सख्त कानून से ही लगेगी सड़क दुर्घटनाओं पर लगाम

शिशिर शुक्ला

आए दिन घटित हो रही सड़क दुर्घटनाएं गंभीर चिंता का एक विषय बन चुकी हैं। सड़क दुर्घटनाओं के बारे में उपलब्ध आंकड़े वास्तव में चौंकाने वाले हैं। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में कुल 461312 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। रिपोर्ट के अनुसार हर एक घंटे में 19 लोगों ने सड़क दुर्घटनाओं के कारण जान गंवाई एवं हर घंटे में 53 सड़क हादसे हुए। सड़क हादसों की संख्या में विगत वर्ष की तुलना में लगभग 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है एवं इन दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु दर में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। निस्संदेह यह आंकड़े गंभीर चिंता उत्पन्न करने वाले हैं। सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों पर यदि विचार किया जाए तो इनके पीछे तेज रफ्तार का सबसे बड़ा योगदान है। अनियंत्रित गति से वाहन चलाना दुर्घटना के घटने के लिए उत्तरदायी कारकों में से सबसे महत्वपूर्ण कारक है। चाहे दोपहिया वाहन हो अथवा चार पहिया, आजकल सभी उच्च तकनीकी से युक्त हैं। जल्दबाजी हो अथवा शौक, किसी भी कारण से वाहन को एक सीमा से अधिक रफ्तार से चलाना दुर्घटना एवं अंततः मृत्यु को आमंत्रण देता है। सड़क हादसों की दूसरी प्रमुख वजह है, यातायात के नियमों की अनदेखी करना। हेलमेट न पहनना, सीटबेल्ट न लगाना, रेड लाइट जंप करना, गलत दिशा में चलना इत्यादि प्रमुख कारण हैं, जो सड़क दुर्घटनाओं को आए दिन अंजाम देते रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं का कुछ प्रतिशत ऐसा भी है जोकि वाहन चलाने के दौरान मोबाइल पर बात करने के दौरान घटित हुई हैं। इसके अतिरिक्त नशे में गाड़ी चलाना भी सड़क दुर्घटनाओं को अंजाम देता है। कुछ दिनों पूर्व एक दुर्घटना घटित हुई जिसमें एक अनियंत्रित कार ने एक मासूम बच्चे को कुचल दिया। खास बात यह थी की कार चलाने वाले युवक कार को तीव्र गति से केवल इस कारण चला रहे थे कि उनके मध्य तेज गति को लेकर यह शर्त लगी हुई थी कि कौन अधिक तेज चल सकता है। याद रहे कि तेज रफ्तार का शौक स्वयं के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है एवं किसी दूसरे के लिए भी।

प्रश्न यह उठता है कि क्या महज एक समीक्षा कर लेने मात्र से समस्या हल हो जाएगी। सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्ट में विगत वर्ष की तुलना में दुर्घटनाओं का प्रतिशत बढ़ना निस्संदेह एक गंभीर मुद्दा है। शासन की ओर से सड़क सुरक्षा सप्ताह अथवा सड़क सुरक्षा माह के रूप में विभिन्न जागरूकता अभियानों का आयोजन छोटे से लेकर बड़े स्तर तक किया जाता है। किंतु इसके बावजूद भी लापरवाही के साथ वाहन चलाने वालों के द्वारा सभी दिशा निर्देशों को अनदेखा कर दिया जाता है। कारण यह है कि नियमों की अनदेखी करने पर होने वाले अंजाम के प्रति किसी के भी मन में लेशमात्र भी भय व्याप्त नहीं है, बल्कि सत्य तो यह है कि सड़क सुरक्षा को लेकर हमारे यहां का कानून उस हद तक कठोर नहीं है जितना कि वास्तव में उसे होना चाहिए।लोगों के मन में यह भली भांति बैठ चुका है कि सीट बेल्ट न लगाने पर अथवा हेलमेट न पहनने पर अधिकतम एक निश्चित धनराशि का चालान दंडस्वरूप जमा करना पड़ेगा। यही कारण है कि उनके अंदर इन लापरवाहियों को लेकर किसी तरह का कोई डर मौजूद नहीं है। जरा कल्पना कीजिए कि यदि सीट बेल्ट न लगाने एवं हेलमेट न पहनने पर जेल जाने जैसे किसी कठोर दंड का प्रावधान हो जाए, तो संभवत: नियमों का पालन भी खुद-ब-खुद सुनिश्चित हो जाएगा। तेज रफ्तार पर लगाम लगाना नितांत आवश्यक हो चुका है। शासन के द्वारा प्रत्येक सड़क पर स्पीड रडार सिस्टम एवं उसके साथ ही सीमा से अधिक गति होने पर स्वतः चालान कट जाने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।इसके अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर सड़क सुरक्षा के नियमों के महत्व को समझने का प्रयास नहीं करेगा, तब तक इन नियमों का पालन संभव नहीं होगा। अपने जीवन से निश्चित ही सबको बहुत प्यार होता है किंतु आश्चर्य की बात यह है कि वाहन चलाते समय न जाने क्यों विवेकशून्यता मनमस्तिष्क पर हावी हो जाती है। कुल मिलाकर निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि कानून के भय एवं स्वजागरूकता के समेकित सहयोग से सड़क दुर्घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है एवं सड़कों को रक्तरंजित होने से बचाया जा सकता है।