डॉ.मनजीत कौर
आज पूरा विश्व 10 वाँ अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है। इस वर्ष के लिए अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम नारी सशक्तिकरण रखी गई है। वर्तमान परिस्थितियों में यह थीम बहुत ही प्रासंगिक है। योग का सीधा सम्बन्ध शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। नारी हर परिवार की धुरी हैं, इसलिए यदि वह स्वस्थ हैं तो समझ लीजिए पूरा परिवार स्वस्थ रहेगा और आसपास का परिवेश भी सदैव अच्छा ही रहेगा।
योग का इतिहास कितना पुराना हैं,इस बारे में वैसे तो कोई प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं है लेकिन भारतीय वैदिक मान्यताओं के अनुसार योग हजारों वर्ष पुराना है। वेद पुराणों में भगवान शिव को आदि योगी कहा गया है। गीता में भी श्री कृष्ण को योगेश्वर कहा गया है।
योग के बारे में यह श्लोक काफी कुछ स्पष्ट करता हैं – बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।। श्रीमद भगवत गीता अध्याय2. श्लोक50।।
अर्थात समत्वबुद्धि युक्त पुरुष यहां (इस जीवन में) पुण्य और पाप इन दोनों कर्मों को त्याग देता है, इसलिये तुम योग से युक्त हो जाओ। यानी कर्मों में सबसे कुशल योग ही है।
हमारे वेदों पुराणों में योग का विस्तृत वर्णन मिलता है। पांच हजार वर्ष पुरानी मोहनजोदड़ो सभ्यता में भी योग मुद्राओं के अवशेष मिले हैं,जिसके आधार पर कतिपय इतिहासकार इसे 5000 वर्ष पुरातन मानते है। यत्र तत्र फैले योग को एक जगह पर संकलित करने का काम पंतजलि ने किया,जिसका नाम उन्होंने योगसूत्र रखा।छःदर्शनो में योगशास्त्र भी एक दर्शन है जो सांख्य दर्शन के अधिक निकट है। आचार्य पंतजलि के योग सूत्र के अलावा वाचस्पति मिश्र का वार्तिक, विज्ञान भिक्षु का योग सार संग्रह, शिव संहिता, घेरण्ड संहिताऔर हठयोग प्रदीपिका आदि प्रमुख हैं।
पंतजलि का अनुसरण करते हुए आधुनिक काल में आचार्य महेश योगी और बाबा रामदेव आदि कई योग गुरुओं ने योग का देश विदेशों में बहुत अधिक प्रचार प्रसार किया और इसे घर घर में लोकप्रिय बनाया। भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अथक प्रयासों से 2014 में योग को संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता दिलाई तथा 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित कराया। इससे भारतीय योग को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली और अब यह प्रतिवर्ष 21 जून को सारे विश्व के 192 देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम नारी सशक्तिकरण है । आज के युग में जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए नारी सशक्तिकरण बहुत जरूरी है। नारी ही बच्चों की प्रथम शिक्षक होती है और उनमें संस्कारों का रोपण करती है। संस्कारों से युक्त बच्चे ही एक अच्छी भावी पीढ़ी का सृजन कर सकते है।
हमें योग के चिकित्सीय महत्व को भी समझना बहुत जरूरी है। योग का शाब्दिक अर्थ होता है जोड़ना,समायोजन करना, संयुक्त करना,चित्त की वृत्तियों का निरोध करना,आत्मनिरीक्षण करना,शरीर और मन को प्रकृति से जोड़ना इत्यादि। जैसे युग बदले और समय बदलता गया योग का स्वरूप भी कालानुसार बदलता गया।
पहले लोगों को ईश्वर के बारे में जानने की ज़्यादा लालसा होती थी तो वह पहाड़ों में जाकर और किसी एक आसन को धारण कर अपने ध्यान को केंद्रित कर समाधि लगा लेते थे। धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदला और आधुनिक जीवन शैली में हर किसी ने योग के महत्व को समझा है तथा स्वस्थ जीवन और दीर्घायु रहने में इसकी उपादेयता को स्वीकार किया हैं। आजकल योग के आठ आयाम यम,नियम,आसन,प्राणायाम.प्रत्याहार,धारणा, धू यान और समाधि ज़्यादा प्रचलन में हैं।इसमें भी चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से आसन, प्राणायाम और ध्यान पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।
योग से हम सीधे प्रकृति से जुड़ते हैं जिससे हमारे मन को बहुत शांति और सुकून मिलता है।
आसन से हमारे विभिन्न अंगों का व्यायाम होता है जिससे अंगों में लचीलापन बढ़ता है और संधियों और उदर रोगों से संबंधित कई परेशानियों का समाधान मिलता है। प्राणायाम से फेफड़ों में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है जिससे श्वसन संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है।
ध्यान करने से हमारे सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है और हमें कई मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है।
योग के क्या फ़ायदे हैं इसको इस कविता में निबद्ध किया गया है –
योग आज की ज़रूरत है।
आज ज़रूरत दुनियाँ को है
सब कैसे स्वस्थ रहें
सबसे पहले इसके लिए
खुद से ज़्यादा प्यार करें।
सोचे जाने क्या तुम्हारे लिए
सबसे ज़्यादा ज़रूरी है
अगर न होगा स्वस्थ जीवन
फिर ज़िंदगी बोझ की बोरी है।
छोड़ इधर उधर की बातें
सब आत्म निरीक्षण करें
स्वस्थ जीवन पाने के लिए
नित्यप्रति योग करें।
बहुत सरल सस्ता तरीक़ा
मन अपना तटस्थ करें
बैठ जायें प्रकृति की गोद में
फिर योगाभ्यास करें।
सुबह सुबह की शुद्ध वायु
जब तुम्हारे अंदर जायेगी
दूर होगी नकारात्मकता
और सकारात्मकता आयेगी।
भरपूर मिलेगी ऑक्सीजन
खून का दौरा बढ़ायेगी
साथ में बढ़ेगी ख़ूबसूरती
चेहरे पर चमक आयेगी।
मन शरीर का एक साथ
जब तारतम्य बैठेगा
चुस्त दुरुस्त होगा शरीर
रोग घुटने टेकेगा।
हल्का फुलका होगा शरीर
तो एनर्जी भी आयेगी
दिनभर करेंगे जमकर मेहनत
रात को अच्छी नींद भी आयेगी।
ज़िंदगी हो स्वस्थ खुशहाल
इसके लिए ज़रूरी है
आहार निद्रा ब्रह्मचर्य
योग भी ज़रूरी है।
नारी जब होगी सशक्त
करेगी योग बनेगी स्वस्थ
लेगी निर्णय बडे़ सशक्त
नारी स्वस्थ तो परिवार भी स्वस्थ।
इस कविता से भी यह स्पष्ट होता है कि अपने बच्चों ही नही पूरे परिवार का भरण पोषण करने वाली नारी का स्वस्थ रहना कितना अधिक जरूरी है। एक समय ऐसा भी था जब कई गर्भ धारण कर कई कई बच्चों को जन्म देने वाली नारी अनेक शारीरिक कमजोरियों की वजह से असमय ही मौत का ग्रास बन जाती थी और उनके बच्चो की भी बाल मृत्यु दर बहुत अधिक होती थी। यदि वे बच भी जाते थे तो कुपोषण से बच नहीं पाते थे लेकिन कालांतर में शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के कारण जागरूकता बढ़ी है। विशेष महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हुई है। सरकारी स्तर पर बढ़ रही स्वास्थ्य सेवाओं ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। यही कारण है कि आज नारी जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है और सफलता के झंडे भी गाढ़ रही है। साथ ही ओलंपिक मेडल तक जीत रही है। बावजूद इसके एशिया और अफ्रीका उप महाद्वीप सहित दुनिया के कई गरीब देशों में आज भी वह जागरूकता पैदा नही हो सकी है जिसकी नितांत आवश्यकता है। भारत बच्चों में मधुमेह रोग होने की दृष्टि से पूरे विश्व में पहले नंबर पर है। इसी प्रकार अमरीका जैसा विकसित देश इस मामले में दूसरे स्थान पर है।
वर्तमान में बदलते युग के साथ योग एक जन आंदोलन बनता जा रहा हैं और इसमें महिलाएं एक अहम भूमिका का निर्वहन कर रही है। वे आधुनिक जीवन शैली की विषमताओं के बाबजूद अपने बच्चों और परिवार को योग एवं स्वस्थ जीवन की अहमियत बताने में जुटी हुई है। सौभाग्य से भारत को प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी जैसा जननेता मिला है जो योग और उसके महत्व को बखूबी समझता है तथा स्वयं अपनी जीवनचर्या में न केवल उसे अपनाता है वरन हर देशवासी और सारी दुनिया को भी ऐसा करने की प्रेरणा भी देता हैं। उन्होंने भारत के आयुष मंत्रालय का गठन कर इसकी उपादेयता को और अधिक बढ़ा दिया हैं।
इसलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आज योग को हर किसी के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग बनाना परम आवश्यक है। विशेष कर परिवार का संचालन करने वाली महिलाओं को योग को हर हालत में अंगीकार करना ही होगा क्योंकि यदि नारी स्वस्थ रहती हैं तो पूरे परिवार और समाज के भी स्वस्थ होने में कोई संशय नहीं रहेगा। पूरा विश्व पिछले दस वर्षो से पूरे मनोयोग के साथ अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है लेकिन यह दिवस मात्र ओपचारिकता बन कर नहीं रह जाए,यह सुनिश्चित करना जरूरी हैं। इसी भावना के साथ सभी को 10 वें विश्व अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
( लेखक डॉ.मनजीत कौर,बीकानेर हॉउस, नई दिल्ली में राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय की प्रभारी हैं)