ऑपरेशन सिंदूर: आतंक के अड्डों पर भारत का ‘सिंदूरी’ कहर

Operation Sindoor: India's 'Sindoori' havoc on terror bases

योगेश कुमार गोयल

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिये भारत ने साबित कर दिया है कि वह अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं बल्कि आतंक के स्त्रोतों पर निर्णायक और सर्जिकल प्रहार करने वाला राष्ट्र बन चुका है। कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जिस तरह भारत ने सीमा पार स्थित आतंकी ठिकानों पर निशाना साधते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया, उसने न केवल पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाई बल्कि भारत की नई सैन्य नीति को भी स्पष्ट कर दिया कि अब हम चुप नहीं बैठेंगे बल्कि हम आतंक के जन्मस्थल तक जाएंगे और वहां आग लगाएंगे। यह ऑपरेशन केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह उस बदले हुए भारत की घोषणा थी, जो अब बातों से नहीं, बमों से जवाब देता है, जो कूटनीति की किताब बंद करके अब अपने लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की बोली में संवाद करता है। भारतीय वायुसेना ने जब पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आतंकियों के अड्डों पर सर्जिकल स्ट्राइक की तो यह महज जवाबी हमला नहीं था, यह स्पष्ट संदेश था कि भारत अब किसी आतंकी की मांद को भी सुरक्षित नहीं छोड़ेगा, चाहे वह सरहद के इस पार हो या उस पार।

ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य स्पष्ट था, उन स्थानों को ध्वस्त करना, जहां से भारत में आतंक का बीज बोया जाता है। पहलगाम हमला, जिसमें हमारे निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया गया, उसकी साजिश कहीं और नहीं, पाकिस्तान की फौज, आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा जैसों की सांठगांठ से ही तैयार की गई थी। भारत ने न केवल इस साजिश को समझा बल्कि उसे जड़ से उखाड़ने की भी ठान ली है। इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना ने जिस साहस, रणनीति और सटीकता का परिचय दिया, वह दुनिया के किसी भी शीर्ष सैन्य बल को चुनौती देने के लिए पर्याप्त है। पाकिस्तान हमेशा से ही दोहरी भूमिका निभाता रहा है, एक ओर वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शांति और वार्ता की बात करता है तो दूसरी ओर अपने क्षेत्र को आतंकियों के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में प्रयोग करता है। भारत ने अब उस नकाब को पूरी तरह नोच फेंका है। ऑपरेशन सिंदूर ने बता दिया कि भारत अब उन भाषणों या प्रस्तावों से संतुष्ट नहीं होगा, जो संयुक्त राष्ट्र में दिए जाते हैं बल्कि उन बंकरों को नेस्तनाबूद करेगा, जहां से ये षड्यंत्र जन्म लेते हैं।

भारत द्वारा यह कार्रवाई अचानक नहीं की गई बल्कि पहले खुफिया एजेंसियों के माध्यम से आतंकियों की गतिविधियों की पूरी जानकारी जुटाई गई। सैटेलाइट इमेजिंग, मानव खुफिया नेटवर्क और तकनीकी निगरानी के जरिये भारत को यह स्पष्ट हो गया था कि पाक अधिकृत कश्मीर में कुछ स्थान आतंकियों के लांच पैड के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह भी सामने आया कि हालिया पहलगाम हमले की योजना भी यहीं से बनाई गई थी। भारत की यह नीति अब ‘हिट ऐंड होल्ड’ की है कि हमला करो, कब्जा करो और दबाव बनाए रखो। इस ऑपरेशन में सबसे प्रभावशाली बात यह रही कि भारतीय लड़ाकू विमानों ने रात के अंधेरे में बेहद सटीकता से अपने लक्ष्य साधे और सीमित समय में वहां से निकल आए। यह ‘नो वॉर्निंग, नो वॉर’ रणनीति का आदर्श उदाहरण था। पाकिस्तान के वायु रक्षा तंत्र को भनक तक नहीं लगी और जब तक वहां के सैन्य प्रतिष्ठान कुछ समझ पाते, तब तक भारत अपना काम करके वापस लौट चुका था।

इस ऑपरेशन में केवल आतंकी ठिकानों को ही नहीं, उन ठिकानों को भी निशाना बनाया गया, जहां से उन्हें रसद, हथियार और प्रशिक्षण दिया जाता था। यह केवल आतंकियों के खिलाफ नहीं बल्कि आतंक को संरक्षण देने वाली पूरी पाकिस्तानी सैन्य और खुफिया संरचना के खिलाफ कार्रवाई थी। यही कारण है कि पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य गलियारों में इस ऑपरेशन के बाद सन्नाटा छा गया। हालांकि पाकिस्तान की प्रतिक्रिया पूर्वानुमेय थी, पहले इन्कार, फिर विक्टिम कार्ड खेलना और अंत में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से गुहार लगाना लेकिन अब वैश्विक परिदृश्य बदल चुका है। अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अन्य लोकतांत्रिक देश भारत के साथ खड़े हैं। आतंक के प्रति उनकी नीति अब स्पष्ट है कि जो आतंक को शरण देगा, वह खुद सुरक्षित नहीं रहेगा। इसीलिए, भारत द्वारा किए गए इस ऑपरेशन को विश्वभर में नैतिक समर्थन और वैधता प्राप्त हुई है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि ऑपरेशन सिंदूर का सैन्य पक्ष जितना शक्तिशाली था, उतनी ही मजबूत उसकी कूटनीतिक तैयारी भी थी। भारत ने पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के आतंक समर्थक चेहरे को उजागर कर दिया था। एफएटीएफ जैसे मंचों पर पाकिस्तान की असफलताएं जगजाहिर हैं। ऐसे में भारत का यह सैन्य कदम उस लंबे कूटनीतिक संघर्ष का परिणामी वार था, जिसे वर्षों से संजोया जा रहा था। ऑपरेशन सिंदूर ने यह भी दिखा दिया कि भारत अब केवल एलओसी तक सीमित नहीं है। यदि आवश्यक हुआ तो भारत नियंत्रण रेखा पार करके भी अपने हितों की रक्षा कर सकता है। यह नीति पाकिस्तान के लिए स्पष्ट चेतावनी है कि यदि उसने अब भी अपने घर में पल रहे आतंकी सांपों को दूध पिलाना बंद नहीं किया तो अगली बार भारत उनके बिलों तक पहुंचेगा और उन्हें वहीं खत्म करेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत की सैन्य क्षमता अब केवल परंपरागत युद्धों तक सीमित नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर में जिन हथियारों और तकनीकों का उपयोग किया गया, उनमें राफेल जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान, ड्रोन निगरानी, रियल टाइम सैटेलाइट डेटा और बंकर भेदी बम शामिल थे। यह सब कुछ दर्शाता है कि भारत अब एक आधुनिक, आक्रामक और निर्णायक सैन्य शक्ति बन चुका है।

पाकिस्तान की अब तक की रणनीति यही रही है कि वह भारत के धैर्य की परीक्षा लेता रहे और भारत केवल विरोध या चेतावनी तक सीमित रहे लेकिन अब वह दौर समाप्त हो गया है। भारत ने बता दिया है कि वह न केवल जवाब देगा बल्कि ऐसा जवाब देगा, जो ‘आतंकिस्तान’ को अगली साजिश रचने से पहले सौ बार सोचने पर विवश करेगा। आतंक को बढ़ावा देना अब पाकिस्तान के लिए केवल एक रणनीति नहीं, आत्मघाती कदम बन चुका है। भारत ने साबित कर दिया है कि अब न केवल सीमा की सुरक्षा करेगा बल्कि आवश्यकता पड़ी तो आतंकी नेटवर्क की जड़ों तक जाकर प्रहार करेगा। यह केवल सैन्य नीति नहीं बल्कि नई भारतीय आत्मा की आवाज है, जो शांति तो चाहती है लेकिन डरती नहीं, जो प्रेम में तो विश्वास करती है लेकिन पराजय में नहीं।

ऑपरेशन सिंदूर अब एक ऐसा उदाहरण बन गया है, जो यह बताता है कि आतंक से अब डायलॉग से नहीं, डायनामाइट से निपटना है। भारत ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वह किसी भी कीमत पर अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, चाहे उसके लिए कितनी भी बड़ी कार्रवाई क्यों न करनी पड़े। आज भारत के पास रक्षात्मक नहीं, आक्रामक कूटनीति है। अब हम इंतजार नहीं करते कि दुश्मन कब वार करे बल्कि अब हम तय करते हैं कि कब, कहां और कैसे प्रहार करना है। यह बदलाव केवल सरकार की नीति में ही नहीं, देश की चेतना में भी है और यही चेतना ऑपरेशन सिंदूर की असली ताकत है। अब यदि पाकिस्तान यह सोचता है कि वह फिर किसी नए हमले की योजना बनाकर भारत को अस्थिर कर देगा तो उसे भली-भांति समझ लेना चाहिए कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ तो केवल शुरुआत है, अब हर आतंकी ठिकाने के लिए भारत के पास ऐसा जवाब है, जो न केवल आतंकियों के ठिकानों बल्कि समूचे पाकिस्तान का नाम ही विश्व के मानचित्र से गायब कर सकता है।
(लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)