वाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई पर आवारा कुत्तों का हमला,मौत

संदीप ठाकुर

2000 करोड़ के सालाना टर्नओवर वाली चाय निर्माता कंपनी वाघ बकरी के
एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर/ मालिक पराग देसाई पर आवारा कुत्तों ने हमला कर
दिया। हमले में घायल देसाई काे अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां इलाज
के दौरान उनकी माैत हाे गई। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक महज 49 साल के पराग
पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। इस दौरान आवारा
कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। खुद को बचाने में वह फिसलकर गिर गए और
उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया। उनका अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में इलाज
चला लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। देसाई वाघ बकरी ग्रुप में चौथी
पीढ़ी के उद्यमी थे। ग्रुप को देश की टॉप तीन चाय कंपनियों में जगह
दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। 1995 में जब वह कंपनी में
शामिल हुए तो इसकी वैल्यू करीब 100 करोड़ रुपये थी। आज कंपनी का बिजनेस
करीब 2000 करोड़ का है। कंपनी का कारोबार देश के 24 राज्यों और दुनिया के
60 देशों में फैला है।

साल 1892 में नारायण दास देसाई नाम के एंटरप्रेन्योर दक्षिण अफ्रीका में
जाकर 500 एकड़ के चाय बागानों के मालिक बने। वहां उनका जुड़ाव महात्मा
गांधी से हुआ। दक्षिण अफ्रीका में नारायण दास देसाई ने 20 साल बिताए और
चाय की खेती, प्रयोग, टेस्टिंग आदि सब किया। उस वक्त दक्षिण अफ्रीका भी
भारत की ही तरह अंग्रेजों के अधीन था। नारायण दास ने दक्षिण अफ्रीका में
व्यवसाय के मानदंडों के साथ-साथ चाय की खेती और उत्पादन की पेचीदगियों को
सीखा। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में नारायण दास देसाई नस्लीय भेदभाव के शिकार
हो गए। पहले तो वह इस सबका मुकाबला और विरोध करते रहे लेकिन नस्लीय
भेदभाव की घटनाएं बढ़ने पर नारायण दास को दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भारत
लौटने पर मजबूर होना पड़ा। 1915 में वे भारत लौट आए। उनके साथ महात्मा
गांधी का एक प्रमाण पत्र भी था, जो दक्षिण अफ्रीका में सबसे ईमानदार और
तजुर्बेकार चाय बागान के मालिक होने के लिए उन्हें गांधी की ओर से दिया
गया था। भारत लौटने के बाद नारणदास ने दक्षिण अफ्रीका में हासिल किए गए
चाय बिजनेस के अनुभव और बारीकियों के साथ सन 1919 में अहमदाबाद में
गुजरात चाय डिपो की स्थापना की। दो से तीन साल उन्हें अपनी चाय का नाम
बनाने में लग गए। लेकिन फिर कारोबार ने रफ्तार पकड़ी और कुछ ही साल में
वह गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता बन गए।वाघ बकरी चाय का लोगो एकता और
सौहार्द का प्रतीक है। इस लोगो में दिखने वाला वाघ उच्च वर्ग और बकरी
निम्न वर्ग के प्रतीक हैं। लोगो में दोनों को एक साथ चाय पीते हुए दिखाना
अपने आप में एक बड़ा सामाजिक संदेश है। सन 1934 में इस लोगो के साथ
‘गुजरात चाय डिपो’ ने ‘वाघ बकरी चाय’ ब्रांड लॉन्च किया। 1980 तक गुजरात
टी डिपो ने थोक में और 7 खुदरा दुकानों के माध्यम से रिटेल में चाय बेचना
जारी रखा। यह पहला ग्रुप था जिसने पैकेज्ड चाय की जरूरत को पहचाना।
लिहाजा ग्रुप ने 1980 में गुजरात टी प्रोसेसर एंड पैकर्स लिमिटेड को
लॉन्च किया। साल 2003 तक वाघ बकरी ब्रांड गुजरात का सबसे बड़ा और देश का
बड़े ब्रांड में से एक बन चुका था।

पराग देसाई वाघ बकरी टी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर रमेश देसाई के बेटे
थे। देसाई ने अमेरिका में न्यूयॉर्क की लॉन्ग आइलैंड यूनिवर्सिटी से से
एमबीए किया था। उनका 30 साल से अधिक का कारोबारी अनुभव था। वह टी टेस्टर
भी थे और वाघ बकरी ग्रुप के इंटरनेशनल बिजनेस को भी देख रहे थे।
उन्होंने मार्केटिंग, ब्रांडिंग और पैकेजिंग के लिए कई सफल स्ट्रैटजी
बनाई थी जिसके लिए उन्हें अहमदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन ने सम्मानित भी
किया था। पराग ने ग्रुप का कायाकल्प करते हुए इस नए जमाने के अनुरूप
बनाया। इनमें टी लाउंज, ई-कॉमर्स और डिजिटल तथा सोशल मीडिया इनिशिएटिव
शामिल हैं। आज के दिन वाघ बकरी ग्रुप की मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी की
क्षमता दो लाख किलो प्रतिदिन और सालाना पांच करोड़ किलो चाय के उत्पादन
की है। देश ही नहीं विदेश में भी वाघ बकरी की चाय बिकती है। कंपनी की
बिक्री का 90 फीसदी टियर 2 और टीयर 3 शहरों से आता है। पूरे देश में वाघ
बकरी टी लाउंज भी खुल चुके हैं। वाघ बकरी चाय के 30 लाउंज और कैफे हैं।
वाघ बकरी टी ग्रुप आज वाघ बकरी, गुड मॉर्निंग, मिली और नवचेतन ब्रांड के
तहत विभिन्न तरह की चाय की बिक्री करता है। कंपनी साथ ही आइस टी, ग्रीन
टी, ऑर्गेनिक टी, दार्जिलिंग टी, टी बैग्स, फ्लेवर्ड टी बैग्स और
इंस्टेंट प्रीमिक्स टी भी बनाती है।