निर्मल रानी
देश के बड़े भाग में पिछले दिनों बाढ़ व जलभराव के दृश्य देखने को मिले। हरियाणा पंजाब व हिमाचल के तो बहुत से ग्रामीण व शहरी इलाक़े अभी तक भारी बारिश व जल भराव का सामना कर रहे हैं। जहाँ जहाँ ज़मीन का स्तर नीचा है वहां अभी भी जलभराव के दृश्य देखे सकते हैं। रुका हुआ पानी काला हो गया है तथा पास पड़ोस के लोग सड़ांध भरी दुर्गन्ध में जीने के लिए मजबूर हैं। शहरों में बारिश और जलभराव के सीधे प्रभाव से जहां नालियां व नाले उफान पर रहते हैं और अतिप्रवाहित (ओवर फ़्लो ) होकर बहते हैं वहीँ सीवरेज प्रणाली भी जवाब दे जाती है। बारिश में देश के विभिन्न राज्यों में सीवर के मेनहोल के ओवर फ़्लो होकर बहने के नज़ारे देखे जा सकते हैं। जिससे लोगों का रास्ता चलना दुश्वार हो जाता है। पूरे प्रभावित क्षेत्र में प्रदूषण व दुर्गन्ध का माहौल रहता है।
बेशक देश में बढ़ती आबादी के मद्देनज़र सीवरेज प्रणाली मल मूत्र निपटाने की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुगम एवं निर्बाध व्यवस्था है। परन्तु यही व्यवस्था यदि ग़लत योजना का शिकार हो जाये तो नागरिकों के लिये सुविधा के बजाये बड़ी असुविधा का करक बन जाती है। और ख़ुदा न ख़्वास्ता अनियोजित सीवरेज प्रणाली होने के साथ साथ इसके निर्माण में भारी भ्रष्टाचार भी हुआ हो फिर तो ऐसी योजना को जनता के लिये नासूर ही समझा जा सकता है। ऐसी योजनायें केवल बारिश ही नहीं बल्कि प्रत्येक ऋतु में बाधित व कष्टदायक रहती हैं। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के अंबाला सहित अन्य कई शहरों में बिछाई गयी सीवरेज प्रणाली तो पूरी तरह से फ़ेल हुई दिखाई देती है। यहां कभी कभी बिना बारिश के ही सीवर लाइन का प्रवाह बाधित हो जाता है। इसमें कई तकनीकी ख़ामियां हैं। उदाहरण के तौर पर सीवरेज लाइन में ही सड़कों पर बहने वाली नालियों यहाँ तक कि नालों को भी कई जगह जोड़ दिया गया है। आम तौर पर लोगों ने अपने घरों की जल निकासी का पाईप भी सीवर में होल में जोड़ दिया है। परिणाम स्वरूप नालियों की प्लास्टिक कपड़ा बोतल व अन्य कचरा कबाड़ भी नाली के माध्यम से सीवर पाइप लाइन में चला जाता है। और सीवर लाइन के परवाह को बाधित करता है। कहीं भी सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था नहीं है कि नाली से सीवर में जाने वाले पानी के साथ बहने वाले कचरे कबाड़ को किसी जाली या बाधा से रोका जा सके।
दूसरी समस्या यह है कि भूतलीय सीवर पाईपलाइन अपेक्षाकृत कम क्षमता वाली बिछाई गयी है। निरंतर बढ़ती आबादी के मद्देनज़र इसे आने वाले समय व ज़रुरत के अनुरूप बनाना चाहिये था। परन्तु अफ़सोस तो यह कि जिस समय इसे बिछाया जा रहा था तभी से इस बात की चर्चा ज़ोरों पर थी कि जिस ढंग से इस योजना को कार्यान्वित किया जा रहा है उसे देखकर इस सीवर प्रणाली का सफल होना मुश्किल ही लगता है। जगह जगह मेनहोल पर लगे मेन होल कवर आपको टूटे फूटे मिल जायेंगे। कई टूटे ढक्कनों के लोहे के रिंग बाहर निकले होते हैं। कई मेनहोल के पास गड्ढे होते हैं। इनमें कई बार स्कूटर व साईकिल सवार गिर कर घायल हो चुके हैं। तमाम जगहों पर तो सीवर मेन होल कवर और सड़क के लेवल में इतना अंतर है कि दुर्घटना हो जाती है। कहीं मेन होल कवर ज़मीन की सतह से ऊपर निकला है तो कहीं लेवेल से इतना नीचे है कि वहां गड्ढा सा बना हुआ है। इसी तरह मुख्य मार्गों पर पड़ने वाले वे बड़े मेनहोल जिनमें कई दिशाओं की सीवर पाइप लाइन जुड़ती है वह तो कई जगह पर पूरा जंकशन बॉक्स ही बैठा मिलता है। नतीजतन वहां बड़ा गड्ढा बन जाता है। इसकी मुरम्मत का काम भी आसान नहीं। नियमानुसार इस जगह नये जंक्शन के निर्माण का नये सिरे से टेंडर होता है। जब तक वह सरकारी औपचारिकताएं पूरी नहीं होतीं तब तक राहगीर,ट्रैफ़िक सभी परेशानी में पड़े रहते हैं।इसके अतिरक्त सबसे बड़ी बात यह कि तब तक उस क्षतिग्रस्त स्थान से जुड़ने वाली सभी दिशाओं की सीवर लाइंस ओवर फ़्लो रहती हैं। कई जगह ज़मीन के बराबर लेवल पर बने पुराने मकानों में तो सीवर का पानी घरों में वापस आ जाता है।
भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ी यह फ़ेल सीवरेज व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार में ही डूबी शहरों की नाला व नाली निर्माण योजना का ही दुष्परिणाम है कि सीवर और नालियों का गन्दा पानी नालियों से रिसकर लोगों के घरों में इकठ्ठा होता रहता है। सीवर व नालियों के बाधित (चोक ) होने की स्थिति में यह कुछ ज़्यादा ही रिसता है। परिणामस्वरूप लोगों के घरों की बुनियादें कमज़ोर होती हैं। घरों की दीवारों में सीलन रहती है और दीमकों का वास होने लगता है। बीमारी के फैलने का ख़तरा बना रहता है और दुर्गन्ध अलग पसरी रहती है। इसी बाधित सीवर व नालियों के ही नतीजे में जलापूर्ति की लीक लाइनों में भी गंदिगी प्रवेश कर जाती है।
जनता के साथ इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है कि चाहे सीवर प्रणाली लोगों के लिये सुविधा के बजाये घोर असुविधा क्यों न पैदा कर रही हो परन्तु सम्बद्ध प्रशासन को उसका नियमित व निर्धारित भुगतान ज़रूर समय पर चाहिये। यदि देरी हुई तो जुरमाना। इसी तरह भ्रष्टाचार से बनी नालियों का पानी आपके घरों में रिसकर जा रहा हो फिर भी संबद्ध प्रशासन को गृह कर व नाली आदि के कर ज़रूर समय पर चाहिये। सड़कों में जितने चाहे गड्ढे हों और जितने लंबे समय तक क्यों न हों,लोग घायल हों या मरें ,सरकार की बला से, परन्तु सरकार को रोड टैक्स पूरा चाहिये। बल्कि इनमें समय समय पर इज़ाफ़ा भी होता रहता है। परन्तु असहाय व असंगठित जनता कभी धर्म तो कभी जातियों के नाम पर बंटकर इस भ्रष्ट व्यवस्था के कर्णधारों की लूट खसोट की सुनियोजित साज़िश का शिकार हो जाती है और जीवन के सबसे ज़रूरी मूल मुद्दों से उसका ध्यान भटक जाता है। यही वजह है कि जनता भ्रष्टाचार में डूबी अनियोजित सीवरेज प्रणाली को भी झेलने के लिये मजबूर है।