सुरेश हिंदुस्थानी
कहा जाता है कि किसी भी उपलब्धि को हासिल करने के लिए बहुत ही सावधानी के साथ कदम बढ़ाने होते हैं। जो व्यक्ति एक एक पायदान तय करके शिखर पर पहुंचता है, वह सफलता उसकी स्थायी सफलता मानी जाती है, लेकिन जो व्यक्ति या संस्था शॉर्टकट अपनाकर सफलता हासिल करता है, उसके स्तंभ बहुत ही कमजोर होते हैं। आज की राजनीति में कुछ राजनीतिक दल ऐसे ही शॉर्टकट अपनाकर सत्ता की महत्वाकांक्षा को पूरा करने का दिवास्वप्न देख रहे हैं। स्वाभाविक है कि समाज के मन में लालच पैदा करके कोई भी दल समाज का भला करने के नाम पर केवल अपना ही भला करता है। लेकिन देश बहुत बड़े गर्त में चला जाता है। पड़ौसी देश शीलंका में जो हालात निर्मित हुए हैं, उसके पीछे का कारण कहीं न कहीं यह शॉर्टकट की राजनीति ही है, जिसके चलते शॉर्टसर्किट हो गया और श्रीलंका जनाक्रोश की आग में जल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झारखंड स्थित देवघर यात्रा चर्चा में है। चर्चा केवल यात्रा को लेकर नहीं बल्कि उनके द्वारा दिए गए उस बयान को लेकर है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने शॉर्टकट राजनीति के दूरगामी परिणामों पर चिंता जताते हुए कहा कि इस तरह की सोच वाली राजनीति से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इससे शॉर्ट सर्किट भी हो सकता है और देश बर्बाद हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वे जब भी किसी विषय पर बोलते हैं तो उसके गहरे निहितार्थ होते हैं। पता नहीं लोग इस बयान को किस तरह ले रहे हैं, लेकिन सामरिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो उक्त टिप्पणी को श्रीलंका में व्याप्त अराजकता और कई राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही मुफ्त सुविधाओं के आलोक में देखा जाना चाहिए। दरअसल, पूरा मामला मुफ्तखोरी पर आकर टिकता है। लोग राजनीति चमकाने के फेर में जनता को गुमराह करके ऐसे चुनावी वादे करते हैं, जिसको जमीनी स्तर पर उतार पाना नामुमकिन सा लगता है। लेकिन चूंकि वोट लेने के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है, दृष्टिकोण नहीं है, जाहिर वे लोकलुभावने वादों की झड़ी लगाकर वोट बटोरने में कामयाब हो जाते हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने यही तो किया है, जनता के पैसे को मुफ्त में बांटकर चुनावी लाभ प्राप्त कर रही है। बेहतर होता कि जो जनता बिजली का बिल चुकाने की स्थिति में नहीं है, उसे उसके लिए सक्षम बनाने के लिए तैयार किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं किया। ऐसी मुफ्त देने वाली योजनाएं अंग्रेजी दवा की तरह ही कार्य करती हैं, जबकि किसी भी समस्या का उपचार आयुर्वेदिक पद्धति से किया जाए तो उसके परिणाम भले ही देर से प्राप्त हों, लेकिन देश और जनता के विकास में सहायक होंगे।
ताजा उदाहरण पड़ोसी देश श्रीलंका का है, जहां राजनेताओं ने जनता के समक्ष नामुमकिन से लगने वाले वादे किए और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए देश को गर्त में डाल दिया। भारत में भी इस तरह के प्रयोग दिखने में आ रहे हैं जहां राजनीतिक दल केवल वोट के खातिर चुनावी वादे कर डाले जो गले नहीं उतरते। प्रधानमंत्री की चिंता इस लिहाज से बेहद सतर्कतापूर्ण संदेश देती है कि भारत में हमें ऐसी शॉर्टकट अपनाने वाली राजनीति से दूर रहना है। अगर हमें आजादी के 100 वर्ष पर, भारत को नई ऊंचाई पर ले जाना है, तो उसके लिए परिश्रम की पराकाष्ठा करनी होगी और परिश्रम का कोई शॉर्ट-कट नहीं होता। आजादी के बाद, देश में जो राजनीतिक दल हावी रहे, उन्होंने बहुत से शॉर्टकट अपनाए थे। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत के साथ आजाद हुए देश भी भारत से बहुत आगे निकल गए और हम वहीं के वहीं रह गए। आज हमें अपने देश को उस पुरानी गलती से बचाना है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने बस और बिजली-पानी की राजनीति करके सत्ता प्राप्त तो कर ली, लेकिन इसके नतीजे व्यापक स्तर पर दिखने लगे हैं, जो घातक हैं। उसने पंजाब में भी यही प्रयोग दोहराया। उसकी देखा-देखी अब अन्य राज्यों पर भी इसका रंग चढ़ रहा है। ताजा मामला झारखंड का है, जहां बसों का किराया मुफ्त करने की बात सामने आई है। क्या यह संभव है? झारखंड के निवासियों को भी इस तरह के मायाजाल से सतर्क रहने की जरूरत है। इसी प्रकार गुजरात में भी आम आदमी पार्टी ने ऐसी ही राजनीति करने का प्रयास किया है।
प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों कहा, इस पर विचार किया जाना चाहिए। वे मुफ्त बिजली की बात क्यों कर रहे थे? क्या वह परोक्ष रूप से श्रीलंका के आर्थिक पतन की ओर इशारा कर रहे थे, क्योंकि वहां जो हालात बने हुए हैं उसके पीछे इसी सोच को एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। वहां लोग भोजन, ईंधन और आवश्यक वस्तुओं के लिए तरस रहे हैं। कहना न होगा श्रीलंका में जो हुआ उससे हम भारतीयों को सीखने की जरूरत है। वैसे भी प्रकृति का एक नियम है, हम जितना लें उतना देने की भी प्रवृत्ति होना चाहिए। यह हमारा स्वभाव बनना चाहिए। यह भी सही है कि जिस समाज को मुफ्त की वस्तु पाने की आदत हो जाती है, वह अपनी क्षमताओं को कमजोर करने का ही काम करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार राजनीति में परिवारवाद की बात करते हैं। वह कहते है कि वंशवाद की राजनीति ने देश का बड़ा नुकसान किया है। दूसरी बात जो मोदी कहते हैं कि मुफ्त में पानी-बिजली का वादा करके चुनाव तो जीते जा सकते हैं लेकिन लंबे समय में विकास पर इसका असर विकास पर पड़ता है। जब सरकार का खजाना खाली हो जाता है, लोगों की कल्याणकारी योजनाएं बंद हो जाती हैं तो जनता में नाराजगी बढ़ती है और वह सडक़ पर उतर जाती है, जैसा कि हमने श्रीलंका में देखा। सरकार पर, सेना पर, अफसरशाही पर राजपक्षे परिवार के लोगों का कब्जा था। लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए श्रीलंका की सरकारों ने भी मुफ्त में उपहार बांटने शुरू किए। नतीजा यह हुआ कि श्रीलंका की 2.5 करोड़ की आबादी में से 25 लाख लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है, उन्हें एक बार भी खाना नहीं मिल रहा। बाकी जो आबादी है, जो कि मुख्य रूप में मध्यम वर्ग और निचले मध्यम वर्ग से संबंध रखी है, वह भी सिर्फ एक समय की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से कर रही है। बिस्किट का एक पैकेट 150 रुपए और एक लीटर दूध पांच सौ रुपए का मिल रहा है। बच्चों के लिए दूध और बिस्किट का इंतजाम करना भी मुश्किल है। परिवारवाद और मुफ्तखोरी की राजनीति किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए श्राप हैं। श्रीलंका तेजी से अराजकता की तरफ बढ़ रहा है। हमें श्रीलंका के हालात से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।