भारत में आदिवासी जन, जंगल, जमीन व हॉकी से दिल से जुड़े शख्स थे ओलंपियन जयपाल सिंह मुंडा

Olympian Jaipal Singh Munda was deeply connected to India's tribal people, forests, land and hockey

  • एंग्लो इंडियन खिलाड़ियों के विरोध के चलते फाइनल नहीं खेले
  • हॉकी इंडिया ने महान आदिवासी हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा को याद किया

सत्येन्द्र पाल सिह

नई दिल्ली : मौजूदा पीढ़ी कभी भारतीय हॉकी के इतिहास के पन्नों पर नजर डालेगी तो उसे यह तो पढ़ने को जरूर मिल जाएगा कि सर्वकालीन महानतम हॉकी खिलाड़ी की ध्यानचंद की हॉकी की कलाकारी से भारत ने आजादी से पहले 1928(एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजेल्स)और 1936 के ओलंपिक में अंग्रेजों की उपेक्षा को दरकिनार कर खिताब की सुनहरी हैट्रिक पूरी की। बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ होंगे कि भारत के आजाद होने से पहले 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में शिरकत कर उसे स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम का कप्तानी बेहतरीन फुलबैक रहे जयपाल सिंह मुंडा को सौंपी गई थी लेकिन एंग्लो इंडियन खिलाड़ियों के विद्रोह के चलते उन्होंने फाइनल से पहले ही टीम की कप्तानी छोड़ दी थी। विद्रोही हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा को भारत की 1928के ओलंपिक मे कप्तानी दिए जाने का खासतौर पर एंग्लो इंडियन खिलाड़ियों ने एरिक पेनिगर की अगुआई में विरोध किया था। तब भारतीय टीम के मैनेजर रॉजर भी पेनिगर के साथ हो गए और इसके चलते जयपाल सिंह फाइनल में नहीं खेले। तब भारत ने पेनिगर की अगुआई में नीदरलैंड को 1928 ओलंपिक के फाइनल में 3-0से हरा पहली बार स्वर्ण पदक जीता था। भारत में आदिवासी जन, जंगल, जमीन व हॉकी से दिल से जुड़े शख्स थे ओलंपियन जयपाल सिंह मुंडा। हॉकी इंडिया ने बीते मंगलवार से एक महीने का अभियान शुरू किया है, जो 7 नवंबर 2025 को भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूरे होने के शताब्दी समारोह तक चलेगा। इसी मौके पर हॉकी इंडिया ने महान आदिवासी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा को याद किया।

जयपाल सिंह मुंडा का जन्म रांची (अब झारखंड) जिले के खूंटी सब डिविजन पाहन टोली गांव में एक मुंडा (आदिवासी) परिवार में प्रमोद पाहन के रूप में हुआ था। तब रांची जिला तत्कालीन बंगाल प्रेसिडेंसी में आता था। आदिवासियों को हॉकी में सबसे पहले पहचान जय पाल सिंह मुंडा ने ही दिलाई और उन्हें भारत के सर्वकालीन महानतम आदिवासी हॉकी खिलाड़ी के रूप में याद किया जाएगा। सच तो आदिवासी खिलाड़ियों के भारतीय हॉकी में बतौर फुलबैक समृद्ध इतिहास के पहले सबसे कामयाब फुलबैक जयपाल सिंह मुंडा थे। उन्हीं की बतौर फुलबैक विरासत को माइकल किंडो, दिलीप तिर्की,लाजरस बारला और अब अमित रोहिदास शान से आगे बढ़ा रहे हैँ।

जयपाल सिंह मुंडा बहुमुखी प्रतिभा के धनी और मनमौजाी थे लेकिन अपनी बात को तर्क के साथ कहने के साथ अपने प्रतिद्वंद्वी को उसे मानने को मजबूर कर देते थे। जयपाल सिंह मंडा अपन जमाने के कामयाब हॉकी खिलाड़ी, जमाने के साथ चलने वाले शिक्षक और बुलद इरादों के साथ अपनी बात कहने वाले देशभक्त थे। वह आदिवासियों के हितों के हमेशा अपनी आवाज उठाते रहे । जयपाल सिंह मुंडा का नाम भारत की महान हॉकी शख्सियतों के रूप में हमेशा अमर रहेगा।

भारत में हर एक कोस पर बोली बदल जाती हे खान पान बदल जाता है। आजादी से पहले आदिवासियों और वहां की जनजातियों की अपनी परंपराएं और रीति रिवाज थे और आज भी है। इनको लेकर आजादी से पहले कई तरह की भ्रांतियां भी थी। दरअसल आत्मरक्षा के लिए हिथयार रखने अर उनका बेवजह इस्तेमाल करने में बहुत फर्क है कोई भी व्यक्ति महज हथियार रखने से आतंकी नहीं हो जाता। 1946 में संविधान सभा में जयपाल सिंह ने हथियार अधिनियम की एक व्यवस्था का तब आदवासियों के खिलाफ बेहद निष्ठुर ढंग से इस्तेमाल करने का मसला उठाया था। देश की आजादी से पहले 1946 में खुद संविधान सभा में चुने पर जब जयपाल सिंह ने कहा,‘ मुझे अपने ‘जंगली’ होने पर गर्व है तो सभी यह साफ हो गया था कि इंग्लैंड में काफी वक्त गुजारने के बावजूद उनके दिल में अपना जंगल और हर आदिवासी के लिए दर्द छिपा था। जयपाल सिंह खुद मुंडा थे और बिरसामुंडा के जीवन दर्शन से खासे प्रभावित रहे। जयपाल सिंह का परविवार भी अन्य आदिवासियों की तरह ईसाई मिशनरियों के संपर्क में आया और उसने भी ईसाई धर्म अपना लिया। उन्हाने रांची में मिशनरियाशं के सेंट पॉल स्कूल में शिक्षा ली। सेंट पॉल के प्रिसिंपल ने ही उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफर्ड भेजा और बहुत जल्द ही वह ऑक्सफर्ड योनवर्सिटी के तोप हॉकी खिलाड़ी बन गए।