विजय गर्ग
दो स्तयार, खेल-कूद, मिट्टी से सने हाथ-पैर वाला बचपन अब किसी और जमाने की बात लगने लगी है। आज के बचपन पर गैजेट्स हावी हो रहे हैं, जहां पढ़ाई-लिखाई से लेकर खेल और मनोरंजन सब गैजेट्स से ही हो रहा है। इससे बच्चे ईयर प्लग्स और हेड फोन्स के आदी हो रहे हैं। इसके अलावा कानों का संक्रमण, अनुवांशिक कारक और गर्भावस्था के दौरान होने वाला संक्रमण का असर भी बच्चों के सुनने की क्षमता पर पड़ रहा है। विश्व भर में करोड़ों बच्चों की सुनने की क्षमता सामान्य नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में लगभग 3 करोड़, 20 लाख बच्चे सुनने से संबंधित किसी न किसी समस्या से ग्रस्त हैं और इनमें से 60 प्रतिशत को रोका जा सकता है। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं, यदि आपको बच्चे में सुनने की क्षमता में कमी के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे बोलने में देरी, आवाजों के प्रति प्रतिक्रिया न देना या निर्देशों का पालन करने में कठिनाई, तो तुरंत ईएनटी विशेषज्ञ से परामर्श लें।
बच्चों में सुनने से संबंधित समस्याएं
कंडक्टिव हियरिंग लॉस: कंडक्टिव हियरिंग लॉस तब होता है, जब बाहरी या मध्य कान क्षतिग्रस्त हो जाता है या किसी रुकावट के कारण ध्वनि तरंगें आंतरिक कान तक सामान्य रूप से नहीं पहुंच पाती हैं। कान का संक्रमण और कान में मैल जमा होने से भी यह समस्या हो सकती है।
अचानक सुनाई देना बंद हो जाना: जब अचानक एक कान या दोनों कानों की सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है तो इसे सेंसरी न्यूरल हियरिंग लॉस कहते हैं। यह स्थिति कान के अंदरूनी हिस्से या सुनाई देने वाली तंत्रिका में समस्या के कारण होती है। कान से दिमाग तक संदेश पहुंचाने वाली तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त होने की वजह से धीरे-धीरे या अचानक से सुनने की क्षमता खत्म हो सकती है। यह समस्या तेज शोर के संपर्क में आने, गर्भावस्था के दौरान होने वाले संक्रमण या वंशानुगत कारणों से हो सकती है। एक शोध के अनुसार, यह बच्चों में स्थायी रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित होने का प्रमुख कारण है।
मिक्स्ड हियरिंग लॉस: इसमें सेंसरी न्यूरल और कंडक्टिव हियरिंग लॉस दोनों समस्याएं होती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें श्रवण तंत्रिका या आंतरिक कान प्रभावित होते हैं। कई मामलों में बाहरी या मध्य कान भी प्रभावित हो सकते हैं।
ऑडिटरी प्रोसेसिंग डिसऑर्डर (एपीडी): इसे हिंदी में श्रवण प्रसंस्करण विकार कहते हैं। यह सुनने से संबंधित ऐसी समस्या है, जिसमें कानों से सुनाई तो देता है, लेकिन मस्तिष्क को ध्वनि को ठीक तरह से प्रोसेस करने में परेशानी होती है। एपीडी से ग्रस्त बच्चों को बातों को समझने में परेशानी हो सकती है, खासकर शोर वाले माहौल में। कैसे करें पहचान बच्चे छोटे होते हैं, इसलिए माता-पिता के लिए यह जरूरी है कि वो बच्चों में सुनने से संबंधित समस्याओं की अनदेखी न करें और जरूरी जांच कराने में देरी न करें:
कानों की नियमित जांच: सुनने से संबंधित समस्याओं की शीघ्र पहचान के लिए कानों की नियमित जांच महत्वपूर्ण है, जो बच्चे के भाषा विकास, सीखने की क्षमताओं और बातचीत को प्रभावित कर सकती है। 4 से 10 वर्ष के बीच बच्चे के कान की नियमित जांच जरूरी है।
नवजात शिशु की जांच: नवजात शिशु में सुनने की क्षमता से संबंधित कोई दोष है या नहीं, इसके लिए उसके कानों की जांच कराना महत्वपूर्ण है। डॉक्टर आंतरिक कान में ध्वनि तरंगों को मापने के लिए ओटोकॉस्टिक इमिशन (ओएई) और ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पांस (एबीआर) जैसे तरीकों का इस्तेमाल करेंगे, जिनमें कोई चीर- फाड़ नहीं होती है। समय पर डायग्नोसिस होने से तुरंत उपचार द्वारा कान की समस्या को ठीक किया जा सकता है।
फॉलो-अप स्क्रीनिंग: जब आप अपने बच्चे के रुटीन चेकअप के लिए जाएं तो उसका हियरिंग टेस्ट भी कराएं। ऐसा विशेष रूप से शुरुआती वर्षों में किया जाना चाहिए, जब भाषा का विकास सबसे तेजी से होता है।
ऐसे बनी रहेगी बच्चों की सुनने की क्षमता
बच्चों को स्तनपान कराएं, खासकर शुरुआती छह महीनों में। इससे उनका प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और उन्हें कानों के संक्रमण से बचाया जा सकता है।
आजकल बच्चों का शोर के प्रति एक्सपोजर बहुत बढ़ गया है। इससे बचाने के लिए अपने बच्चों को संगीत कार्यक्रमों, आतिशबाजी और ऐसे उपकरणों से दूर रखें, जिनसे जिनसे तेज शोर निकलता है। घर में टीवी या म्यूजिक सिस्टम का वॉल्यूम कम रखें। बच्चे को तेज म्यूजिक के नजदीक न जाने दें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, टीकाकरण से बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी को रोकने में मदद मिल सकती है। खसरा, कण्ठमाला और रूबेला जैसी संक्रामक बीमारियां बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी का कारण बन सकती हैं। इसलिए, एमएमआर वैक्सीन, मेनेनजाइटिस और इंफ्लूएंजा के टीके महत्वपूर्ण हैं।
बच्चे अकसर श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग के संक्रमण और एलर्जी से पीड़ित होते हैं, जिससे सुनने में जटिलताएं हो सकती हैं। संक्रमण से जब कान प्रभावित होते हैं, तो इससे अस्थायी या स्थायी रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसलिए, नियमित जांच और शीघ्र उपचार से इन समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है।
गर्भवती महिलाओं को अपनी वाचा ताकि टोक्सोप्लाजमोसिज, साइटोमेगालोवायरस जैसे संक्रमण के संभावित जोखिमों की पहचान हो सके, जो गर्भस्थ शिशु की सुनने की क्षमता प्रभावित कर सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार