शिशिर शुक्ला
ध्यातव्य है कि पिछले कुछ दिनों में सड़क दुर्घटनाओं के कारण न जाने कितने लोग काल का ग्रास हो चुके हैं। यदि सत्य कहा जाए तो कदाचित ही ऐसा कोई दिवस होता हो जब समाचार पत्रों एवं न्यूज़ चैनलों के माध्यम से सड़क दुर्घटनाओं की हृदय विदारक सूचनाएं हम तक न पहुंचती हों। सड़क पर चलने के समान ही सड़क दुर्घटनाएं भी मानो आम बात सी होती जा रही हैं। यदि हम अपने देश भारत की दशा पर सम्यक दृष्टिपात करें तो निष्कर्ष यह निकलता है कि एक ओर जहां जनसंख्या की वृद्धि दर नियंत्रण से बाहर होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं में भी इतने भयावह ढंग से वृद्धि हो रही है कि जिसका अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल प्रतीत होता है। एक आंकड़े के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष करीब डेढ़ लाख मौतें सड़क दुर्घटनाओं के कारण होती हैं। एक गंभीर प्रश्न स्वतः उठ जाता है कि आखिर दिन-ब-दिन रफ्तार पकड़ती एवं मृत्यु का तांडव मचाती इन सड़क दुर्घटनाओं का जिम्मेदार कौन है। यद्यपि समय रेखा पर वास्तव में पीछे जाना तो असंभव है किंतु यदि कल्पना के माध्यम से हम भूतकाल की सैर करें तो यह पाएंगे कि एक वक्त ऐसा भी था जब मनुष्य आवागमन हेतु पदयात्रा पर निर्भर था। शनै: शनै: उसने अश्व, गज, वृषभ आदि पशुओं को अपने आवागमन हेतु प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। ये वो समय था जब सड़क दुर्घटना जैसे शब्द का कोई अस्तित्व ही न था। विकास की रेखा पर आगे बढ़ते हुए मानव को आवागमन हेतु साइकिल के रूप में एक सस्ता, सुलभ व हानिरहित साधन उपलब्ध हुआ। संभवतः साइकिल का दौर भी दुर्घटनाओं से रहित रहा था। दुर्घटनाओं का अस्तित्व में आना निश्चित ही तकनीकी के अभ्युदय के साथ ही आरंभ हुआ। तकनीकी एवं विज्ञान मानव के जीवन हेतु निस्संदेह एक वरदानतुल्य साबित हुए। सड़क यात्रा हेतु तकनीकी ने मानव को दोपहिया से लेकर चारपहिया एवं अन्य बड़े वाहन भी उपलब्ध करा दिए। मानव का जीवन सुख सुविधाओं से भर गया। किंतु तकनीकी को सड़क दुर्घटनाओं हेतु जिम्मेदार ठहराना सर्वथा अनुचित व अन्यायपूर्ण बात होगी। दुर्घटना हेतु जिम्मेदार हैं-तकनीकी का सहारा लेकर मानव की स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने की भूल एवं प्रकृति पर विजय पाने की निरंतर कोशिशें।
उन्नत तकनीकी ने वाहनों में गुणवत्ता के साथ-साथ उच्च गति भी प्रदान की है। अनियंत्रित एवं बेतहाशा रफ्तार सड़क पर आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं का सर्वप्रमुख कारण है। समय का पालन न कर पाना एवं गंतव्य पर पहुंचने की अतिशीघ्रता अथवा तीव्र गति से चलने को अपनी कुशलता समझने की प्रवृत्ति किशोर, युवा बल्कि प्रौढ़ वर्ग में भी दृष्टिगोचर होती है। गैरजिम्मेदार अभिभावकों के द्वारा किशोरों को अध्ययन करने की उम्र में दोपहिया एवं चारपहिया वाहन दिला देना एवं तत्पश्चात उन वाहनों के माध्यम से किशोरों के द्वारा फिल्मों में दिखाए जाने वाले स्टंटों की नकल करना गंभीर दुर्घटनाओं को अंजाम देता है। आज के आधुनिक युवा मोबाइल फोन पर बात करते हुए एवं ईयरफोन के माध्यम से संगीत सुनते हुए वाहन चलाने को अपनी शान का प्रतीक समझते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह है कि अशिक्षा के कारण सड़क सुरक्षा से संबंधित नियमों एवं जागरूकता का अधिकांश वाहन चालकों में अभाव देखने को मिलता है। नतीजतन वे प्रायः जाने अनजाने में दुर्घटना को अंजाम देते रहते हैं। अधिकांश शिक्षित वर्ग जोकि नियमों से भलीभांति परिचित है, किंतु सड़क पर चलते समय नियमों एवं अनुशासन का उल्लंघन करता हुआ दिखाई देता है, उदाहरणार्थ- हेलमेट का प्रयोग न करना, सीट बेल्ट न लगाना, सिग्नल को न मानना इत्यादि। मद्यपान करके वाहन चलाना एक अन्य गैर जिम्मेदाराना एवं मूर्खतापूर्ण कृत्य है जोकि दुर्घटना का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त सड़कों की खराब स्थिति, वाहनों का अक्सर पशुओं से टकरा जाना आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिन पर हमारा नियंत्रण काफी हद तक नहीं होता है।
दूसरा गंभीर प्रश्न यह उठता है कि रोजमर्रा का हिस्सा बनती जा रही इन भयावह दुर्घटनाओं पर लगाम कैसे लगे। चूंकि दुर्घटनाओं के लिए कहीं न कहीं हम स्वयं उत्तरदायी हैं, अतः इन पर नियंत्रण भी हमारे द्वारा ही किया जा सकता है। प्रायः हम सुनते, कहते एवं लिखते हैं कि “सावधानी हटी दुर्घटना घटी”, किंतु हम इस सूत्रवाक्य का लेशमात्र भी पालन करते हुए नजर नहीं आते। हमें चाहिए कि हम अपने जोश व उत्साह का रूपांतरण अपने वाहन की रफ्तार में कदापि न करें। हम उसी रफ्तार को देश की प्रगति एवं विकास में प्रदर्शित करें तो कहीं बेहतर होगा। सड़क सुरक्षा जैसा विषय विद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए एवं विभिन्न कार्यशालाओं एवं संगोष्ठियों के माध्यम से दुर्घटनाओं के कारणों एवं सतर्कता के उपायों के प्रति जन जन को जागरूक किया जाना चाहिए। शिक्षित वर्ग के द्वारा नियमों का उल्लंघन संपूर्ण राष्ट्र व मानवता के लिए शर्म की बात है। नियमों से परिचित होते हुए भी यदि हम स्वयं अनुशासनहीनता करेंगे तो हम उन लोगों को कैसे जागरूक करेंगे जो कि अशिक्षित एवं नियमों से अनभिज्ञ हैं। अभिभावकों के द्वारा बच्चों को वाहन तभी दिए जाने चाहिए जब वे मानसिक परिपक्वता के एक स्तर को प्राप्त कर लें एवं सड़क सुरक्षा के नियमों की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लें।मद्यपान तो अपने आप में ही एक घिनौना कृत्य है, तो फिर मद्यपान करके वाहन चलाने पर चर्चा तो छोड़ ही देनी चाहिए। शासन के द्वारा यातायात को लेकर कड़े से कड़े कानून बनाकर उनको अमल में लाया जाना सुनिश्चित करना चाहिए। सड़क सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने वाले को कठोरतम दंड मिलना चाहिए।
आए दिन घटित होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में न जाने कितने परिवार खत्म हो जाते हैं एवं न जाने कितने निर्दोष असमय ही मृत्यु की भेंट चढ़ जाते हैं। मृत्यु के इस खेल के विषय में सुनकर ही मन सिहर उठता है, तो फिर उस व्यक्ति या परिवार की क्या दशा होती होगी जिसने इसे बेहद करीब से महसूस किया है। यह निश्चित है कि यदि हम इसी तरह से लापरवाही की डोर थामे एवं अहंकार में चूर रहते हुए सड़क सुरक्षा जैसे विषय के प्रति निष्क्रिय बने रहेंगे तो सड़कें आए दिन इसी तरह रक्तरंजित होती रहेंगी।