यूपी में कांग्रेस और सपा के बीच सीट बंटवारे की खींचतान क्या होगा भविष्य?

Shahnawaz Hussain took a dig at Leader of Opposition Tejashwi Yadav

अजय कुमार

लखनऊ : यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच उपचुनावों को लेकर चल रही वार्ता में खटास बढ़ती जा रही है। आने वाले उपचुनावों में 10 सीटों पर चुनाव होना है, और दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर असहमति नजर आ रही है। कांग्रेस, जो इस बार 5 सीटें मांग रही है, सपा के साथ एक ठोस गठबंधन बनाने के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं, सपा सिर्फ 1 से 2 सीटें देने पर ही सहमत है।

कांग्रेस की मांग की गई सीटों में मिर्जापुर की मझवा, प्रयागराज की फूलपुर, गाजियाबाद, खैर और मीरापुर शामिल हैं। हालांकि, सपा इस मांग को लेकर साफ स्थिति में नहीं है, जिससे दोनों दलों के बीच बातचीत और अधिक जटिल हो गई है। इस स्थिति को भांपते हुए, कांग्रेस ने सभी 10 सीटों पर प्रभारी और पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए हैं, जो संबंधित सीटों पर सम्मेलन कर रहे हैं। इन सम्मेलनों के माध्यम से कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर सक्रिय करने की कोशिश कर रही है।

कांग्रेस का यह दृष्टिकोण 50-50 फॉर्मूले पर आधारित है। पार्टी का मानना है कि जिन 10 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें से 5 सीटें पिछली बार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने जीती थीं और उन पर सपा का प्रभाव कम है। इसलिए, कांग्रेस का तर्क है कि उन्हें एनडीए वाली सीटें मिलनी चाहिए, जबकि सपा को अपनी पुरानी 5 सीटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह एक तरह का प्रयोग है, जिससे कांग्रेस आगामी 2027 विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति को मजबूत करना चाहती है। अगर कांग्रेस इस बार 5 सीटें हासिल करने में सफल रहती है, तो इसका असर भविष्य के चुनावों में भी देखने को मिल सकता है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने हाल ही में कहा था कि पार्टी केवल उन सीटों पर बात करना चाहती है जहां पिछले चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों को जीत मिली थी। उनके अनुसार, जिन सीटों पर सपा ने सफलता पाई थी, वहां कांग्रेस के कार्यकर्ता सपा का साथ देंगे, जबकि भाजपा के मजबूत क्षेत्रों में वे खुद मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। यह स्थिति सपा के लिए असहज हो रही है, क्योंकि यदि वे कांग्रेस को अधिक सीटें देती हैं, तो इसका मतलब होगा कि वे अपने जनाधार को कम कर रहे हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसे ‘दो लड़कों’ की जोड़ी के रूप में प्रस्तुत किया गया था। उस चुनाव में सपा ने 298 सीटों पर और कांग्रेस ने 105 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इन दोनों दलों ने साथ में चुनाव लड़ा, जिसमें सपा ने 63 और कांग्रेस ने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। इस चुनाव में सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीतकर भाजपा को कड़ी चुनौती दी थी।

हालांकि, अब सपा एक बार फिर से वैसी ही स्थिति में जाने से बचना चाहती है, जहां उन्हें कांग्रेस को अधिक सीटें देने की मजबूरी झेलनी पड़े। इसके बजाय, सपा अधिकतम 1-2 सीटें देने का पक्षधर है, ताकि उनकी खुद की स्थिति मजबूत बनी रहे। कांग्रेस इस बार समर्पण के साथ अपने लिए अधिक सीटें मांग रही है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह भविष्य की चुनावी राजनीति में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए गंभीर है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस इस बार अपने लिए 5 सीटें हासिल कर लेती है, तो यह आने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी स्थिति को मजबूत कर सकता है। इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और वे 2027 के चुनावों में 403 सीटों वाली विधानसभा में कम से कम 200 सीटों पर दावेदारी ठोकने की स्थिति में आ जाएंगे।

इस विवादित स्थिति में, जहां दोनों दलों के बीच तालमेल की कमी है, यह देखना होगा कि आखिरकार यह खींचतान किस दिशा में जाएगी। क्या सपा अपने जनाधार को बचाने में सफल होगी या कांग्रेस अपनी मांगों को मनवाने में कामयाब होगी, यह भविष्य में तय होगा। यूपी की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, जो आगे चलकर दोनों दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।