कुपोषण का बदलता स्वरूप: मोटापे की चुनौती !

The changing face of malnutrition: The challenge of obesity!

सुनील कुमार महला

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की हालिया एक रिपोर्ट के अनुसार, अब दुनिया भर में बच्चों और किशोरों में कम वजन (कुपोषण) की तुलना में मोटापे की समस्या अधिक गंभीर हो गई है। यह पहली बार हुआ है, जब मोटापा कुपोषण के सबसे सामान्य रूप के रूप में उभरा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 5 से 19 वर्ष की आयु के लगभग 188 मिलियन बच्चे और किशोर मोटापे से ग्रस्त हैं, जो वैश्विक स्तर पर लगभग 10% हैं। यह आंकड़ा वर्ष 2000 में 3% था। दरअसल,यूनिसेफ ने साल 2020 से 2022 तक के आकड़ों को पेश करते हुए वर्तमान हालात और वर्ष 2035 तक मोटापे को संभावित चुनौती बताते हुए चिंता जताई है। ऐसा पहली बार हुआ है जब मोटापा, कम वजन की समस्या से आगे निकल गया। वास्तव में, मोटापे के कारण टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यूनिसेफ के अनुसार, बच्चों में मोटापे की वृद्धि के प्रमुख कारणों में क्रमशः अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (यूपीएफज) का बढ़ता सेवन,स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों की कमी तथा कमजोर नियामक नीतियों को बताया गया है। वास्तव में, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाद्य पदार्थ सस्ते, उच्च कैलोरी वाले और आक्रामक रूप से विपणन किए जाते हैं, जो पारंपरिक पोषक तत्वों से भरपूर आहारों की जगह ले रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और सस्ती कीमतों की कमी है। वहीं दूसरी ओर खाद्य विपणन पर प्रभावी प्रतिबंधों का अभाव है और यही कारण भी है कि बच्चों में मोटापे की समस्या जन्म ले रही है। मोटापा बच्चों के शारीरिक विकास, मानसिक कल्याण और संज्ञानात्मक विकास(कोगनेटिव डेवलपमेंट) को भी प्रभावित कर सकता है। हमारे देश की यदि हम यहां पर बात करें तो हमारे देश में भी बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2022 में भारत में 5 से 19 वर्ष की आयु के लगभग 1.25 करोड़ बच्चे मोटापे का शिकार हुए। विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों में मोटापे का खतरा बढ़ाने वाले जीन का पता चला है, जो उनके खान-पान को प्रभावित करते हैं। इस क्रम में यूनिसेफ ने सरकारों और अभिभावकों से क्रमश: स्वस्थ खाद्य पर्यावरण का निर्माण जैसे कि स्वस्थ आहार विकल्पों की उपलब्धता और सस्ती कीमतों को सुनिश्चित करना, खाद्य विपणन पर प्रतिबंध विशेषकर बच्चों के लिए अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के विपणन पर प्रभावी प्रतिबंध लागू करने के साथ ही साथ शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने जैसे कदम उठाए जाने की अपील की है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में बच्चों और अभिभावकों को स्वस्थ आहार और जीवनशैली के महत्व के बारे में जागरूक करना बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी हो गया है। स्वस्थ खान-पान और जीवनशैली से ही इस दिशा में फायदा हो सकता है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में आज के समय में, बच्चों और किशोरों में मोटापा बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले दिनों लाल किले से मोटापे को आने वाले समय का बड़ा संकट बताते हुए अपनी चिंता जाहिर की थी।सच तो यह है कि आज हमारी युवा पीढ़ी अपने खान-पान के प्रति सजग और जागरूक नहीं है। मोटे अनाज का सेवन आज जैसे धीरे धीरे गायब सा हो गया है। पहले के जमाने में हमारे बुजुर्ग व युवा पीढ़ी भी मोटे अनाज, फल-सब्जियों का बहुतायत में प्रयोग करती थी। देसी खान-पान से स्वास्थ्य अच्छा रहता था लेकिन आज की जिंदगी भागम-भाग भरी जिंदगी हो गई है और आज के आधुनिक जीवन में जंक फूड, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और मीठे पेय पदार्थों का सेवन तेजी से बढ़ रहा है। शहरों ही नहीं गांवों में भी आज जंक फूड,फास्ट फूड प्रयोग होने लगे हैं और एक बड़ा बदलाव गांव की खान-पान संस्कृति में आया है।जंक फूड और फास्ट फूड में (इन खाद्य पदार्थों में) अधिक मात्रा में शर्करा, नमक, वसा और कृत्रिम स्वाद बढ़ाने वाले तत्व पाए जाते हैं, जबकि इनमें आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है। लगातार ऐसे भोजन का सेवन करने से शरीर में अतिरिक्त कैलोरी(एक्सट्रा कैलोरी) जमा होती है, जिससे मोटापा, टाइप-2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, फैटी लिवर और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। बच्चों और युवाओं में यह आदत विशेष रूप से चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि यह उनकी बढ़ती उम्र में सही पोषण प्राप्त करने की क्षमता को कहीं न कहीं अवश्य ही प्रभावित करती है। इसलिए संतुलित आहार(मोटे अनाज), प्राकृतिक खाद्य पदार्थों, ताजे फल, सब्जियों और पर्याप्त पानी का सेवन स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए आवश्यक है। परिवार, विद्यालय और समाज को मिलकर इस संबंध में जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि स्वस्थ जीवनशैली अपनाई जा सके और विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचा जा सके। आज के समय में जंक फूड, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और मीठे पेय पदार्थों की खपत तेजी से बढ़ रही है। गांव भी इससे अछूते नहीं रह गये हैं। वास्तव में यह जीवनशैली में बदलाव, शहरीकरण, और उपभोक्ता आदतों में परिवर्तन का ही परिणाम है। हिमाचल प्रदेश के एक अध्ययन में पाया गया कि 36% ग्रामीण बच्चों ने पिछले 24 घंटों में जंक फूड का सेवन किया। इनमें से अधिकांश ने चिप्स, चॉकलेट, बेकरी उत्पाद, सॉफ्ट ड्रिंक्स और शक्करयुक्त पेय का सेवन किया। महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के पांच राज्यों में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मिलेट्स के सेवन में रुचि बढ़ रही है, लेकिन स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता कम है। इससे संकेत मिलता है कि पारंपरिक आहार से हटकर अन्य खाद्य पदार्थों की ओर रुझान बढ़ रहा है।समय के साथ आज उपभोक्ता आदतों में आमूलचूल परिवर्तन आएं हैं।एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक के अनुसार साल 2025 में, ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती प्रीमियम एफएमसीजी उत्पादों की खपत शहरी क्षेत्रों को पार कर गई, जो उपभोक्ता प्राथमिकताओं में बदलाव को दर्शाता है। रिपोर्टों के अनुसार, भारत में 38% लोग तले हुए स्नैक्स और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जबकि केवल 28% लोग सभी पांच अनुशंसित खाद्य समूहों का सेवन करते हैं।एक अध्ययन में पाया गया कि 9.7% से 13.9% तक बच्चों में मोटापे की दर बढ़ी है, जो जंक फूड की अधिक खपत से जुड़ा है। इतना ही नहीं, एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि जिन माताओं का जंक फूड सेवन अधिक था, उनके बच्चों में मोटापे की संभावना भी अधिक थी।भारत में 28.6% लोग मोटापे से ग्रस्त हैं, 15.3% में प्रीडायबिटीज है, और 35.5% में उच्च रक्तचाप है, जो बढ़ती जंक फूड खपत से जुड़े हैं। आज हमारे देश के बच्चे लगातार जंक फूड और फास्ट फूड की ओर आकर्षित हो रहे हैं और इसके लिए आक्रामक डिजिटल और टीवी विज्ञापन भी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं।समय के साथ बच्चों की शारीरिक गतिविधियों में भी अभूतपूर्व कमी देखने को मिली है। आज बच्चे स्क्रीन से चिपके रहते हैं और खेल के मैदानों की ओर उनका रूझान धीरे धीरे बहुत कम होता चला जा रहा है। पढ़ाई में बढ़ती प्रतिस्पर्धा भी एक बड़ा कारण है। हाल ही में यूनिसेफ की जो रिपोर्ट आई है उसके अनुसार दुनिया में साल 2000 में 5 से 19 साल के बच्चों में केवल 3% मोटे थे जबकि 13% कम वजन वाले थे। वहीं पर साल 2022 तक मोटापा बढ़कर 9.4% हो गया, वहीं कम वजन घटकर 9.2% रह गया।यह बहुत गंभीर और संवेदनशील है कि आज दुनिया के करीब 188 मिलियन यानी हर 10 में से 1 बच्चा या किशोर मोटापे से ग्रसित है। उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया को छोड़कर लगभग सभी क्षेत्रों में मोटापे के मामले अधिक हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2035 तक मोटापा से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सालाना 4 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का बोझ बढ़ेगा। मोटापे की समस्या से बचने के लिए घर का ताजा और पौष्टिक भोजन खाना चाहिए और जंक फूड, तला-भुना, पैकेट बंद और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।फल, सब्जियाँ, दालें, अनाज, मेवे, बीज आदि का नियमित सेवन बहुत जरूरी है। मीठे पेय पदार्थों और शक्कर की अधिकता से बचना चाहिए। बच्चों को रोज़ाना कम से कम 30–45 मिनट व्यायाम करने की ओर मोड़ने की जरूरत है।योग, प्राणायाम, पैदल चलना, साइकिल चलाना, खेलकूद जैसी गतिविधियों को अपनाने से मोटापे में कमी आएगी। अभिभावकों को यह चाहिए कि वे बच्चों और युवाओं में खेल को बढ़ावा दें ,ताकि वे सक्रिय जीवनशैली अपनाएँ। इसके अलावा मोटापे के प्रति जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, तथा मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाना चाहिए। स्वास्थ्य जांच निगरानी व सरकारी पहल और नीतियां मोटापा कम करने की दिशा में अहम् और महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।घर में बच्चों और बड़े सभी के लिए स्वस्थ खानपान की आदतें विकसित करना भी बहुत जरूरी है।अंत में यही कहूंगा कि मोटापा सिर्फ एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, यह सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। यदि हर व्यक्ति अपनी जीवनशैली में छोटे बदलाव करे, परिवार सहयोग करे, समाज जागरूक बने और सरकार उचित नीतियाँ लागू करे तो भारत मोटापे की समस्या से दूर हो सकता है।