राहुल की मेहनत पर पानी फेरती पार्टी की गुटबाज़ी

Party factionalism spoiling Rahul's hard work

तनवीर जाफ़री

देश के सबसे प्राचीन राजनैतिक संगठन कांग्रेस ने जितनी बार विभाजन व विघटन सामना किया है उतना किसी दूसरे राजनैतिक दल को नहीं करना पड़ा। केवल विभाजन ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के जितने अवसरवादी,सत्ता लोलुप व विचार विहीन नेताओं ने दल बदल किया है और पार्टी छोड़ कर इधर उधर गए हैं उतने दल बदलू नेता भी किसी अन्य पार्टी में नहीं मिलेंगे। और विगत एक दशक से तो सत्ता ने कांग्रेस विरोध का जो तरीक़ा निकाला है उसे देखकर तो लगता ही नहीं कि कांग्रेस का ‘राजनैतिक विरोध’ किया जा रहा है। बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस विरोध को व्यक्तिगत रंजिश व दुश्मनी के रूप में पेश किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर ‘कांग्रेस मुक्त भारत ‘ का नारा देना, कई कांग्रेस शासित सरकारों को डरा धमकाकर या लालच देकर गिराना व अपनी सरकार बनाना,कांग्रेस के अनेक नेताओं को किसी न किसी आरोप में उलझाकर उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करना,राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्य्ता रद्द करना,उनसे बांग्ला ख़ाली करवा लेना,उनपर कई जगहों से मुक़द्द्मे क़ायम कराना, चुनाव पूर्व कांग्रेस के खाते फ़्रीज़ करवाना,ई डी ,सी बी आई आदि का भय दिखाकर अनेक कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में लाना, नेहरू गाँधी परिवार पर तरह तरह के झूठे लांछन लगाना, स्वयं दस वर्षों से सत्ता में रहने के बावजूद देश की अनेक समस्याओं के लिये नेहरू को ज़िम्मेदार ठहरना,राहुल गाँधी को ‘पप्पू ‘ साबित करने के लिये करोड़ों ख़र्च करना व भाजपा आई टी सेल द्वारा तरह तरह के हथकंडे अपनाते हुये कांग्रेस को सनातन विरोधी,हिन्दू विरोधी बताना कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण व पाक परस्त होने का दुष्प्रचार करना जैसी तमाम बातें हैं जो इस नतीजे पर पहुँचने के लिये काफ़ी हैं कि भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान शीर्ष नेतृत्व ने कांग्रेस को समाप्त करने में अपनी तरफ़ से कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी।

सत्तारूढ़ भाजपा के इसी कांग्रेस विरोधी दुष्प्रचार का परिणाम था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भारतीय इतिहास में अब तक सबसे कम यानी मात्र 52 सीटें ही जीत सकी। और इसी बहाने भाजपा ने कांग्रेस का विपक्ष के नेता के पद का दावा भी स्वीकार नहीं किया। कारण बताया गया कि विपक्ष के नेता के पद का दावा करने के लिए कांग्रेस आवश्यक 10% सीटें पाने में विफल रही है। उसके बाद राहुल गाँधी ने सत्ता से डटकर मुक़ाबला किया। कई ज्वलंत मुद्दे उठाये। पूरे देश में दक्षिण से उत्तर यानी कन्याकुमारी से श्रीनगर व पूरब से पश्चिम अर्थात मणिपुर से मुंबई तक की 10,000 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी तय की। राहुल ने इस दौरान समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाक़ात की। इन यात्राओं में राहुल के साथ देश की अनेकानेक प्रमुख हस्तियां भी शामिल हुईं। उन्हें यह पद यात्रा ख़ासतौर पर इसलिये करनी पड़ी क्योंकि देश का मीडिया सत्ता के आगे दंडवत हो चुका है। मीडिया विपक्ष की आवाज़ बनना या जनता की आवाज़ उठाना तो दूर उल्टे विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश में लगा रहता है। मुख्य धारा का कहा जाने वाला यही मीडिया है जिसने राहुल को पप्पू साबित करने में भाजपा व उसके आई टी सेल का पूरा साथ दिया। इसीलिये राहुल ने देश की जनता से स्वयं मिलने, व उनकी समस्याओं को सुनने का प्रयास किया। राहुल गाँधी के अनुसार 2024 का न्याय पत्र / चुनाव घोषणापत्र भी उसी पदयात्रा के दौरान निकाले गये निष्कर्षों व जनता से मिले सुझावों पर ही आधारित है।

राहुल गांधी ने अपने इन्हीं अथक प्रयासों की बदौलत 2024 के लोकसभा चुनाव में न केवल कांग्रेस को 52 से बढ़ाकर लगभग 100 तक पहुँचाया है बल्कि यू पी ए की जगह नया इंडिया गठबंधन बनाकर भी सत्तारूढ़ भाजपा व राजग को कड़ी चुनौती दी है। पिछले 5 वर्षों में जितने नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी है उतने नेता किसी अन्य पार्टी से पलायन करते तो उस दल का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। परन्तु राहुल गाँधी व प्रियंका गाँधी ने सोनिया गाँधी व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में अपने कौशल का लोहा मनवाकर स्वयं को अजेय समझने की ग़लतफ़हमी पालने वाले नेताओं को बैकफ़ुट पर धकेल कर उन्हें रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया। कांग्रेस के इस पुनरुत्थान से पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में तो ज़रूर जोश व उत्साह का संचार हुआ है परन्तु नेताओं की गुटबाज़ी है कि अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रही है।

हर राज्य में कई कई मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। हर नेता मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलाना चाहता है भले ही वह विजयी होने की स्थिति में हो या न हो। कोई स्वयं मुख्यमंत्री रह चुका है तो वह अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाह रहा है। जिसे पार्टी टिकट नहीं देती वह दूसरे दल में यहाँ तक कि विचारधारा के मामले में धुर विरोधी दलों तक में जाने से गुरेज़ नहीं करता। इस तरह के दलबदल से एक बात तो साफ़ हो ही जाती है कि ऐसे नेताओं का न तो कोई ज़मीर है न वैचारिक प्रतिबद्धता, न पार्टी के प्रति वफ़ादारी का जज़्बा और न ही इस बात की फ़िक्र कि वर्तमान दौर में गांधीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस को समाप्त करने की साम्प्रदायिकतावादियों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिये राहुल व प्रियंका गाँधी द्वारा कितनीमेहनत की जा रही है। देश का कौन नेता है जो मोचियों से चप्पल सिलना सीखेऔर उनके दुःख दर्द पता करे ? फ़ौजी, छात्र,लोको पायलट,क़ुली,मज़दूर, किसान, सब्ज़ी फ़रोश, ट्रक ड्राइवर, राज मिस्त्री, चाय वाला, टैम्पू चालक, खेतिहर मज़दूर, स्कूटर मिस्त्री किस वर्ग से राहुल नहीं मिले ? उनकी इसी मेहनत का ही नतीजा है कि आज कांग्रेस पुनः वापसी की राह पर है। परन्तु उन नेताओं को जिनकी पहचान ही कांग्रेस नेता के रूप में बनी है जब वही लोग कांग्रेस पार्टी के समर्पित नेता व कार्यकर्त्ता बनाने के बजाये केवल अपने स्वार्थवश अपने अपने गुट के नेताओं को ही तरजीह देने लगेंगे तो कहना ग़लत नहीं होगा कि पार्टी की यह भीतरी गुटबाज़ी राहुल की मेहनत पर पानी फेरने का काम करेगी।