मेनिफेस्टो से गिरे मंगलसूत्र पर अटके

Stuck on the mangalsutra that fell from the manifesto

किशोर कुमार मालवीय

चुनावी घोषणा पत्रों में लम्बे चौड़े वायदों के बाद जमीन पर लड़ाई तुच्छ मुद्दों पर हो रही है। ये साफ है कि राजनीतिक दलों को खुद अपने मेनिफेस्टो पर भरोसा नहीं है इसलिए वे उन मुद्दों पर वे बात नहीं करते जो उन्होंने अपन अपने घोषणा पत्रों में लिखे हैं। उन्हें भी पता है कि जनता मेनिफेस्टो न तो पढ़ती है और न ही उसके आधार पर वोट देती है। जनता की इसी कमजोरी का राजनीतिक दल फायदा उठाकर प्रचार में उन मुद्दों को ले आते हैं जो गैरजरुरी और कभी कभी झूठ पर आधारित होते हैं। इस बार भी लोकसभा चुनाव में यही सब दिख रहा है।

इसकी शुरुआत इस बार तब हुई जब कांग्रेस के मेनिफेस्टो को भाजपा ने मुस्लिम लीग से जोड़ दिया। भाजपा को कांग्रेस के मेनिफेस्टो में मुस्लिम लीग की गंध मिली जबकि मेनिफेस्टो में कहीं मुस्लिम शब्द का जिक्र तक नहीं है। कांग्रेस इसे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिश बता रही है। पार्टी ने इसके खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की है। हद तो तब हो गई जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में एक रैली को सम्बोधित करते हुए ये कह दिया कि कांग्रेस जनता की सम्पत्ति को ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को बांट देगी। विपक्ष इसे चुनाव संदिता का उल्लंघन बता कर चुनाव आयोग से शिकायत की है। आयोग फिलहाल उस बयान का “अध्ययन” कर रहा है। मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी ने तो पुलिस केस तक दर्ज करा दिया है। उसका कहना है कि प्रधानमंत्री का यह बयान न सिर्फ एक समुदाय के खिलाफ है बल्कि समाज में नफरत फैलाने का काम भी कर रहा है।

बांसवाड़ा की इसी रैली में मोदी ने कांग्रेस पर अर्बन नक्सल विचारधारा से प्रभावित होने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस आपकी मां बहनों के गहनों का हिसाब लगाकर उसे मुसलमानो में बांट देगी। मोदी के मुताबिक पुर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनो पर मुसलमानो का पहला हक है। चूंकि मनमोहन सिंह ने ऐसा कभी नहीं कहा था इसलिए मोदी अपने बयान में ही उलझ गए। चूंकि मामला सीधा प्रधान मंत्री से जुड़ा है और आचार संहिता का खुला उल्लंघन है, चुनाव आयोग पसोपेश में है। दरअसल मोदी 2006 के जिस बयान का जिक्र कर रहे थे वह राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में दिया गया था। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री की हैसियत से बैठक में शामिल थे। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार तब के प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने दलित, पिछड़े, महिला, गरीब और अल्पसंख्यकों को संसाधनो का पहला हकदार बताया था। उन्होंने मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल तक नहीं किया था।

एक दूसरी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कांग्रेस अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण कम कर मुसलमानो को देना चाहती है। 2004 से 2010 के बीच कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में इसकी कोशिश भी की पर अदालती हस्तक्षेप की वजह से ऐसा नहीं हो सका।

अलीगढ़ की रैली में मोदी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो मां-बहनों के मंगलसूत्र भी नहीं छोड़ेगी। इसके जवाब में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वडरा ने कहा है कि भारत में कांग्रेस ने अब तक 55 साल तक शासण किया, तो क्या आज तक किसी का मंगलसूत्र कांग्रेस ने छीना है। यहां तक कि मेरी दादी इंदिरा गांधी ने युद्ध के समय देश को अपना सोना दिया था और मेरी मां सोनिया गांधी ने तो अपनी मंगलसूत्र देश के नाम कुर्बान कर दिया। मोदी ने कांग्रेस नेता सैम पिट्रोडा के उस बयान को भुनाना भी शुरु कर दिया है जिसमें उन्होंने उस अमेरिकी कानून की सराहना की थी जिसके तहत किसी अमीर की मृत्यु के बाद उसकी आधी सम्पत्ति सरकार जब्त कर लेती है। पिट्रोडा के उस बयान के बाद कांग्रेस बचाव की मुद्रा में आ गई और उसे पिट्रोडा की निजी राय बताकर मामले को टालने की कोशिश की है पर मोदी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। अब वह रैलियों में कह रहे हैं कि कांग्रेस की नजर आपकी सम्पति पर है- जिन्दगी के बाद भी।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां अपने मेनिफेस्टो के आधार पर ही चुनाव प्रचार कर रही है। उनकी तरफ से भी जमकर कुप्रचार हो रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगभग हर चुनाव सभा में ये कहना नहीं भूलते कि भाजपा 400 सीटें इसलिए मांग रही है क्योंकि वह संविधान बदलना चाहती है। वे ये भी कह रहे हैं कि मोदी आरक्षण व्यवस्था खत्म कर देश में तानाशाही लाने वाले है।

जो भी हो, चुनाव अपनी उपलब्धियों पर नहीं बल्कि दूसरों को गरियाने की नीति पर लड़ा जा रहा है।