कांग्रेस के सत्याग्रह आंदोलन को नहीं मिला जनसमर्थन

सुशील दीक्षित विचित्र

विपक्षी एकता का शोर तो बहुत है । राहुल गांधी प्रकरण में विपक्षी नेता मोदी विरोधी आंदोलन में जमीन आसमान एक किये हैं । कांग्रेसी विफरे हुए हैं और प्रियंका वाड्रा रोज एक नया अपशब्द गढ़ कर मोदी के व्यक्तित्व पर चस्पा करने में जुटी हैं । विपक्षी नेता भी मोदी को नेस्तनामूद करने की कारगर योजना बनाने के लिए कुलाबे भिड़ा रहे हैं । एक ओर सत्याग्रह नाम का आंदोलन प्रदर्शन चलाया जा रहा है । राहुल गांधी के इर्दगिर्द जमा कथित शुभचिंतकों की भीड़ उन्हें समझा रही है कि लोहा गर्म हो चुका है । बस हथौड़ा पड़ते ही मोदी का साम्राज्य भरभरा कर रेत के महल की तरह बिखर जाएगा । बड़ी बात नहीं कि कई नेता प्रधानमंत्री पद की शपथ कर अपना पोर्टफोलियों भी बनाने लगे हों । इस सब शोर शराबे के बीच यदि कोई नहीं है तो वह जनता नहीं है जिस पर सारा दारोमदार है और लोकतंत्र में वह किसी के पैरों के नीचे सीढ़ी खींच दूसरे के नीचे लगाने में समर्थ है।

अपनी फितरत के अनुसार राहुल गांधी रोज एक नया झूठ गढ़ते हैं और उनके गोएबल्स उसे आगे बढ़ाते हैं । पिछले दिनों एक प्रेस कांफ्रेंस में राहुल ने अडानी को ले कर एक नया आकड़ा निकाला । बताया कि 20 हजार करोड़ मोदी सरकार ने अडानी की जेब में डाल दिये । अब अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत सभी कांग्रेसी बीस हजार करोड़ बीस हजार करोड़ कह कर उछल रहे हैं । 2019 के चुनाव में राहुल ने बताया था कि मोदी ने 15 हजार करोड़ रूपये अंबानी की जेब में डाल दिए । यह आकड़ा बाद में बढ़ता हुआ 30 हजार करोड़ के पार हो गया । राहुल के हर भाषण में अंबानी की जेब में मोदी द्वारा डाली गयी रकम बढ़ती रही । अडानी की जेब में डाले गए रूपये भी भविष्य में बढ़ सकते हैं । आगे यह आकड़ा कहां तक जाएगा इसका तो पता नहीं लेकिन अब कांग्रेस का सारा फोकस इसी पर होगा ।

राहुल गांधी , कांग्रेस , उनका समर्थक विपक्ष यही शोर मचा रहा है कि राहुल गांधी को सच बोलने की सजा दी गयी । उन्होंने अडानी का मुद्दा उठाया इसलिए उनकी सांसदी छीन ली गयी और बंगला भी । इसके खिलाफ कांग्रेस सत्याग्रह कर रही है । सरकार के खिलाफ कोई भी आंदोलन चलाना लोकतंत्र में सभी का अधिकार है । ऐसे आंदोलन चलते भी रहे हैं लेकिन किसी भी आंदोलन को सफलता तभी मिलती है जब जनता उससे जुड़े । जयप्रकाश नारायण का आंदोलन , राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ आंदोलन ,, राम मंदिर आंदोलन समेत सारे आंदोलन इसलिए सफल रहे क्यूंकि इनसे जनता जुड़ी थी । जनता की भागीदारी के बिना कोई भी आंदोलन अधिकतर सफल नहीं होते । कांग्रेस के सत्याग्रह से जनता गायब है । जन सहयोग नहीं जुड़ रहा है और न ही जनता को उतनी गंभीरता से जोड़ा जा पा रहा है जैसी कि कांग्रेस और विपक्ष को उम्मीद थी ।

कांग्रेस को यह भी उम्मीद थी कि राहुल गांधी के निलंबन से जनता आक्रोशित हो कर सड़कों पर उतर आएगी । प्रियंका वाड्रा ने कहा भी था कि राहुल गांधी करोड़ों दिलों पर राज करते हैं । कुछ कांग्रेसियों ने भी बताया था कि राहुल गांधी भारत के सबसे अधिक लोकप्रिय नेता हैं और उनकी लोकप्रियता के ग्राफ में मोदी तो इर्दगिर्द भी नहीं हैं । अलबत्ता ऐसी कहानियों से खुद को बहलाया जा सकता है लेकिन असलियत को नहीं दबाया जा सकता । असलियत यह है कि भारत जोड़ो यात्रा की तरह कांग्रेस का सत्याग्रह आंदोलन भी फ्लाफ शो साबित हो रहा है । राहुल गांधी के गढ़ केरल के वायनाड तक में कोई जनाक्रोश नहीं है । कांग्रेस ने भी मामूली प्रदर्शन करके लकीर पीट दी । जनता को यहां भी नहीं साथ लिया गया । जयपुर में सत्याग्रह स्थल पर पड़ी खाली कुर्सियों को भाषण दे कर आंदोलन की इतिश्री कर दी गयी । यहां जनता तमाशा तक देखने नहीं आयी । कांग्रेस शासित राजस्थान में जब यह हालात है तो अनुमान लगाना कठिन नहीं की शेष राज्यों में क्या हालत होंगे । जनता का मूड देख कर कहीं भी सत्याग्रह आंदोलन कांग्रेस के बाहर नहीं निकल सका ।

अब तो कुछ कांग्रेसी नेता भी भांपने लगे हैं कि राहुल गांधी को जनसमर्थन नहीं मिल रहा है । दिग्गज नेता पी चिदंबरम ने इस पर निराशा प्रकट करते हुए कहा भी राहुल को जनसमर्थन नहीं मिल रहा है और जनता कुछ सालों से किसी भी मुद्दे पर प्रदर्शन करने नहीं आयी । इसके एक ही मतलब हुए कि जनता कांग्रेस के साथ नहीं है । राहुल गांधी की जिस शहादत से उम्मीदें बांधी गई थी वह व्यर्थ जाती दिख रही है । जनता का कांग्रेस से जुड़ाव न होने का कारण यह भी कहा जा सकता है कि अडानी अंबानी जैसे जो मुद्दे राहुल गांधी उठा रहे हैं उनसे जनता का कोई सरोकार नहीं है । 2024 में जैसे कांग्रेस अडानी का मुद्दा बना कर फिर चौकीदार चोर है का नारा देने वाली है वैसे ही 2019 में भी उसने अंबानी के मामले में भी मोदी को भ्रष्ट बताते हुए चुनाव लड़ा था । मान भी लिया ता कि भाजपा बस हारने ही वाली है और मोदी अतीत होने वाले हैं लेकिन नतीजा जो निकला उसमें प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल कई नेता अतीत हो गए । भाजपा और बड़ी ताकत बन कर उभरी । इतनी बड़ी ताकत कि सहयोगी दलों के बिना भी सरकार बना सकती थी ।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस अभी भी राष्ट्रीय पार्टी है । विपक्ष में सबसे बड़ी भी । उसका जनाधार सारे देश में है लेकिन उसका शीर्ष नेतृत्व ऐसे मुद्दों में उलझता रहता है जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं । राहुल गांधी के मामले में भी अधिकांश की राय यही है कि कांग्रेस जो भी कर रही है या विपक्ष जिस तरह कानूनी मामले को तूल दे रहा है उसके पीछे राजनीतिक कारण है । उसे यह ही पता है कि अभी तक 32 लोगों की सांसदी या विधायकी सजा के कारण जा चुकी है । इनमें आधा दर्जन सदस्य भाजपा के भी हैं इसलिए राहुल गांधी की सांसदी नियमों के कारण गयी । वह यह भी जानती है कि यदि कांग्रेस के वकील ऊपरी अदालत में दोषसिद्धि रुकवा देते हैं तो राहुल की सदस्यता फिर बहाल हो सकती है जैसे केरल के ही सांसद मोहम्मद फैजल की सांसदी बहाल हो गयी जो कि एक आपराधिक मामले में सजा के बाद चली गयी थी ।

फिलहाल राहुल गांधी के पास कानूनी ऑप्शन हैं । राजनीतिक ऑप्शन बहुत सीमित है । जनसमर्थन कांग्रेस के साथ नहीं दीखता । दिल्ली में विपक्ष द्वारा किया जा रहा मार्च या धरना प्रदर्शन भी जनता को आकर्षित करने में अभी तक नाकाम रहा है । शोर से जनता प्रभावित नहीं होती । उसे प्रभावित करने के लिए वे कारगर योजना चाहिए होती हैं जिनसे उसका और देश का भविष्य बन सके । खलिश दोषारोपण में उसकी दिलचस्पी नहीं , यह उसने 2019 में दोबारा बताया । बिना जनसमर्थन जुटाये कांग्रेस का उद्धार नहीं होने वाला और हालात नहीं लगते कि अंबानी अंबानी जप कर चुनाव हारने वाले राहुल और कांग्रेस 2024 में अडानी अडानी का जाप छोड़ेगी ।