विवेक शुक्ला
नई दिल्ली : इरा झा से पहली बार टाइम्स हाउस में 1986 में मुलाकात हुई थी। हम दोनों दीनानाथ मिश्र जी के चैंबर के आगे खड़े होकर बातें कर रहे थे। बातों में बात इंदौर की निकली तो बात क्रिकेट कमेंटेटर सुशील दोषी की भी होने लगी। दोषी जी इंदौर से ही हैं। इरा ने बताया था कि दोषी जी ने उन्हें बचपन में गोदी में खिलाया था। दोषी जी और इरा के पिता दोस्त थे। 38 सालों के बाद उस पहली मुलाकात को याद कर ते हुए बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोक पा रहा हूं। इरा की मार्फत उसके पति अनंत और पुत्र ईशान से भी दोस्ती हो गई। दोनों ही पत्रकार हैं। अब लगता है कि इन तीनों में मेरा सबसे करीब ईशान ही है। आज ईशान बता रहे थे कि मम्मी दो हफ्ते से द्वारका के एक अस्पताल में एडमिट थीं। इरा को मैंने एक बेखौफ और ईमानदार अखबारनवीस पाया। डेस्क के काम में बहुत तेज-तर्रार थी। रिपोर्टिंग भी आला दर्जे की करती थीं। साथी सुदीप ठाकुर ने सही लिखा कि इरा को जो मीडिया की दुनिया में मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। वह बहुत खुद्दार थी। वह अपनी बात कहने में किसी एडिटर के आगे झुकती नहीं थी। जाहिर है कि इस तरह के लोगों को तो हमेशा घीसना ही पड़ता है। इस लिहाज से राम मिलाई जोड़ी थी इरा और अनंत भाई की। कैसे कह दूं इरा झा को अंतिम प्रणाम।