीदनी पड़ती हैं.बात जन औषधियों की है तो अभी तो सरकारी अस्पतालों को भी पूरी जन औषधि की आपूर्ति नही हो पा रही.एक अनुमान के अनुसार आधी से ज्यादा सरकारी अस्पतालों के लिए खरीदी जाने वाली दवाईं नॉन जेनेरिक होती हैं.
जैनेरिक दवाई ही लिखने का आदेश करने से पूर्व यह तो व्यवस्था बने कि नगरों के प्रत्येक मुहल्ले में एक ,और गांव में कम से कम दो जैनेरिक स्टोर हों । इस पर भी यह शर्त है कि इन जैनेरिक स्टोर पर सारी दवाई उपलब्ध हों।ऐसा हो जाने के बाद ही ये आदेश लागू किया जाना समीचीन होगा। इस आदेश के लिए अभी उपयुक्त सयम नहीं हैं।
एक बात और आईएमए ने कहा है कि 0.10 प्रतिशत से भी कम दवाई का क्वालिटी चैक किया जाता है। इंडियन मेडिकल काउंसिल को देखना होगा कि क्या ऐसा है, यदि ऐसा है तो दवाई के क्वालिटी कंट्रोल पर धयान देने की सबसे बडी जरूरत है.केंद्र सरकार और इंडियन मेडिकल काउंसिल को यह सुनिश्चित करना होगा कि मार्केट में जाने वाली प्रत्येक दवा शत −प्रतिशत सही है. क्योंकि गलत , कम साल्ट वाली या नकली दवा मरीज को बचाती नही, मारती ही है.मरीज को पता भी नही चलता कि वह क्या खा रहा है.यह तो मार्केट से असली दवा समझकर खरीदता है। असली दवा की कीमत चुकाता है, नकली की नही.और मरीज को असली दवाके दाम पर नकली दवा मिलती है. अब तो भारत का नकली दवा का कारोबार विदेशों में भी भारत की शाख खराब करने लगा है.आखों में डालने की दवा और खांसी के सिरप से कई देशों में मौत होने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय कुछ भारतीय कंपनियों की दवा पर रोक भी लगाई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)