नरेंद्र तिवारी
भारत जनसख्या के लिहाज से दुनियाँ का सबसे बड़ा राष्ट्र हो गया है। 2023 के अप्रैल माह में चीन को पीछे छोड़कर भारत ने यह रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। बढ़ती जनसँख्या अनेकों समस्याओं की जड़ है। यह राष्ट्र की अन्य समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है। अब जनसँख्या नियंत्रण के उपायों को प्राथमिकता दिए जाने की अधिक आवश्यकता है। वर्ष 2023 के अप्रैल माह में जब दुनियाँ की आबादी 8.045 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत की आबादी 142.86 करोड़ पहुच गयी है। भारत ने इस लिहाज से चीन की आबादी 142.57 करोड़ को पीछे छोड़ दिया है। आबादी के हिसाब से दुनियाँ में सबसे बड़े होने का एहसास जबाबदेही का भाव पैदा करने वाला है। यह भाव सिर्फ सरकार के लिए जवाबदेही का सबब हो ऐसा नहीं है। जनसख्या नियंत्रण भारत के हरेक नागरिक के लिए जिम्मेदारी का कार्य है। यह अनिवार्य राष्ट्रीय कार्य है। इसमे राष्ट्रवाद का भाव भी छुपा हुआ है। अब जनसँख्या नियंत्रण के पूर्व घोषित श्लोगन बच्चे दो ही अच्छे को बदलने का वक्त आ गया है। इसे या तो ‘एक बच्चा सबसे अच्छा’ या ‘निसंतान सुखी इंसान’ के रूप में देखने की आवश्यता है। इस जरूरी राष्ट्रीय कार्य के लिए सरकार को भी सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। यह कदम सख्ती के साथ जिम्मेदारी भरा हो भी हो। देश का दुर्भाग्य यह भी है कि जब-जब सरकारों ने आबादी को नियंत्रण करने के उपायों के सबन्ध में सख्ती बरती है, राजनीतिक, धार्मिक और जातीय पक्षपात के आरोप लगे है। इस विषय पर सबको एक मत से विचार करने की जरूरत है। जनसँख्या नियंत्रण सबंधी महत्वपूर्ण उपायों में परिवार नियोजन सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। इसे दृढ़ता से लागू किये जाने की आवश्यकता दिखाई पड़ती है। ऐसा नहीं है देश की सरकारों ने जनसँख्या नियंत्रण के उपायों को अमली जामा भी पहनाया है, इस हेतु लंबे समय से योजनापूर्ण कार्यक्रम चलाए जा रहे है जिसके सुखद परिणाम भी सामने आए है। समाज मे शिक्षा का स्तर बढ़ने से जागरूकता भी बड़ी है। जब परिवार नियोजन के सरकारी कार्यक्रम में ‘बच्चे दो ही अच्छे’ या ‘कम संतान सुखी इंसान’ जैसे स्लोगनों का प्रचार-प्रसार किया तो देश के जागरूक नागरिकों ने दो सन्तानो के आदर्श वाक्य को अपनाते हुए दो संतान के बाद नसबंदी करवाने के उपायों को बहुतायत में अपनाया है। शिक्षा ने नागरिकों को सुखी जीवन के महत्व को समझाया तो परिवार नियोजन के कार्यक्रमों ने भी अपनी भूमिका निभाई है। भारत में स्वास्थ्य विभाग द्वारा निरन्तर चलाए जा रहे परिवार नियोजन का अर्थ यह तय करना है कि आपके कितने बच्चे हों कब हों? अगर आप बच्चे पैदा करने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करना चाहते हैं तो उपलब्ध साधनों मे से कोई एक चुन सकते हैं। इन्हीं साधनों को परिवार नियोजन के साधन, बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने के साधन या गर्भ निरोधक साधन कहते है। स्वास्थ्य विभाग के परिवार नियोजन कार्यक्रम के माध्यम से ही कम सन्तान सुखी इंसान की राष्ट्रीय उक्ति को जनसामान्य तक पहुचाने का कार्य भी किया गया है। जनसख्या नियंत्रण के बहुत से चिकित्सकीय उपाय है, किंतु भारत में अशिक्षा, अज्ञानता, धार्मिक और जातीय कट्टरता ने जनसँख्या नियंत्रण के कार्यक्रमो को बहुत हद तक बाधित किया है। अब जबकि नाभिकीय शक्ति से युक्त भारत देश जनसख्या के लिहाज से दुनियाँ का सबसे बड़ा देश हो गया है। जनसख्या नियंत्रण के कार्यक्रम को व्यापक रूप से चलाने की आवश्यकता है। भारत ही नहीं जनसँख्या नियंत्रण को लेकर दुनियाभर में चिंता व्याप्त है। हर दौर में बढ़ती आबादी चिंता का सबब रही है। प्रमुख अर्थ शास्त्री थॉमस माल्थस ने 1798 में ही बढ़ती जनसँख्या को लेकर अपने एक शोध में चिंता व्यक्त की थी। माल्थस ने लिखा ‘जनसँख्या को जब बेलगाम छोड़ दिया जाता है, तो यह ज्यामितीय अनुमान से बढ़ती है, वहीं जीवन यापन के साधन केवल अंकगणितीय अनुपात में बढ़ते है।’ माल्थस की इन बातों का तात्कालीन दौर में तुरन्त प्रभाव हुआ। माल्थस का जब यह शोध प्रकाशित हुआ उस समय दुनियाँ की आबादी केवल 80 करोड़ थी। अब जबकि दुनियाँ की आबादी 8 अरब से भी ज्यादा है। आबादी को लेकर दुनियाँ को सबसे अधिक चिंता करनी चाहिए। भारत चूंकि जनसँख्या में सबसे बड़ा हो गया है। इसलिए भारत की चिंता अधिक होनी चाहिए। दुनियाँ की बढ़ती जनसँख्या के संदर्भ में आधुनिक चिंताए 1968 में सामने आई। जब भारत की राजधानी दिल्ली के सबन्ध में अपनी किताब ‘द पॉपुलेशन बम’ में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोपेसर पॉल ऐर्लीच और उनकी पत्नी ऐनी ऐर्लीच ने दिल्ली यात्रा के अनुभव को लेकर लिखा ‘ एक रात जब वे दोनों टैक्सी से होटल लौट रहे थे, तब उनकी टैक्सी किसी गरीब इलाके से गुजरी, उस दौरान सड़को पर इंसानों की हद से ज्यादा भीड़ देखकर वे विचलित हो गए। इस दम्पति ने अपनी इस किताब में अकाल की चिंता पर विस्तार से लिखा था। इन दोनों का मानना था कि विकासशील देशों में जल्द ही अकाल आने वाले है। उन्होंने ये चिंता अमेरिका के बारे में भी जताई थी। जहां लोग पर्यावरण पर पड़ रहे असर को महसूस करने लगे थे। हालांकि इस किताब की आलोचना भी बहुत हुई। जिसका कारण इस दम्पत्ति का लंदन निवास होना था। जंहा की जनसंख्या दिल्ली से दोगुनी थी। जनसँख्या के विषय मे सयुंक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि 2070 से 2080 के बीच पृथ्वी पर इंसानों की अधिकतम आबादी 10 अरब तक पहुच सकती है। इस समय तक भारत की आबादी 1 अरब 75 करोड़ तक पहुचने का अनुमान है। इतनी बड़ी जन संख्या के लिए संसाधन एकत्रित करना देश के लिए बड़ी समस्या होगी। धरती पर हर दौर में जनसख्या को लेकर चिंता व्यक्त की जाती रही है। युनान के महान दार्शनिक प्लेटो ने द रिपब्लिक में 375 ईसवी पूर्व लिखा कम आबादी वाले राज्य सुखी और सम्पन्न रहेंगे जबकि अधिक जनसँख्या वाले राज्य समस्याग्रस्त। प्लेटो के काल्पनिक राज्यो में भी अधिक जनसँख्या को समस्याओं का कारण माना गया था। प्लेटो के विचार अब भी प्रासंगिक नजर आतें है। माल्थस के अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त भी संधाधनो की उपलब्धता और बढ़ती आबादी के हिसाब से अब अधिक चिंता का सबब बन गए हैं। इन हालातों में भारत को जनसंख्या नियंत्रण को अनिवार्य राष्ट्रीय कार्य घोषित करने की आवश्यकता है। इसके लिए परिवार नियोजन का उपाय तो अपनी भूमिका निभा रहा है। इस हेतु अन्य सख्त उपायों को अपनाने की जरूरत भी हैं। जिसमे सरकारी सुविधाओं की प्राप्ति के लिए भी एक बच्चे की शर्त अनिवार्य करनी होगी। इन उपायों को शीर्ष से शुरू करने की जरूरत है। इस हेतु लोकसभा सदस्य हेतु सन्तान की संख्या दो से अधिक होने पर अपात्र घोषित करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। राष्ट्र के संवैधानिक पदों पर भी इन शर्तों को लागू किया जाना चाहिए। यह शर्त राज्य विधानसभा के सदस्यों पर भी लागू की जाना चाहिए। सन्तानो की संख्या आदर्श एक एवं अधिकतम दो ही होना चाहिए। नगर निकायों के चुनावों में महापौर, अध्यक्ष एवं पार्षद हेतु अनिवार्य होना चाहिए। अधिक सन्तान होने पर चुनाव लड़ने के लिए अपात्र घोषित किया जाना चाहिए। यह शर्ते सरकारी नोकरियो में नियुक्ति एवं पद्दोन्नति का आधार भी मॉनी जाना चाहिए। निसंतान रहने की शर्त का पालन करने वाले उम्मीदवारों को सरकारी और प्रायवेट नोकरी में प्राथमिकता दिए जाने की शर्त भी लागू करना होगीं। दरअसल भारत मे जनसँख्या एक बड़ी समस्या बन चूंकि है। यह भी कहा जा सकता है। जनसँख्या सभी समस्याओं की जड़ है। जनसँख्या पर नियंत्रण कर ही अनेकों समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। भारत में आबादी नियंत्रण के उपायों में समाज मे प्रचलित अंधविश्वास भी बाधक बनें हुए है। धार्मिक और जातीय अंधविश्वास आबादी नियंत्रण के कार्यक्रमो को धक्का पहुँचाते है। इस मामले में खेती से जुड़ा जनजातीय समुदाय यह मानकर चलता है कि जितनी अधिक संतानें होगी खेती का कार्य भी उतना अधिक होगा इस विश्वास के चलते वह एक से अधिक विवाह भी करता है और सन्तानो की संख्या भी 8 से 10 होती है। खेती के कार्य पर आश्रित उक्त जनजातीय वर्ग भी अधिक सन्तान के कारण कड़े परिश्रम के बावजूद भी महाजनों के कर्जे के बोझ से सदैव दबा रहता है। अब वह बैंक और सोसाइटियों के कर्जे के बोझ से दबा है। यहीं अंधविश्वास अल्पसंख्यक समुदाय में भी व्याप्त है। सन्तान को ऊपर वाले कि देन मानकर 8 से 10 बच्चे पैदा करना, एक से अधिक विवाह करना उसके बाद परिवार के जीवन को कष्टप्रद बना लेना। अल्पसंख्यको के कमजोर आर्थिक हालातों में संतानों की अधिकता भी बड़ा कारण है। जन संख्या बढ़ोतरी के इन कारणों में एक कारण लड़को की चाहत में पांच-पांच लड़कियों को जन्म देना भी शामिल है। इस आधुनिक युग मे जब लडकिया हर क्षेत्र में लड़कों से आगे है, लड़को की चाहत का विचार ठीक नहीं है। कुलमिलाकर भारत मे जनसँख्या नियंत्रण बेहद जरूरी है। वर्तमान की सख्ती भविष्य के भारत को शक्तिशाली बनाने की दिशा में बढ़ा कदम साबित होगा। दुनियाँ को यह बताने की जरूरत है कि भारत महज जनसँख्या में ही अव्वल नही है। जनसख्या नियंत्रण के सख्त उपायों में भी सरकार और नागरिक समान रूप से चिन्तित है। जनसख्या नियंत्रण के कठोर कदम भविष्य के खुशहाल भारत के निर्माण के लिए जरूरी है। जनसँख्या नियंत्रण अनिवार्य राष्ट्रीय कार्य है। हर नागरिक की जवाबदेही है। वह इस राष्ट्रीय कार्य मे अपना सहयोग प्रदान करें।