आवारा पशुओं के प्रति समाज की जिम्मेदारी

Responsibility of society towards stray animals

मुनीष भाटिया

आज देश भर में आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या के कारण उनके आक्रामक हो जाने व हिंसक रूप धारण कर लेने के मामलों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रहीं है । जिनमे प्रमुख रूप से आवारा कुत्ते के काटने के मामले एवं बंदर के काटने के मामले आते हैं । इसके अलावा बीच मार्ग पर आवारा गौ वंश के हिंसक होने पर होने वाले दुर्घटनाएं और फिर खड़ी फसल को रातो रात चट करने के मामले भी कृषक वर्ग के साथ साथ पूरे समाज के लिए चिंता का विषय बना हुआ है । मानव जाति के प्रति इन पशुओं का ये व्यवहार समाज के असहिष्णु दृष्टिकोण की और संकेत तो करता ही है साथ प्रशासन द्वारा सही समय पर कारगर कदम ना उठा पाने का भी अभाव सिद्ध करता है ।

शास्त्रों में कहाः गया है कि “गायो विश्वस्य मातर:” अर्थात्‌ गाय समस्त विश्व की माता है । मां के दूध के समान ही गाया का दुध भी पौष्टिक माणा ग़या है । गायत्री का गोबर और गौमूत्र दोनों भारतीय सामाज में काफी अहमियत रखते हैं लेकिन वर्तमान में भौतिकता वादी युग में लोग अपने संस्कार एवं परम्पराएं भूलते जा रहे हैं । यही वज़ह है कि अब आवारा गौधन की वृद्धि हो रहीं है । आज गौ वंश तभी तक पाते हैं जब तक वह दूध देता रहता है । जहां एक बार गाय दूध देना बंद कर दे तो उसे आवारा छोड़ दिया जाता है । जिस वज़ह से कई बार गाय तड़प तड़प कर सड़कों पर मरती देखी जाती हैं। लालसा के वशीभूत गौ वंश का दोहन तब तक किया जाता है जब तक मानव का स्वार्थ सिद्ध होता रहता है। जब वहीं पालतू पशु दूध देना बंद कर दे तो फिर उन्हें सड़कों पर आवारा छोड़ दिया जाता है । हालांकि देश में गाय को माता मानकर गौशाला तो बड़े नगरों में स्थापित की गई हैं जोकि बढ़ते आवारा गौ वंश के लिए अपर्याप्त ही होती हैं और इनमें भी पशुओं को ठूंस ठूंस कर रखा जाता है । इन गौ शाला में भी अधिकतर मादा गौ वंश को ही प्राथमिकता दी जाती है जिस वजह से नर गौ वंश रिहाइश से वंचित रह जाता है जो कि आजन्म सड़कों पर भटकने को मजबूर होता है । ये जानवर बीच सड़क को अवरुद्ध किए रहते हैं और कहीं हिंसक रूप धारण कर मनुष्यों की जान माल के खतरा बने रहते हैं । गौ वंश की रहने की व्यवस्था ना करने के कारण हमारे सुशिक्षित धार्मिक समाज का दोगलापन दर्शाता है । भारत जैसे देश में गौ वंश की तस्करी रोकने के लिए भी व्यापक स्तर पर गौ शालाओं का निर्माण जरूरत बन चला है जिसमें धार्मिक सामाजिक संस्थाओं को भी पहल करनी होगी ताकि फिर कोई गौ वंश किसी गौ तस्कर के हाथ ना चढ़ समाज में धार्मिक उन्माद फैला सके ।

इसी तरह आवारा कुत्तों द्वारा भी आए दिन काटने के मामले मे भयंकर वृद्धि हो रही है । इन कुत्तों की बढ़ती संख्या पर रोकथाम ना होने की वज़ह से इन्हें खाने की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं हो पाती । कूड़े के ढेर में भी मुंह मारने पर इन आवारा कुत्तों की भूख शांत नहीं हो पाती तो ये आक्रामक हो जाते हैं और फिर राहगीर पर हमले करना आरभ कर देते हैं ।पिछले दिनों राजस्थान में नवजात शिशु को नोच नोच कर खाने की दिल दहला देने वाली घटना सामने आयी थी । एक रिपोर्ट के अनुसार कुत्ते एक वर्ष में औसतन बीस पिल्लै पैदा करता है और यदि किसी वाहन की चपेट में आकर कोई पिल्ला मर जाता है तो यही आवारा कुत्तों का झुंड प्रत्येक वाहन को अपने क्षेत्र मे आमतौर पर वाहन का पीछे करते देखे जाते हैं । इन आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी के लिए या तो इनको नपुंसकता करने का उपाय ही प्रशासन द्वारा अक्सर किया जाता है या फिर रैबीज रोग का टीकाकरण किया जा सकता है जिसका व्यापक पैमाने पर अभियान चलाने की आज समाज में आवश्यकता बन गई है ।

इसी तरह भारत मे बंदर द्वारा काटने की भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है । शहरीकरण के दौर में जहां वनों का कटाव तेजी से हो रहा है वहां बन्दरों का भी शहरों की और पलायन हो रहा है।भोजन की तलाश में बंदर भी शहरों की तरफ भाग रहे हैं और इनकी आबादी तेजी से बढ़ने के फल स्वरूप जहां ये फसलों को हानि पहुंचा रहे है वहीं इनका भोजन के लिए आक्रामक रवैया सामाज के लिए चिंता का विषय बना हुआ है ।मानव के स्वार्थ ने इनकी रहने की जगह का संकुचन कर अपने ही समाज के लिए समस्या उत्पन्न कर ली है जिस हेतु आवश्यक हो चला है कि वन विकास किया जाये और साथ ही बंदरों का टीकाकरण किया जाए जो कि प्रशासन के लिए बेशक चुनौती भरा कार्य है ।

आवारा पशुओं की बढती संख्या और उनके आक्रामक व्यवहार के प्रति तेजी से कदम उठाने होंगे । वहीं मानव कौम से भी अपेक्षा की जाती है कि अपने स्वार्थ को तज कर प्रशासन के साथ सहयोग करते हुए पालतू जानवर को आवारा बनाने के अपने रवैये में परिवर्तन लाएं।यदि कोई पशु दुधारू नहीं रहा तो बजाए उसे सड़कों पर छोड़ने के इन पशुओं के आश्रय स्थल के निर्माण पर जोर दे एवं समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य का वहन करे ।