संतानों के दुर्व्यवहार एवं उत्पीड़न से जटिल होती वृद्धावस्था

Old age becoming complicated due to abuse and harassment of children

ललित गर्ग

देश ही नहीं, दुनिया में वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, हिंसा बढ़ती जा रही है, जो जीवन को नरक बनाये हुए है। बच्चे अपने माता-पिता के साथ बिल्कुल नहीं रहना चाहते। यही पीड़ा वृद्धजन को पल-पल की घुटन, तनाव एवं उपेक्षा से निकलकर वृद्धाश्रम जाने के लिए विवश करती है। संतान द्वारा बुजुर्गों की आवश्यकताओं को पूरा न करना गरिमा के साथ स्वतंत्र जीवन जीने जैसे मानवाधिकारों का हनन है। संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारांे के बढ़ते चलन ने इस स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया है। एक बड़ा प्रश्न है कि वृद्धों की उपेक्षा एवं दुर्व्यवहार के इस गलत प्रवाह को किस तरह से रोके?

क्योंकि सोच के गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि आदमी-आदमी के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है। वृद्धों के जीवन से जुड़ी इस विकट समस्या के समाधान के लिये ही विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस हर साल 15 जून को मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत सबसे पहले 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा बुजुर्गों द्वारा अनुभव किए जाने वाले दुर्व्यवहार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार को ‘एकल, या बार-बार की गई हरकत, या उचित कार्रवाई की कमी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो किसी भी रिश्ते में घटित होती है, जहाँ विश्वास की उम्मीद होती है, जो किसी बुजुर्ग व्यक्ति को नुकसान या परेशानी पहुँचाती है’। यह एक वैश्विक सामाजिक एवं पारिवारिक मुद्दा है जो दुनिया भर में लाखों बुजुर्गों के स्वास्थ्य और मानवाधिकारों को प्रभावित करता है और एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ध्यान देने की आवश्यकता है। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस 2024 की थीम ‘सभी पहचानों की बुजुर्ग पीड़ितों के लिए सम्मान, सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता देना’ है। याद रखें, बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने में छोटी-छोटी कदम भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। उन लोगों की आवाज बनें जो खुद के लिए बोलने में सक्षम नहीं हैं, दूसरों को शिक्षित करें और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठनों का समर्थन करें। साथ मिलकर, हम एक ऐसी दुनिया बना सकते हैं जहाँ हर बुजुर्ग अपने बुढ़ापे को गरिमा, आत्मसम्मान, सुरक्षा और स्वस्थता के साथ जी सके।

विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस एक प्रयोजनात्मक अवसर एवं उत्सव है। यह दिन उन तरीकों को खोजने के लिए भी मनाया जाता है कि कैसे समाज में बुजुर्ग लोगों की उपेक्षा, दुर्व्यवहार एवं उनके प्रति बरती जा रही उदासीनता की त्रासदी से उन्हें मुक्ति देकर उन्हें सुरक्षा कवच मानने की सोच को विकसित किया जाये ताकि वृद्धों के स्वास्थ्य, निष्कंटक एवं कुंठारहित जीवन को प्रबंधित किया जा सकता है। वृद्धों को बंधन नहीं, आत्म-गौरव के रूप में स्वीकार करने की अपेक्षा है। वृद्धों को लेकर जो गंभीर समस्याएं आज पैदा हुई हैं, वह अचानक ही नहीं हुई, बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति तथा महानगरीय अधुनातन बोध के तहत बदलते सामाजिक मूल्यांे, नई पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आने, महंगाई के बढ़ने और व्यक्ति के अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति के कारण बड़े-बूढ़ों के लिए अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं। चिन्तन का महत्वपूर्ण पक्ष है कि वृद्धों की उपेक्षा एवं दुर्व्यवहार का कारण क्या है? वृद्ध व्यक्ति अक्सर गतिशीलता संबंधी समस्याओं, पुरानी स्वास्थ्य स्थितियों या सामाजिक अलगाव का सामना करते हैं। इसके अतिरिक्त, आपात स्थितियों का तनाव और अराजकता शारीरिक, भावनात्मक, वित्तीय या उपेक्षा सहित बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के जोखिम को बढ़ा सकती है। आपातकालीन स्थितियों में वृद्ध व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर, हम अधिक समावेशी और सुरक्षात्मक वातावरण को बढ़ावा दे सकते हैं।

बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक ऐसी वैश्विक समस्या है जो विकासशील और विकसित दोनों देशों में मौजूद है, हालाँकि बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार की सीमा अज्ञात है, लेकिन इसका सामाजिक और नैतिक महत्व स्पष्ट है। नये विश्व की उन्नत एवं आदर्श संरचना बिना वृद्धों की सम्मानजनक स्थिति के संभव नहीं है। वर्किंग बहुओं के ताने, बच्चों को टहलाने-घुमाने की जिम्मेदारी की फिक्र में प्रायः जहां पुरुष वृद्धों की सुबह-शाम खप जाती है, वहीं महिला वृद्ध एक नौकरानी से अधिक हैसियत नहीं रखती। यदि परिवार के वृद्ध कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, रुग्णावस्था में बिस्तर पर पड़े कराह रहे हैं, भरण-पोषण को तरस रहे हैं तो यह हमारे लिए वास्तव में लज्जा एवं शर्म का विषय है। वर्तमान युग की बड़ी विडम्बना एवं विसंगति है कि वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, वृद्धों की उपेक्षा स्वस्थ एवं सृसंस्कृत परिवार परम्परा पर काला दाग है। हम सुविधावादी एकांगी एवं संकीर्ण सोच की तंग गलियों में भटक रहे हैं तभी वृद्धों की आंखों में भविष्य को लेकर भय है, असुरक्षा और दहशत है, दिल में अन्तहीन दर्द है। इन त्रासद एवं डरावनी स्थितियों से वृद्धों को मुक्ति दिलानी होगी। इसके लिये आज विचारक्रांति ही नहीं, बल्कि व्यक्तिक्रांति एवं परिवार-क्रांति की जरूरत है।

हमारा भारत तो बुजुर्गों को भगवान के रूप में मानता है। इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण है कि माता-पिता की आज्ञा से भगवान श्रीराम जैसे अवतारी पुरुषों ने राजपाट त्याग कर वनों में विचरण किया, मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता को काँवड़ में बैठाकर चारधाम की यात्रा कराई। फिर क्यों आधुनिक समाज में वृद्ध माता-पिता और उनकी संतान के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है। आज वृद्धों को अकेलापन, परिवार के सदस्यों द्वारा उपेक्षा, दुर्व्यवहार, तिरस्कार, कटुक्तियां, घर से निकाले जाने का भय या एक छत की तलाश में इधर-उधर भटकने का गम हरदम सालता रहता। वृद्ध समाज इतना कुंठित एवं उपेक्षित क्यों है, एक अहम प्रश्न है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार अनेक स्वस्थ एवं आदर्श समाज-निर्माण की योजनाओं को आकार देने में जुटी है, उन्हें वृद्धों को लेकर भी चिन्तन करते हुए वृद्ध-कल्याण योजनाओं को लागू करना चाहिए, ताकि वृद्धों की प्रतिभा, कौशल एवं अनुभवों का नये भारत-सशक्त भारत के निर्माण में समुचित उपयोग हो सके एवं आजादी के अमृतकाल को वास्तविक रूप में अमृतमय बना सके। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय है। बड़े बूढ़ों के साथ दुर्व्यवहार देखकर लगता है जैसे हमारे संस्कार ही मर गए हैं। बुजुर्गों के साथ होने वाले अन्याय के पीछे एक मुख्य वजह सामाजिक प्रतिष्ठा मानी जाती है। तथाकथित व्यक्तिवादी एवं सुविधावादी सोच ने समाज की संरचना को बदसूरत बना दिया है। आज बन रहा समाज का सच डरावना एवं संवेदनहीन है। आदमी जीवनमूल्यों को खोकर आखिर कब तक धैर्य रखेगा और क्यों रखेगा जब जीवन के आसपास सबकुछ बिखरता हो, खोता हो, मिटता हो और संवेदनाशून्य होता हो। संवेदनशून्य समाज में इन दिनों कई ऐसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं, जब संपत्ति मोह में वृद्धों की हत्या कर दी गई। ऐसे में स्वार्थ का यह नंगा खेल स्वयं अपनों से होता देखकर वृद्धजनों को किन मानसिक आघातों से गुजरना पड़ता होगा, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। वृद्धावस्था मानसिक व्यथा के साथ सिर्फ सहानुभूति की आशा जोहती रह जाती है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक परिस्थितियां काम करती हैं। वृद्धजन अव्यवस्था के बोझ और शारीरिक अक्षमता के दौर में अपने अकेलेपन से जूझना चाहते हैं पर इनकी सक्रियता का स्वागत समाज या परिवार नहीं करता और न करना चाहता है।