
सीता राम शर्मा ” चेतन “
बहुत लिख लिया ! देश-दुनिया का चिंतन तो इतना किया कि खुद के लिए खुद ही सबसे बड़ी चिंता का कारण बन गया ! बचपन से पचपन तक की सकारात्मकता का महान गुण सार्वजनिक और सामुहिक नकारात्मकता का सबसे बड़ा दोष सिद्ध हुआ ! यह हास्य व्यंग्य के साथ कटू अनुभव से भरा सत्य है कि सब ठीक हो जाएगा ! भ्रष्टाचार मिटेगा ! देश नशामुक्त होगा ! सुशासन आएगा ! ऐसे सकारात्मक भाव क्रांतिकारी नकारात्मकता के ज्वालामुखी को भयावह रूप देते प्रतीत हो रहे हैं ! घोर अव्यवस्था, अन्याय और भ्रष्टाचार से जन्में अपराधियों के प्रति उपजते दया और सम्मान के भाव से भरे मस्तिष्क को भटकाने रिझाने के लिए अपने हिस्से के सबसे समर्थ और शक्तिशाली विकल्प, जो थोथा और असरहीन ही सही, मुझे सत्य से भरपूर लगते मेरे लेखन का सहारा लेते हुए मेरी तरह बेसहारा हुए करोड़ों राष्ट्रीय जीवों को मैं आज उनकी राष्ट्रीय समस्या भ्रष्टाचार और कुशासन मुक्ति के राष्ट्रीय सर्वे की सलाह देता हूं ! आइए, महान राष्ट्रभक्ति के वर्तमान वैश्विक उदहारण बने अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विपरीत मेरी इस मूर्खतापूर्ण सलाह पर थोड़ा गौर कीजिए ! आनंद लीजिए !
भारत में भ्रष्टाचार और उससे उत्पन्न भ्रष्टाचारियों की जड़ें इतनी गहरी है कि यदि सैकड़ो बुद्धिजीवी हजारों वर्षों तक लाखों अनुसंधान कर लें तब भी ना तो भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता है और ना ही भ्रष्टाचारियों को ! भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को मिटाने की बात तो दूर वे तमाम बुद्धिजीवी प्रयास पहले मुर्गी आई या अंडा ? के अनुत्तरित प्रश्न की तरह यह भी नहीं जान सकते कि भारत में पहले भ्रष्टाचार आया या भ्रष्टाचारी ? भ्रष्टाचार के डीएनए टेस्ट पर ना जाते हुए फिलहाल बात इसके तात्कालिक समाधान की, जो आपको हास्य व्यंग्य भी लग सकती है और सर्वथा बकवास और अनुचित भी, पर क्षमा कीजिए, मैं ना तो इस देश का ट्रंप जैसा राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हूं और ना ही सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश ही, जिसकी बात का विशेष महत्व हो । मैं तो ठहरा एक आम पीड़ित भारतीय नागरिक, जिसकी औकात इस देश के शासकों-प्रशासकों की दृष्टि में कीड़े-मकोड़े से थोड़ी भी ज्यादा नहीं ! खैर, भारत आध्यात्मिक भूमि है इसलिए न्याय-अन्याय और धर्म-अधर्म के हिसाब से इस समस्या को मैं करोड़ों पीड़ित असहाय भारतीयों की तरह ईश्वरीय न्याय पर ही छोड़कर आगे बढ़ता हुं ।
अब बिना ज्यादा घुमाए-फिराए या माथापच्ची कराए सीधी सपाट और सरल बात भारत में भ्रष्टाचार मुक्ति की, तो इस पर मेरी स्पष्ट सलाह है कि भारत के सत्ताधारी शासकों, राजनीतिज्ञों जिन्हें हम सांसद विधायक कहते हैं, उनके वेतन का निर्धारण उनकी इच्छा अनुसार होना चाहिए । चुनाव जीतने के बाद एक-एक कर उनसे यह स्पष्ट पूछा जाना चाहिए कि अगले पांच साल तक आपको हर महिने कितना वेतन चाहिए कि आप जनता और अपने क्षेत्र का काम बिना किसी भ्रष्टाचार के कर सकें ? फिर वह सांसद और विधायक जो धनराशि बताए, जो अधिकारिक रुप से, अधिकारिक इसलिए क्योंकि उसे संवैधानिक रुप से जनता ने चुना है, अतः उसे अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, राजनीतिक और अपनी सात पुश्तों के सुरक्षित और सुखद भव्य जीवन के लिए संभावित धनराशि को पाने का ( जैसा कि वे मानते हैं ) अधिकार है, वे अपने और अपने प्रिय रिश्तेदारों, राजनीतिज्ञों, राजनीतिक दलों के विवेकनुसार उस धनराशि की गणना कर बताए, कि उसे वेतन के रूप में मासिक किस्तों में या फिर एकमुश्त कितनी राशि दी जाए ? ठीक इसी तरह सभी प्रशासनिक अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को भी उनके वेतन निर्धारण पर उनको इतना अधिकार तो अवश्य देना चाहिए कि वे भ्रष्टाचार मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर सकें ! हां, एक और जरुरी बात, मानवीय भूल संभव है, इसलिए उन्हें अपने वेतन निर्धारण में हुई भूल में पूरे कार्यकाल के दौरान तीन बार भूल सुधार का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाए क्योंकि भौतिकता और विज्ञान के तीव्र विकास काल में भविष्य की जरूरतो के आकलन में भूल संभव है !
तो भ्रष्टाचार मुक्त शासन की बात भारत में असंभव मान चुके मेरे प्यारे पाठकों, मित्रों और राष्ट्रीय शुभचिंतकों के साथ मेरे देश के महान राजनीतिज्ञों, न्यायधीशों, संविधान विशेषज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों, आप बताएं कि क्या भारत को सचमुच भ्रष्टाचार और कुशासन से मुक्त करने के लिए मेरी इस सलाह पर सर्वसम्मति से एक दमदार सर्वे करवाया जाए ? बाकी रही बात भविष्य में ऐसे काल्पनिक संभावित नियम कानून बनाए जाने के बाद भी होने वाले भ्रष्टाचार की, तो उसकी सजा तो त्वरित फांसी ही होनी चाहिए, पर उसके लिए जिस फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरूरत होगी, वह कैसे बनेगा और उसको चलाने वाले लोग कौन और किस देश या जहान के होंगे ? इसका निर्णय तो मैं आप पर ही छोड़ता हूं !