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“नेचुरल ग्रीनहाउस और जैविक-खेती की ओर बढ़ते किसान”
रविवार दिल्ली नेटवर्क
कोंडागांव : जिला प्रशासन कोंडागांव के कृषि विभाग के मार्गदर्शन में 15 से अधिक गांवों के 50 से अधिक शिक्षित और प्रगतिशील किसानों का दल ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’ का भ्रमण करने पहुंचा। इस दौरान किसानों ने जैविक खेती की अत्याधुनिक तकनीकों, प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग और कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाले नवाचारों को करीब से समझा।
पेड़ों पर लहलहाती काली मिर्च और स्टीविया की मिठास ने चौंकाया : किसानों ने ऑस्ट्रेलियाई टीक, साल, महुआ, आम, इमली और नारियल के पेड़ों पर उगाई गई काली मिर्च की खेती का निरीक्षण किया। उन्होंने इस पद्धति को देखकर यह महसूस किया कि पारंपरिक खेती से कहीं अधिक उत्पादकता और लाभ जैविक व मिश्रित खेती में है।
खेतों के बीच में उगाई गई हल्दी की फसल और औषधीय पौधों में शामिल स्टीविया ने किसानों को सबसे अधिक चौंकाया। जब उन्होंने इसकी पत्तियों का स्वाद चखा, तो वे यह जानकर हैरान रह गए कि यह चीनी से 25 गुना अधिक मीठी होने के बावजूद शुगर फ्री है और मधुमेह रोगियों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
नेचुरल ग्रीनहाउस: पॉलीहाउस का सस्ता और टिकाऊ विकल्प : डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने किसानों को खेती में बढ़ती लागत, जलवायु परिवर्तन, जहरीले केमिकल और जीएम बीजों से होने वाले खतरों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि आने वाला समय जहर मुक्त जैविक खेती का है, और यही खेती किसानों के आर्थिक व पर्यावरणीय स्थायित्व का आधार बनेगी।
उन्होंने अपने नवाचार ‘नेचुरल ग्रीनहाउस’ के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह पारंपरिक पॉलीहाउस से 20 गुना सस्ता और अधिक टिकाऊ है। इसकी लागत मात्र ₹2 लाख प्रति एकड़ है, जबकि पॉलीहाउस में यह खर्च ₹40 लाख प्रति एकड़ तक होता है। इस मॉडल से किसानों को न सिर्फ अधिक उत्पादन मिलेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भी उनकी फसलें सुरक्षित रहेंगी।
किसानों ने अपनाई जैविक खेती की राह : इस कार्यक्रम में निदेशक अनुराग त्रिपाठी, मिशन ब्लैक गोल्ड लीडर जसमती नेताम, मिशन लीडर बलई चक्रवर्ती और मिशन लीडर शंकर नाग ने भी भाग लिया। भ्रमण के दौरान किसानों ने मौके पर खड़े होकर जैविक खेती की आर्थिक संभावनाओं का आकलन किया और यह निश्चय किया कि वे अपने-अपने गांवों में जाकर इसी वर्ष बरसात से जैविक खेती की शुरुआत करेंगे।
यह पहल कोंडागांव को जैविक खेती के एक नए केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।