दीपक कुमार त्यागी
देश में घटित किसी भी हादसे के मृतकों की लाशों पर भी जमकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ना हो, ऐसा हाल की परिस्थितियों में तो बिल्कुल भी संभव नहीं है। ना जाने क्यों हादसे के तुरंत बाद से ही देश के राजनेता पीड़ितों के मददगार बनने की जगह एक-दूसरे पर जमकर के आरोप-प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त हो जाते हैं।
दो जून की शाम को करीब साढ़े सात बजे देश को ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों की एक बड़ी दुर्घटना की बेहद झकझोर देने वाली जानकारी मिली। जिस दर्दनाक हादसे में अब तक 288 लोग असमय काल का ग्रास बन चुकें हैं, लगभग 1175 लोग इस दर्दनाक हादसे में घायल हो गये हैं। अभी भी गंभीर रूप से घायल लोग अपना जीवन बचाने के लिए अस्पताल के बिस्तरों पर संघर्ष कर रहे हैं। अस्पताल में भर्ती इन गंभीर घायलों के चलते मृतकों की संख्या में निरंतर इज़ाफ़ा हो रहा है, ना जाने अभी कितने घरों के चिराग इस दर्दनाक रेल हादसे में अपनी जान गंवा सकते हैं, यह सब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है।
लेकिन इस हादसे के बाद से ही सत्ता पक्ष बचाव के लिए हर संभव उचित प्रयास करने का दावा करते हुए हादसे के लिए जिम्मेदारी तय करके उन सभी लोगों पर जल्द से जल्द सख्त कार्यवाही करने का वायदा कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल हादसे की जिम्मेदारी के रूप में केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का तत्काल इस्तीफा मांगते हुए, बचाव के उपायों को नाकाफी व गंभीर लापरवाही पूर्ण बताने का आरोप लगा रहे हैं। वहीं आयेदिन बनने वाले इस तरह के हालातों पर भोली-भाली आम जनता इन सभी पक्ष व विपक्ष के राजनेताओं से यह पूछना चाहती है कि क्या हर हादसे के बाद देश में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करना जरूरी है। वैसे भी इस तरह के गंभीर हादसों के बाद आखिरकार कब तक तुरत-फुरत में बिना विस्तृत जांच किये ही निचले स्तर के कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहरा करके उन बेचारों को बली का बकरा देश में बनाया जाता रहेगा और बड़े मगरमच्छों को यूं ही बचाया जाता रहेगा।
वैसे भी आज की परिस्थिति में विचारणीय तथ्य यह है कि क्या इस तरह के हादसों में बिना किसी जांच पूरी हुए बिना ही नैतिकता के आधार पर किसी भी मंत्री का इस्तीफा देना या लेना उचित है, क्या हादसों के बाद बनने वाली आरोप-प्रत्यारोप इस्तीफा जैसी किसी भी स्थिति से देश में बचाव कार्य प्रभावित नहीं होता है, क्या तत्काल मंत्री के इस्तीफे के बाद देश में इस तरह की बेहद गंभीर दुर्घटनाओं के लिए अक्सर होनी वाली छोटी व बड़ी लापरवाहियों पर अंकुश लग पायेगा। वैसे भी हमारे देश में तो इस्तीफा देने के बाद तो अक्सर ही राजनेताओं के प्रति आम जनमानस में जबरदस्त सहानुभूति की ऐसी लहर पैदा हो जाती है कि वह इस्तीफा देने के बाद पहले से भी अधिक मजबूत होकर बाहर निकलता है। खैर जो भी हो दर्दनाक हादसे पर पीड़ितों के दर्दनाक गहरे ज़ख्मों पर नमक छिड़कने वाली जहरीली सियासत जारी है, वहीं 288 लोगों की असमय मौत के लिए जिम्मेदार व गुनहगार कौन यह जांच जारी है, खैर अब कुछ भी होता रहे देश के कर्ताधर्ता व सिस्टम एक मां को उसका बेटा, पिता को पुत्र, बहन को भाई, पत्नी को पति, बच्चों को पिता नहीं दे सकता, उनको मिले गहरे ज़ख़्मों को जीवन भर नहीं भर सकता।