
विनोद तकियावाला
आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करता है, आर डब्लू एफ की ऐतिहासिक सफर
देश ने हाल ही में अपना 79वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाया। इस पावन अवसर पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए “स्वदेशी अपनाने” की मार्मिक अपील की, जिसे हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य कहा गया। इसी संदर्भ में आज हम आपको एक ऐसा उदाहरण बताएंगे, जो सीधे भारतीय उद्योग और आत्मनिर्भरता की कहानी से जुड़ा है – भारतीय रेल प्रणाली में दशकों से अपनी अहम भूमिका निभाने वाले रेपका (रेल व्हील फैक्ट्री, आरडब्ल्यूएफ) का सफर।
भारतीय रेलवे, विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्रिक रेल प्रणाली, न केवल सस्ती और सुरक्षित मानी जाती है, बल्कि यह देश की विकास यात्रा में बहुमूल्य योगदान देती रही है। इसी रेलगाड़ी के पहियों (व्हील) और धुरों (एक्सल) का निर्माण दशकों से आर डब्ल्यू एफ कर रहा है।
इस कारखाने की पृष्ठभूमि 1970 के दशक के आरंभ से जुड़ी है। उस समय रेलवे के पहियों और धुरों के लिए भारत टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी और हिन्दुस्तान स्टील, दुर्गापुर पर निर्भर था। लेकिन इन दोनों स्रोतों से रेलवे की आवश्यकताओं की पूर्ण पूर्ति नहीं हो पाती थी। परिणामस्वरूप, भारत को पहियों और धुरों का एक बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात करना पड़ता था, जिससे लागत बढ़ रही थी और विदेशी मुद्रा का भंडार घट रहा था।
इस चुनौती को देखते हुए तत्कालीन रेल मंत्री के. हनुमंतैया ने 1972-73 के रेल बजट में कहा, “हमें कुछ शक्तिशाली देशों द्वारा विदेशी सहायता बंद करने या धमकी मिलने का सामना करना पड़ रहा है। अतः भारत सरकार आत्मनिर्भरता की नीति को प्रोत्साहित करेगी।”
उन्होंने बताया कि रेलवे की पहियों और धुरों की आवश्यकताओं को स्वदेशी उत्पादन से केवल आंशिक रूप से पूरा किया जा रहा है। विदेशी खरीद पर प्रति वर्ष 5.8 करोड़ रुपये खर्च हो रहे थे। ऐसे में प्रस्तावित नए संयंत्र से प्रति वर्ष लगभग 20,000 पहिए और 25,000 धुरों का उत्पादन होगा, जिससे रेलवे वस्तुतः आत्मनिर्भर हो जाएगी।
एच.एस. कपूर की अध्यक्षता में एक बैठक में नए व्हील और एक्सल प्लांट की आवश्यकता की पुष्टि की गई। इसके लिए स्क्रैप और कच्चे माल की परिवहन सुविधा, फोर्जिंग एक्सल के लिए ब्लूम की उपलब्धता, औद्योगिक क्षेत्रों की निकटता, गैस, इलेक्ट्रोड, ग्रेफाइट मोल्ड, बिजली शुल्क आदि सभी पहलुओं पर विस्तृत अध्ययन किया गया।
नए संयंत्र के लिए पंजाब और मैसूर (अब कर्नाटक) में विभिन्न स्थानों का सर्वेक्षण हुआ। अंततः बैंगलोर के येलहंका उपनगर को संयंत्र स्थापना के लिए उपयुक्त माना गया। 1972 के अंत में, एक परियोजना टीम को उपकरणों और प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए यूरोप, अमेरिका और कनाडा भेजा गया। इस दौरान ग्रिफिन व्हील कंपनी, अमेरिका से कास्ट व्हील तकनीक और ऑस्ट्रिया से जीएफएम प्रकार की लांग फोर्जिंग मशीन के विचार अपनाए गए।
18 जनवरी 1980 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने इस कारखाने को राष्ट्र को समर्पित किया। पहला ट्रायल व्हील 30 दिसंबर 1983 को और पहला फोर्ज्ड एक्सल मार्च 1984 में तैयार हुआ। सफल परीक्षणों के बाद, 15 सितंबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने औपचारिक उद्घाटन किया।
शुरुआती उत्पादन क्षमता थी – 56,700 कास्ट व्हील और 23,000 फोर्ज्ड एक्सल वार्षिक। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 में कारखाने ने 2,01,150 व्हील, 93,880 एक्सल और 98,350 व्हीलसेट का निर्माण किया, जो रेपका के इतिहास में सर्वाधिक है। यहाँ पर अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ग्रिफिन प्रौद्योगिकी द्वारा दो मिनट में एक व्हील डाला जाना और मशीन द्वारा प्रत्येक 4 मिनट में एक व्हीलसेट का असेंबल होना।
आर डब्ल्यू एफ का वार्षिक उत्पादन स्तर स्थापना के बाद से लगातार रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित लक्ष्यों से अधिक रहा है। अब तक 36 लाख से अधिक व्हील, 17 लाख एक्सल और 12 लाख व्हीलसेट का निर्माण हो चुका है। कारखाना न केवल रेलवे की मांग पूरी करता है, बल्कि गैर-रेलवे ग्राहकों और निर्यात के लिए भी उत्पादन करता है।
सभी उत्पादों का चरणबद्ध और अंतिम निरीक्षण किया जाता है। इसमें सामग्री के माइक्रो/मेक्रो गुण, चुंबकीय कण परीक्षण, अल्ट्रासॉनिक परीक्षण, कठोरता, वारपेज, डॉयमेंशनल पैरामीटर, सतह फिनिश आदि शामिल हैं। अप्रैल 2024 में मेसर्स इंडियन रजिस्टर क्वालिटी सिस्टम (IRQS) द्वारा पुन: प्रमाणित किया गया।
रेपका के पास किसी भी आकार के व्हील, धुरों और व्हीलसेट डिजाइन व निर्माण की क्षमता है। यह कारखाना भारतीय रेल की आत्मनिर्भरता की प्रतीक स्थली बन चुका है।
आज हम यही कह सकते हैं – “ना काहूँ से दोस्ती, ना ही काहूँ से बैर। खबरीलाल तो माँगें, सबकी खैर।”