राहुल की बढ़ी चुनैतियां

ओम प्रकाश उनियाल

कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का कश्मीर में 30 जनवरी को समापन हो गया। 7 सितंबर 2022 को कन्याकुमारी से शुरु हुई यह पद-यात्रा पांच माह में पूरी की गयी। लगभग 3500 किमी की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य देश को एक सूत्र में बांधने, बेरोजगारी, मूल्य वृद्धि जैसे अन्य मुद्दों को लेकर था। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी के नेतृत्व में यात्रा पूरी तरह सफल तो रही और शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई। लेकिन अपने पीछे कुछ सवाल भी छोड़ गयी। क्योंकि, भारत की एकता तो विश्वव्यापी है। तभी तो भारत का विश्व के तमाम देश सम्मान करते हैं। यदि देश में एकता न होती तो शायद ही भारत की महिमा का मंडन हर देश में न होता। यहां तक कि शत्रु देश भी भारत के कायल हैं एवं संकट के समय सबसे पहले साथ देने की उम्मीद भी बांधे रखते हैं। ऐसा नहीं कि देश को तोड़ने व नफरत फैलाने वाले खत्म ही हो गए हों। अलगाववादी ताकतें तो हर राज में फड़फड़ाती ही रहेंगी। कौन उनको काबू में रख सकता है यह सबसे अहम् बात है। वर्तमान दौर में उनकी नकेल इस तरह से कस दी गयी है कि वे किसी तरह से सक्रिय होने की हिम्मत नहीं जुटा सकते। कांग्रेस की यह यात्रा एक अच्छा कदम रहा है। इस यात्रा से कांग्रेस को यह पता चल गया होगा कि कौन हर समय दल के साथ खड़े रह सकते हैं। यात्रा ने कांग्रेस में जान तो डाल दी है साथ ही राहुल गांधी की सोच व छवि को और अधिक मजबूती प्रदान की है। फिर भी राहुल गांधी के आगे चुनौतियां काफी हैं। देश की एकता के साथ-साथ दल की
एकता भी काफी महत्व रखती है। दल ही कमजोर रहेगा तो उससे देश के लिए कार्य करने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।