सुशील दीक्षित विचित्र
राहुल गांधी की सजा से लोकसभा से फौरी निष्कासन के बाद विपक्ष में लोकतंत्र मर गया का जो फर्जी शोर मचाया जा रहा है वह और कुछ नहीं लोकतंत्र के तीसरे खंभे न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर हमला है। न्यायालय के फैसले पर हम अदालत का सम्मान करते हैं की नकली घोषणा के साथ किन्तु परन्तु लगाना सम्मान नहीं बल्कि खुली अवमानना है। यह भी कहना कि सरकार के दबाव में राहुल गांधी को सजा सुनाई गई , न्यायालय की गरिमा और उसकी निष्पक्षता पर प्रहार करना है। आज या काम कांग्रेस के लीडर ही नहीं वे सारे विपक्षी नेता कर रहे हैं जो लोकतंत्र की रक्षा का दम भरते हुए धड़ाधड़ लोकतांत्रिक मूल्यों पर कुठाराघात कर रहे हैं।
संविधान और कानून के जानकारों का कहना है कि दो साल की सजा होने पर संसद सदस्यता रद्द करने का प्रावधान है। पूर्व कांग्रेसी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल कहते हैं कि अगर किसी संसद या विधायक को दो साल की सजा सुनाई आती है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है और उसकी सीट खाली हो जाती है। सिब्बल जैसी बात सभी विषय विशेषज्ञ कर रहे हैं यह नियम है और ऐसा नियम राहुल गांधी द्वारा दस साल पहले संसद द्वारा पारित अध्यादेश फाड़ कर सरकार को मंजूर कराने को मजबूर किया था। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (3 ) के अनुसार किसी भी सांसद या विधायक को दो साल की सजा होती है तो वह संसद सदस्य रहने की योग्यता खो देता है । उसकी सदस्यता तभी बच सकती है जब दोषसिद्धि पर रोक लग जाए। राहुल की सजा और सांसदी रद्द होने पर लोकतंत्र की हत्या का होर मचाने वालों को जानना चाहिए कि सजा के फैसलों पर राहुल गांधी के अलावा भी कई नेताओं की सांसदी और विधायकी जा चुकी है। हत्या के प्रयास के मामले में दोष सिद्ध होने पर लक्ष द्वीप के संसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता रद्द कर दी गयी थी। बिहार के लालू प्रसाद यादव यूपी के विधायक मोहम्मद आजम और उनके विधायक पुत्र मोहम्मद आजम को सजा सुनाई जाने क बाद उनकी विधायकी तो चली ही गयी थी, छह साल तक चुनाव लड़ने के भी अयोग्य हो गए । इससे बहुत पहले राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद की सांसदी छिन गयी थी। इनमें से किसी भी नेता ने भाजपा या मोदी सरकार को निशाना नहीं बनाया क्योंकि यह सब अपने को संविधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक मूल्यों को मानने वाले रहे। इसके विपरीत कांग्रेस राहुल गांधी को शहीद की मुद्रा में पेश कर यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि राहुल की सजा भाजपा का षड्यंत्र है। किसी ने घोषणा नहीं की कि उनकी सजा से लोकतंत्र मर गया या उसकी हत्या हो गई। उसे भाजपा ने आईसीयू में भेज दिया। जब उनसे सवाल किया जाता है कि सजा तो कोर्ट ने सुनाई और सदस्यता भी नियमों के तहत रद्द हुयी तो वे कोर्ट को मिला हुआ बताने में संकोच नहीं करते। मतलब यह कि कांग्रेस की नजर में राहुल से बड़ा कोई नहीं। न देश न संविधान और न अदालत।
क्रोध में भरे कांग्रेसी लगातार आरोप लगा रहे हैं कि यह विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास है और राहुल गांधी को सच बोलने की सजा दी गई है। आखिर वह कौन सा सच है जो राहुल गांधी बोलते रहते हैं। 2019 में उन्होंने कथित सच बोला था कि चौकीदार चोर है ऐसा अदालत ने भी कहा है। बाद में उन्हें न केवल कोर्ट से फटकार पड़ी बल्कि उन्हें लिखत माफीनामा भी देना पड़ा था। एक सच उन्होंने पेगासस की मामले में बोला था जो बाद में महाझूठ साबित हुआ। राफेल के मामले में देश को गुमराह करने वाले उनके झूठ से सारा देश परिचित है। अदालत में भी यह मामला नहीं ठहर सका था। एक सच उन्होंने कश्मीर में बोला था कि कुछ महिलाओं ने उन्हें बताया कि उनके साथ दुष्कर्म हुआ है। यह गंभीर मामला था। जब पुलिस ने उन महिलाओं के नाम पते जान पर न्याय दिलाने के लिए राहुल गांधी से सम्पर्क किया तो कांग्रेसी भी हाय लोकतंत्र , मर गया लोकतंत्र कह कर तरह तरह से प्रलाप करने लगे। राहुल गांधी आज तक न उन महिलाओं का पता नहीं बता पाये की वह एक वैसी ही गप्प थी जैसी गप्प मरने में राहुल गांधी को महारत हासिल है।
विपक्ष के कुछ नेता मानते हैं कि लोकतंत्र तभी बचता है जब वे सत्ता में होते हैं। सत्ता से बाहर होते ही उनके लिए लोकतंत्र संविधान और देश सब पर खतरा मडराने लगता है। कैसी बिडम्वना हैं कि टुकड़े टुकड़े गैंग के सरगना और देशद्रोह के आरोप में जमानत पर छूटे कन्हैया को गोद में ले का कांग्रेस देश और संविधान की रक्षा की बात करती है। दरअसल सविधान , लोकतंत्र या देश को कोई खतरा नहीं। खतरा है तो कांग्रेस और परिवारवादी उन दलों पर जिनके नेता या तो सजा पा चुके हैं या देर सवेर वे इस मुकाम पर पहुँचने वाले हैं। अगर कोई डरा हुआ है तो सामंती मानसिकता वाली कांग्रेस डरी हुयी है क्यूंकि उसका तो अस्तित्व ही दांव पर लगा है और वह इसे बचाने में दिलचस्पी कम ले रही है और मोदी तथा भाजपा को बर्बाद करने की योजना पर अधिक काम कर रही है।
अपनी हार और अपने दुर्वचनों की दंडात्मक परिणति से आहत क्षुब्ध कांग्रेस का हर नेता एक ही जुमला बोल रहा है कि जनता समय आने पर इसका जबाब देगी। पता नहीं वे जनता के किस तरह के जबाब का इंतजार कर आहे हैं जबकि जनता पिछले नौ वर्षों में कई बार अपना जबाब दे चुकी है। इसी वर्ष पूर्वोत्तर के तीन राज्यों की जनता ने अपना जबाब दिया था। इस जबाब में नागालैंड कांग्रेस मुक्त का जबाब भी शामिल है। जनता चीख कर जबाब नहीं देती बल्कि वोटों के माध्यम से आप जबाब दाखिल करती है और अभी तक यह जबाब कांग्रेस के विरुद्ध और भाजपा के समर्थन में दाखिल किया जाता रहा है। इसलिए कांग्रेस ही नहीं उन विपक्षी नेताओं को दीवार पर लिखी इबारत पढ़ कर सच्चाई समझने की कोशिश करनी चाहिए। राहुल गांधी ही नहीं कोई कितना ही शक्ति सम्पन्न क्यों हो सचाई गढ़ नहीं सकता। मानहानि मामले के बाद राहुल गांधी यही करने की कोशिश कर रहे हैं। वे सच्चाई गढ़ने में विश्वास करते हैं। जैसे वे अभी भी मानते हैं कि सारे मोदी चोर हैं कह कर उन्होंने सच्ची बात कही। इससे उनकी सामंती मानसिकता ही प्रकट होती है जिसका लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं होता। पूरी जाति को लांक्षित करना सत्य नहीं हो सकता और जो इसे सत्य मानता है वह निसंदेह सत्य और असत्य के बीच की लक्ष्मण रेखा को नहीं पहचानता। उसे सच और झूठ में अंतर करना नहीं आता और ऐसा व्यक्ति , नेता या दल जनप्रिय है यह भी अपने में एक विनोदी बात ही है।